मांस से कहीं ज्यादा पौष्टिक और फायदेमंद है पिहरी

in #nutritious2 years ago

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  • जिले की सबसे कीमती सब्जी- पिहरी
  • हल्की बारिश के बीच जंगलों में मिलती है पिहरी
  • देसी मशरूम की है अलग पहचान
  • आसमान में बिजली की गडग़ड़ाहट से जमीन में उगती है यह पिहरी

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मंडला। भारत में मशरूम की कई प्रजातियां पाई जाती है, जिनकी खेती करके किसान अच्छी आमदनी कमा रहे हैं, लेकिन इस बीच मशरूम की कई प्रजातियां ऐसी भी हैं, जिनकी खेती नहीं होती, बल्कि ये प्रकृति की गोद में अपने आप उग जाते हैं। मशरूम के प्राकृतिक प्रजातियों में पिहरी का नाम शीर्ष पर आता है। गरज के साथ होने वाली बारिश के समय यह सब्जी पिहरी जिले के सभी क्षेत्रों में खूब पंसद की जाती है। इस पिहरी की डिमांड भी अधिक रहती है। जिला मुख्यालय के नेहरू स्मारक में बिकने आने वाली पिहरी की दुकानों में लोगों का तांता देखा जा सकता है। लोगों की भीड़ से अंदाजा लाया जा सकता है कि यह पिहरी लोगों के बीच कितनी पसंदीदा है। इस पिहरी को आदिवासी व ग्रामीण अंचल के लोग इसे धरती का फूल भी कहते है। इस पिहरी को बाजार में 600 रुपये से लेकर 1000 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचा जाता है। फिलहाल जिला मुख्यालय मंडला के बाजार में अभी इसकी कीमत 800 रूपए प्रति किलो चल रही है। मंहगी होने के बावजूद लोग इस पिहरी को ले जा रहे है।

जानकारी अनुसार पिहरी मशरूम बिजली की गडग़ड़ाहट से बांस के झुरमुटों की जड़ों समेत अन्य औषधि पेड़ पौधों के सूखे पत्तों के बीच उगते हैं। यह पिहरी मप्र के मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, शहडोल, अनूपपुर के निकटवर्ती जंगलों में बहुतायत में पाये जाते हैं, जहां से निकालकर इन्हें स्थानीय बाजारों समेत मार्ग किनारे और मंडियों में बेचा जाता है। ग्रामीण अंचल में रहने वाले ग्रामीण इस पिहरी को ढूंढने के लिए अल सुबह से ही अपने घरों से जंगलो की तरफ अपना रूख कर लेते है। खासकर हल्की बारिश के बाद जंगलों में पिहरी मशरूम की भरमार होती है। यहां ग्रामीण अच्छी गुणवत्ता की पिहरी चुनकर लाते है और विक्रय करते है।

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  • चिकित्सक भी देते है इसे खाने की सलाह :
    देश के कई इलाकों में सदियों से मशरूम की एक प्रजाति लागों के पसंदिदा भोजन में शामिल है, लेकिन इस प्रजाति के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। मशरूम की प्रजाति पिहरी एक शत-प्रतिशत प्राकृतिक उपज है, जो बांस के पेड़ों की जड़ों में बारिश के मौसम में अपने आप पैदा हो जाती है। इसको वनस्पति मांस का सबसे अच्छा विकल्प कहा जाता है। वहीं पिहरी के बारे में कहा जाता है कि ये न सिर्फ मांस से ज्यादा पौष्टिक और फायदेमंद है बल्कि उससे कहीं ज्यादा लजीज भी है। वहीं चिकित्सक भी शाकाहारियों को मांस में मिलने वाली पौष्टिक्ता के लिए इसे खाने की सलाह देते हैं।

  • ग्रामीणों को होती है अच्छी पहचान :
    जिले के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षो से लोगों का पिहरी पसंदीदा सब्जी रही है। बाजार में यह करीब 600 से लेकर 1000 रूपए किलो तक बेहद मुश्किल से मिलता है। इसकी पहचान आदिवासी समुदाय और वनांचल क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को ही बेहतर होती है, जिससे उन्हें रोजगार मिलने के साथ आर्थिक मदद भी मिल जाती है।

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  • प्रोटीन, खनिज लवण से युक्त है पिहरी :
    स्वाद प्रेमी इसे बहुत ज्यादा पंसद करते हैं। स्थानीय बोलचाल में इसे पिहरी कहा जाता है। बरसात के दिनों में बांस के झूरमुटों के बीच मशरूम की यह प्रजाति पिहरी अपने आप उग जाती है। यह एक पौष्टीक आहार है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है. पिहरी में बहुत सारे खनिज, लवण और प्रोटीन पाया जाता है, लेकिन इसे खोजने ग्रामीणों, आदिवासियों को बहुत जोखिम भी उठाना पड़ता है।

  • जितनी चमकेगी बिजली उतनी होगी उपज :
    ग्रामीणों का कहना है कि आसमान में जितनी बिजली चमकती है उतनी ही यह वनोपज पिहरी उगती है। इसका चूर्ण भी बनता है जो कई बीमारियों को दूर करने में कारगर साबितो होता है। बता दें कि जिला मुख्यालय के नेहरू स्मारक में पिहरी बेचने वालों का तांता लगा जाता है, यह स्थान पिहरी के लिए बेचने वाले चिन्हित कर लिए है। जिसके कारण लोग बारिश शुरू होते ही नेहरू स्मारक का रूख करते है। वहीं यह पिहरी मंडला से जबलपुर मार्ग, जबलपुर से बालाघाट मार्ग किनारे पिहरी बेचने वाले लोगों को देखा जा सकता है। सड़क किनारे यह पिहरी बेचने वाले यहां से गुजरने वाले राहगीरों को इसे बेचते हैं, जिनमें से कुछ व्यापारी इसे अन्य शहर में लाकर ऊंचे दामों पर भी बेचते हैं।

  • मांस से कहीं ज्यादा लजीज और फायदेमंद है पिहरी :

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जिले में मिलने वाली पिहरी प्राकृतिक उपज है, जो बांस के पेड़ों की जड़ों में इन दिनों अपने आप पैदा हो जाती है। यह वनस्पति पिहरी मांस का सबसे अच्छा विकल्प है। यह ना केवल मांस से ज्यादा पौष्टिक और फायदेमंद है बल्कि उससे कहीं ज्यादा लजीज स्वाद भी देती है। जिन शाकाहारियों को चिकित्सक ने मांस खाने की सलाह दी है वो बिना अपना धर्म त्याग किए इसका सेवन कर सकते हैं और जो लोग मांसाहारी हैं उनके लिए यह सबसे बेहतरीन विकलप है। इससे जीव हिंसा भी नहीं होती और मांस से मिलने वाली पौष्टिकता व स्वाद भी मिलता है। कई इलाकों में यह सदियों से लोगों का पसंदीदा सब्जी बनी हुई है। बाजार में यह करीब 600 से लेकर 1000 रुपए किलो तक मिल जाती है।

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