शबाब पर पलाश के फूल

in #palash6 months ago

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  • पलाश के लाल रंग में रंगा जिला
  • शबाब पर पलाश के फूल
  • जंगल में केसरिया रंग की बहार
  • फागुन लगते ही जंगल हो जाता है लाल
  • गर्मी की दस्तक

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मंडला. केसरिया रंग के फूल से पटे पेड़ पहाड़ की हरियाली में गुलाबी केसरिया रंग बिखेर रहे हैं। पलाश के इन फूलों का संकेत होता है कि फागुन आ गया है व सर्दी की विदाई, गर्मी की शुरुआत हो रही है। पलाश के फूल से प्राकृतिक रंग भी तैयार किया जाता है। जंगलों, पहाड़ों में पलाश के फूलों की बहार से होलिकोत्सव के आगाज का संदेश मिल जाता है। होली पर ग्रामीण इलाकों में पलाश के फूलों से रंगों को तैयार किए जाते है। फागुन माह में पतझड़ के बाद जंगलों में हर तरफ वीरानी छाई रहती है। जंगलों में अधिकतर वृक्ष सूखे दिखाई देते हैं।

बता दे कि बसंत ऋतु के साथ ही पलाश के पेड़ों पर केसरिया फूल लद गए हैं। जो देखने में प्रकृति की सुंदरता से रूबरू करा रहे है। जिले में अभी हर कहीं ऐसे नजारे दिखाई दे रहे हैं। यहां मंडला जिले के कस्बों से गांवों में और जंगल में पलाश बहुतायत में पाया जाता है। इतना ही नहीं जिले में सफेद पलाश भी देखा गया है जो दुर्लभ भी माना गया है। पलाश के पेड़ और फूल व पत्ते कई तरह के काम में आते है। इसका आयुर्वेदिक महत्व भी है।

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  • लाभदायक है पलाश :
    ग्रामीण आज भी पलाश की छाल को उबालकर सेवन करते है, जिसे पथरी का इलाज माना जाता है। पलाश के तने के रेशे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते से दोने व पत्तल बनाए जाते हैं जो पंगत में भोजन परोसने में काम आता है हालांकि डिस्पोजल ने ले लिया। इनमें प्रतिबंध के बाद दोना पत्तल को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है। ये ना पर्यावरण प्रदूषण को कम करेंगे। सेहत के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होते है।

  • पलाश में है औषधीय गुण:
    बुजुर्गों का मानना है कि इस प्राकृतिक रंग से होली खेलने वालों को कभी भी त्वचा रोग नहीं होता, उसमें चमक भी आ जाती है। बताया गया कि नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए पलाश फूल के रस में शहद मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से काफी लाभ होते हैं। इसके बीजों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद, खाज, खुजली में आराम मिलता है।

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  • वातावरण का सौंदर्य बढ़ा :
    होलिका पर्व के नजदीक आते ही शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश के फूल चारों ओर दिखाई देने लगे हैं। पेड़ों पर पलाश के फूलों की बहार छाई हुई है, जिससे वातावरण का सौंदर्य बढ़ गया है। जंगल क्षेत्रो पर अनेक जगह पलाश के पेड़ बड़े पैमाने पर देखे जा सकते है जो होली आने का संकेत दे रहे है। सड़कों के किनारे लगे पलाश के पेड़ों पर आए फूलों ने सड़कों की रौनक बढ़ा दी है। पलाश के फूल, पत्ते व लकड़ी स्वास्थ्य के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं, जिससे कई रोगों की दवाई बनाई जाती है। टेसू के फूलों से होलिका पर्व पर रंग भी बनाया जाता है। टेसू के पेड़ जिले के अनेक ग्राम में पाए जाते है। जहां का वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगा है मानों पेड़ पर किसी ने दहकते अंगारे लगा दिए हैं। आमतौर पर वसंत ऋतु के समय में यह फूल खिलने लगते है।

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  • खूबसूरती के साथ कई गुणों से भरे हैं फूल :
    होली के आसपास यह फूल जंगल की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। हालांकि रंग उत्सव आज से शुरू हो जाएगा। लेकिन प्रकृति ने इसकी तैयारी वसंत ऋतु के आगमन के साथ कर ली थी। ग्रामीण क्षेत्र में टेसू के फूल लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। आज भले ही हमें केमिकल युक्त रंग, गुलाल से होली पर्व मनाते हैं, लेकिन एक समय था, जब पूर्वज पलाश के फूल से ही होली खेला करते थे। पलाश के फूल को होली के लिए एक दिन पहले एकत्रित कर उसे मिट्टी के पात्र में रखकर गर्म करते थे। इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता था। पलाश के पेड़ की छाल को उबालकर सेवन करने से पथरी और यकृत रोग दूर होते हैं। व्यवसाय उपयोगी पलाश के तने के रेशे से बनी रस्सी काफी मजबूत होती है। इसके पत्ते से दोने व पत्तल बनाए जाते थे। पूर्व में ये लोगो की आजीविका के प्रमुख साधन रहे है।

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