सोने जैसी लखनऊ यूनिवर्सिटी में अब तो सब गोलमाल है

in #news2 years ago

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P. O news
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की राजधानी में लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना का ख़्वाब जब राजा महमूदाबाद ने देखा तो उस ख़्वाब में एक ऐसी यूनिवर्सिटी थी जैसी दुनिया में कहीं न हो. एक ऐसी यूनिवर्सिटी जिसमें हर कोई पढ़ना चाहे. यही वजह है कि जब लखनऊ यूनिवर्सिटी का ख़्वाब ज़मीन पर उतरने की तैयारी करने लगा और सरकारी अफसर कागज़ात पर उन तैयारियों को दर्ज करने लगे तब हिन्दुस्तान की पांच बड़ी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों को बुलवाकर वहां की ख़ास बातों को समझा गया ताकि वह सारी बातें इस यूनिवर्सिटी में हों.

लखनऊ यूनिवर्सिटी को प्रोफ़ेसर टी.एन. मजूमदार, प्रो. डी.पी.मुखर्जी, प्रो. कामरान, प्रो. राधा कमल मुखर्जी, प्रो. राधा कुमुद मुखर्जी, प्रो. बीरबल साहनी, प्रो. नरेन्द्र देव, प्रो. सिद्धांत, प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, प्रो. काली प्रसाद. डॉ. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल और रमेश कुंतल मेघ जैसे विद्वानों की विद्वता ने इस लायक बनाया कि यह यूनिवर्सिटी दुनिया के सामने सर उठाकर खड़ी हो गई.

वक्त के साथ-साथ लखनऊ विश्वविद्यालय ने शिक्षा के कैलेण्डर में अपना चमकता हुआ मुकाम बनाया. लखनऊ की बात तो छोड़ ही दी जाए दूसरे शहरों के लोगों ने इस विश्वविद्यालय की चौखट चूमकर अपना शानदार फ्यूचर तैयार करने का ख़्वाब देखा. जिन विद्यार्थियों ने अच्छे नम्बरों के साथ अच्छी पढ़ाई कर ली उन्होंने इसी विश्वविद्यालय में पढ़ाने का फैसला किया ताकि आने वाली नस्लों को सुधारा जा सके लेकिन जिस तरह से वक्त का पहिया घूमकर सतयुग से कलयुग में चला गया ठीक वैसे ही यह विश्वविद्यालय भी कलयुगी विश्वविद्यालय बन गया.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के नाम एक तरफ चमकते हुए शिलालेख हैं तो दूसरी तरफ बदनामी के बहुत से दाग भी हैं. छह साल पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी के कैलाश छात्रावास की प्रवोस्ट और उनके परिवार का इतना विरोध बढ़ा था कि उन्हें वहां से निकालने के लिए पुलिस और पीएसी लखनऊ विश्वविद्यालय में घुसी थी. तत्कालीन कुलपति निमसे को कैलाश छात्रावास जाकर प्रवोस्ट को छात्रावास छोड़ने के लिए मिन्नतें करनी पड़ी थीं.

अब तो इस यूनिवर्सिटी के प्रबंधन की आँखों की शर्म भी मर चुकी है. अपने फायदे के लिए यह शिक्षकों के प्रमोशन में धांधली में जुटे हुए हैं. यहाँ के प्रबंधन को कुलाधिपति कार्यालय से आने वाली चिट्ठियों की भी कोई परवाह नहीं है. कुलाधिपति को किस तरह की मीठी गोली देकर टालना है इसके बारे में इन्हें बहुत अच्छी तरह से पता है.

लखनऊ यूनिवर्सिटी के ज़िम्मेदार इतने ताकतवर बन गए हैं कि इन्होंने नियम कानून उठाकर ताक पर रख दिए हैं. प्रोन्नति चयन समिति की बैठक यहाँ बगैर विभागाध्यक्ष और डीन के ही हो जाती है. उस बैठक में हुए फैसले भी क़ानून सम्मत मान लिए जाते हैं.

16 नवम्बर को शिक्षकों के प्रमोशन के लिए जो बैठक बुलाई गई उसमें समिति के सदस्यों को 15 दिन पहले सूचना देने के नियम का भी पालन नहीं किया गया. बैठक शुरू होने के कुछ घंटे पहले समिति के सदस्यों को सूचना दी गई तो मनोविज्ञान विभाग की हेड ने विश्वविद्यालय की परिनियमावली का हवाला देते हुए इस चयन समिति की वैधानिकता पर सवाल उठा दिए. उन्होंने इस सम्बन्ध में बैठक शुरू होने से पहले ही कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय और कुलसचिव डॉ. विनोद कुमार सिंह को लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई. इस आपत्ति को कुलपति और कुलसचिव ने संज्ञान ही नहीं लिया और बैठक सम्पन्न हुई.

दरअसल फिजिक्स डिपार्टमेंट की हेड प्रो. पूनम टंडन का कार्यकाल 18 नवम्बर को खत्म हो रहा था. इस बारे में 15 नवम्बर तक ज़िम्मेदार सोये रहे. अचानक से आँख खुली तो 16 को बैठक बुला ली. बैठक में प्रो. टंडन की जगह पर प्रो. एन.के.पाण्डेय को चार्ज सौंप दिया गया. हालांकि चयन प्रक्रिया में हुई लापरवाही पर प्रो. पाण्डेय ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराई.

शिक्षक चयन प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा ही क्यों इस पर भी बात करते चलें तो ज़िम्मेदारों की भी समझ में आ जाएगा कि इस संवाददाता के पास चयन प्रक्रिया में हुई बेईमानी की हर छोटी बड़ी जानकारी मौजूद है. लखनऊ यूनिवर्सिटी पर 30 मई 2022 को हमने जो श्रंखला शुरू की है उसे हम तब तक जारी रखेंगे जब तक कि बेईमानों पर चढ़ी झूठ की कलई पूरी तरह से धुल न जाए. किस तारीख को क्या हुआ, यह सब हम आपको विस्तार से बताएँगे. ताकि पढ़ने वाले समझ सकें कि जिस विश्वविद्यालय में प्रो.बीरबल सहानी और प्रो. राधा कमल मुखर्जी ने पढ़ाया वहां पर कलयुगी दौर में शिक्षकों के प्रमोशन की चयन प्रक्रिया में क्या गोलमाल हो रहा है.

शिक्षक चयन प्रक्रिया में बेईमानी की बू आई कहाँ से वह भी आपको बताते चलें. लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.पी.सिंह ने अपने रिटायरमेंट से कुछ समय पहले 30 अक्टूबर 2019 को ओरियंटल स्टडीज़, अरेबिक और पर्शियन डिपार्टमेंट के शिक्षकों के प्रमोशन के लिए चयन समिति की बैठक बुलाई थी. इस बैठक में जिनका प्रमोशन तय किया गया उनके लिफ़ाफ़े बंद कर दिए गए. कुलपति रिटायर हो गए और चार्ज तत्कालीन रजिस्ट्रार शैलेश कुमार शुक्ल को मिल गया. अब कार्यवाहक कुलपति ने 28 नवम्बर 2019 को फिर से कार्य परिषद की बैठक बुलाई.

कार्यवाहक कुलपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय किया गया कि पूर्णकालिक कुलपति प्रो. एस.पी. सिंह ने क्योंकि अपने कार्यकाल के अंतिम समय में चयन समिति की बैठक बुलाई थी इसलिए उसमें बंद किये गए लिफ़ाफ़े राजभवन भेज दिए जाएं और राजभवन उस पर फैसला करे.

कार्यवाहक कुलपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में कामर्स विभाग के शिक्षक डॉ. अवधेश त्रिपाठी के प्रमोशन का लिफाफा बंद किया गया. इस लिफ़ाफ़े को 20 मार्च 2020 की कार्य परिषद की बैठक में भेजने का फैसला किया गया. यह जानकारी मिलते ही डॉ. श्रवण कुमार, डॉ. अरुण कुमार और डॉ. अरशद जाफरी ने 19 मार्च को गवर्नर को पत्र देकर यह मांग की कि या तो इस बैठक में उनके लिफ़ाफ़े भी खोले जाएं या फिर डॉ. अवधेश का लिफाफा भी न खोला जाए क्योंकि यह तो सरासर हमारा उत्पीड़न होगा.

एसोसियेट प्रोफ़ेसर डॉ. अरुण कुमार ने राजभवन को भेजे ई-मेल में कहा कि डॉ.गीतिका टंडन और डॉ. अवधेश त्रिपाठी के लिफ़ाफ़े खोलने के लिए अचानक से यह बैठक इसलिए बुलाई गई है क्योंकि ठीक एक दिन बाद चयन समिति की बैठक को चार महीने बीत जाते और तब इस प्रकरण पर सिर्फ राजभवन ही फैसला ले सकता था. इनकी चयन समिति भी निरस्त हो जाती. उन्होंने आरोप लगाया कि कोरोना संक्रमण की आशंकाओं के बावजूद सिर्फ दो शिक्षकों को फायदा पहुंचाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने बैठक बुला ली.

तमाम शिकायतों और चयन समिति पर उठे सवालों के बावजूद विश्वविद्यालय के पूर्णकालिक कुलपति की अध्यक्षता में हुई चयन समिति की बैठक में चुने गए लिफाफों को बगैर खोले राजभवन भेजा गया और राजभवन ने भी विश्वविद्यालय से एक माह के भीतर फिर से चयन समिति की बैठक बुलाने के निर्देश के साथ बगैर खुले लिफ़ाफ़े वापस लौटा दिए. जबकि कार्यवाहक कुलपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में चयनित डॉ. अवधेश त्रिपाठी डॉक्टर से प्रोफ़ेसर लिखने के हकदार बन गए.

विश्वविद्यालय में शिक्षकों के साथ किस तरह को सौतेला व्यवहार हो रहा है. और किस तरह से बेईमानी की परतें इस शानदार विश्वविद्यालय को गर्त में ले जाने का इतिहास लिख रही हैं, यह हम आपको अगली किस्तों में बताएंगे. हम हर उस चेहरे का नकाब हटाएंगे जो अवैधानिक कामों को वैधानिक होने का सर्टिफिकेट बाँट रहे हैं.