असल में जिसने भी ताली बजायी, वह गाली देगा

in #news2 years ago

असफल ही सोचता है कि सार होगा धन में, सार होगा पद में। जो पद पर हैं, जो धन पर हैं, वे नहीं सोचते। सोच ही नहीं सकते। भले दिखावा करते हों, लेकिन भीतर से भवन गिर गया है। ऊपर से साज-सजावट बनाए रखते हों, नींव खिसक गयी है। अगर तुममें थोड़ी भी समझ हो और गहरे देखने की क्षमता हो, तो हर सफल आदमी में तुम असफलता को पाओगे। और हर आदमी की यश-कीर्ति में तुम बड़ा संतप्त हृदय पाओगे, रोता हुआ हृदय पाओगे। मुस्कुराहटों में अगर झांकने की क्षमता आ जाए, तो तुम छिपे हुए आंसू देख पाओगे।
‘जो असार को सार समझते हैं और सार को असार, वे मिथ्या संकल्प के भाजन लोग सार को प्राप्त नहीं होते।’
होंगे भी कैसे!
‘जो सार को सार जानते हैं और असार को असार, वे सम्यक संकल्प के भाजन लोग सार को प्राप्त होते हैं।’
सार क्या है, इसे जान लेना आधा पा लेना है। क्या है सार? अब तक जिंदगी में तुमने जो खोजा है, उसमें से तुम्हें क्या ऐसा लगता है जिसे सार कहा जा सके? धन खोज लिया; कल तुम मरोगे, वह पड़ा रह जाएगा। जो साथ न जा सके वह सार कैसे होगा? प्रशंसा पा ली, लोगों ने तालियां बजायीं और गजरे पहना दिए। गजरे क्षणभर बाद कुम्हला जाएंगे, तालियों की आवाज हो भी न पाएगी और खो जाएगी। और सारी दुनिया भी ताली बजाए, तो भी सार क्या होगा? मिलेगा क्या? उससे तुम्हें कौन सी जीवन-संपदा उपलब्ध होगी? और फिर भरोसा कहां है? जो आज ताली बजाते हैं, वे कल गाली देने लगते हैं।
असल में जिसने भी ताली बजायी, वह गाली देगा ही। वह बदला लेगा। जब ताली बजायी थी तो वह कोई प्रसन्नता में नहीं बजा रहा था। लोग दूसरों से अपने लिए ताली बजवाना चाहते हैं, तब प्रसन्न होते हैं। तुम भी जब कोई ताली तुम्हारे लिए बजाता है तब तुम प्रसन्न होते हो। जब तुम्हें बजानी पड़ती है, तुम मजबूरी में बजाते हो। शायद इस आशा में बजाते हो कि हम दूसरों के लिए बजाएंगे, तो दूसरे हमारे लिए बजाएंगे। चलो अभी हम तुम्हारे लिए बजाए देते हैं, कल तुम हमारे लिए बजा देना। ऐसा पारस्परिक लेन-देन चलता है। हम तुम्हारी प्रशंसा कर देते हैं, तुम हमारी कर देना। लेकिन कौन किसी दूसरे के सुख के लिए चेष्टा कर रहा है? लोग अपने सुख की चेष्टा कर रहे हैं।
इसलिए जो आदमी भी तुम्हारी प्रशंसा करेगा, वह कभी न कभी बदला लेगा। उसके भीतर कांटा गड़ता ही रहेगा कि प्रशंसा करनी पड़ी। देखेंगे किसी उचित समय पर, जब हमारा हाथ ऊपर होगा और तुम्हारा नीचे होगा। यहां कौन अपना है? इस जिंदगी का कुल हिसाब इतना है–
कुछ हसीं ख्वाब और कुछ आंसू
उम्र भर की यही कमाई है
कुछ सुंदर सपने और कुछ आंसू, उम्रभर की यही कमाई है। सपने देखते रहो, सपनों को संजोते रहो और टूटे सपनों के लिए रोते रहो। इधर टूटे सपने इकट्ठे होते जाते हैं, तुम नए सपने देखते रहो। अतीत तुम्हारा आंसू बनता जाता है, भविष्य हसीन ख्वाब। बस, इन दोनों के बीच में तुम जीते हो। कल जो बीत गया कुछ भी पाया नहीं, रेगिस्तान हो गया। आने वाले कल में तुम मरूद्यान बसाए हो, वह भी कल बीता जाता है। वह भी आज हो गया, वह भी कल हो जाएगा–वह भी जा रहा है। मरते वक्त तुम पाओगे, पूरा जीवन एक रेगिस्तान की यात्रा थी–लंबी, थकान भरी, धूल-धवांस भरी। हार, संताप, चिंता सब था, लेकिन और कुछ हाथ न लगा। धूल हाथ लगी।
कुछ अपना नहीं हो पाता। और जो अपना नहीं है, वह सार नहीं हो सकता। सार तो वही है जो तुम्हारा हो जाए, तुम्हारे भीतर हो जाए, और कभी तुमसे अलग न हो। जो तुम्हारी सत्ता बन जाए, तुम्हारा अस्तित्व बन जाए। सार की हमारी परिभाषा यही है। असार वही है, जो तुमसे बाहर रहे। आज तुम्हारा है, कल पराया हो जाए। हो ही जाएगा। कल किसी और का था। कोई घर यहां मकान नहीं है। सभी सराय हैं। कल कोई और ठहरा था, आज तुम ठहरे हो, कल कोई और ठहर जाएगा।
दुनिया का एतबार करें भी तो क्या करें
आंसू तो अपनी आंख का अपना हुआ नहीं
अपनी आंख का आंसू भी यहां अपना नहीं होता, और अपना क्या हो सकता है? जिनको हम अपना कहते हैं वे भी अपने नहीं हैं। अपने अतिरिक्त अपना यहां कुछ भी नहीं। स्वयं के अतिरिक्त और कोई संपत्ति नहीं है।
इसलिए जिसने जीवन को स्वयं की खोज में लगाया है; उसने ही सार की खोज में लगाया है। और जो और कुछ भी खोज रहा हो स्वयं को छोड़कर, वह चाहे सारी पृथ्वी की संपदा पा ले, सारा साम्राज्य पा ले, आखिर में पाएगा हाथ खाली हैं। हृदय एक रोता हुआ भिखारी का पात्र है, जिसमें कुछ भी न पड़ा। और जीवन ऐसे ही गया।