*अधूरी कविता

in #news2 years ago

इस संघर्षमय जीवन में,
क्या खोना है ,क्या पाना है,
क्यों होती है व्यर्थ की चिंता,
क्यों होती है अकुलाहट,
क्यों मन घबड़ाता है,
कुछ पाने पर खुश होता है,
कुछ खोने पर वह रोता है,
इस व्यर्थ आपाधापी में,
कर्म के चक्रव्यूह में,
क्यों होता है अंतर द्वन्द,
मन के भीतर मन्द-मन्द,
मन तो सिर्फ पाना चाहता है
खोने पर तो वह तड़पता है,
इस चक्रव्यूह से क्या
कोई निकल पाया है?
क्या प्रकृति से कोई लड़ पाया है?
क्यों होता है पश्चात्ताप
क्यों रोता है बार -बार
क्या मेरा है ? क्या तेरा है ?
क्या पाना था, क्या पाया है,
किसने किसको क्यों तड़पाया है,
किसने किसको क्यों छला है,
किसका मन स्वच्छ,
किसका मैला है,
हम सब खिलौने हैं क्या ?
जो एक दूसरे से खेल रहे हैं ?
या प्रकृति के खिलौने हैं,
जो प्रकृति के हाथों खेल रहें हैं,
अरमान बिखरा हैं,
दिल टूटा है,
कोई किससे क्यूं रूठा है,
वो आया था हँसाने,
फिर क्यों रुला गया,
वो आया था रहनें,
फिर क्यो चला गया,
जिसके लिए मैंने सब कुछ छोड़ा
उसनें मुझको क्यों छोड़ा,
जिसको मैंने अपना समझा
वो तो मेरा सपना था,
सपने टुटते रहते है,
कर्म चलता रहता है,
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं,
वक़्त के हाथों,
इंसान हमेशा छलता रहता है,
सब खोने के बाद
फिर कुछ पाने को मन
मचलता रहता है,
क्या है जीवन,
क्यों है जीवन,
आत्ममंथन हमेशा
चलता रहता है