संतुलन
दिल और दिमाग के बीच का संतुलन बैठाने में ,,हम खुद को लाचार पाते हैं।।
दिल की सुने या दिमाग की, यही सोचते रह जाते हैं ।।
सुने अगर दिल की, तो दिमाग तर्क जताता है ,,सुने अगर दिमाग की, तो दिल अपने ख्वाब सुनाता है ।।
सारा जीवन इंसान यही संतुलन बनाने में लगाता है ।।
सुनता है इंसान जब दिल की, तो दिल की बातों में ही खो जाता है ,,सुनता है जब दिमाग की,, तो ये समझदारी भरे तर्क दिया जाता है ।।।
आखिर क्या है ये कि एक ही समय में वो दिल और दिमाग दोनों की नहीं सुन पाता है।।।
दिल होता मासूम बड़ा ,और वही दिमाग समझदार कहलाता है,,,, मासूमियत और समझदारी का नहीं कोई नाता है।।।
मासूम से दिल के सवालों का जवाब ये दिमाग नहीं दे पाता है,, और दिमाग के समझदारी भरे तर्क वितर्क को ये दिल सहन नहीं कर पाता है ।।।।