अश्रु क्यों इतने ढले हैं।

in #news2 years ago

अश्रु क्यों इतने ढले हैंः
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अश्रु क्यों इतने ढले हैं।

रुक ना पाये नैन के इन कोटरों मे।
उमड़ आई क्या व्यथा इन पोखरों में ।
सरित की नवधार ले बाहर चले हैं।
अश्रु क्यों इतने ढले हैं।।

वेदना के शूल उर में गड़ रहे थे ।
लोचनो की ओर नीरव बढ़ रहे थे।
कुंतलो में छुप रहे दृग अधखुले हैं।।
अश्रु क्यों इतने ढले हैं।

वेदना का आज अवगुंठन खुला है ।
आंसुओं में आज अपनापन घुला है ।
आज सुधियों के नए दीपक जले हैं ।।
अश्रु क्यों इतने ढले हैं।।

भाग्य बन कुशली चितेरा ठग गया है।
अलस मन बंदी बनाकर रंग गया है।
गिरे मोती सीपियों में जो पले हैं।।
अश्रु क्यों इतने ढले है।।

अच्छा हुआ आगत रहे सब भार लेकर।
स्वप्न में उर का सभी अभिसार लेकर।
क्या कहोगे, वे रात के सपने खले हैं।
अश्रु क्यों इतने ढले हैं ।।