चित्तौड़गढ़ की आबोहवा मुफीद है वन्यजीवों और संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए

in #news2 years ago
  • JEV 01.jpgअन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
    चित्तौड़गढ़। अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के मौके पर चित्तौड़गढ़ ज़िले के वन्य जीव अभयारण्य बस्सी में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में जिला कलक्टर अरविन्द पोसवाल, जिला वन अधिकारी सुगनाराम जाट, अतिरिक्त कलक्टर गीतेश श्रीमालवीय सहित अन्य अधिकारी और कार्मिक मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान मेघपुरा से जालेश्वर महादेव, सारण तालाब, बस्सी डेम और क्रोकोडाइल पॉईन्ट पर पैदल ट्रेकिंग कर वन्य जीव को देखा और पेंथर के पदचिन्हों को भी देखा गया। इसी दौरान वहां मौजूद लोगों को पेड़ पौधों के संबंध में जानकारी देकर उनका इको सिस्टम में महत्व के बारे में बताया गया। मुख्य कार्यक्रम में उपवन संरक्षक सुगनाराम जाट ने जैव विविधता दिवस के महत्व के बारे में बताया। कार्यक्रम के दौरान जिला कलक्टर ने पक्षियों के लिए परिंडे बांधे। इस दौरान जिला क्लब सचिव अरूण कुमार, सहायक वन सरंक्षक सुनील कुमार, नरेन्द्र विश्नोई सहित वन विभाग के कर्मचारी, स्काऊट आदि लोग मौजूद थे।

पर्यावरणीय और भौगोलिक परिस्थितियों का अनूठा संगम है चित्तौडग़ढ़
अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र संघ अनुवांशिक ईकाई आईयूसीएन के सदस्य मोहम्मद यासिन ने बताया कि इस वर्ष जैव विविधता की थीम समस्त जीवों के लिए साझा भविष्य का निर्माण है। उन्होनें बताया कि वनों की कटाई, प्रजातियों के विलुप्त होने और कोरोना जैसे रोग महामारियों के जोखिम को बढ़ा रहे है और जैव विविधता कम होती जा रही है। उन्होनेें बताया कि एक अध्ययन के अनुसार कुछ प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है वहीं चुहे, चमगादड़ जिनके कारण मनुष्य में संभावित खतरनाक रोग फैलाने की क्षमता है उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होनें चित्तौडग़ढ़ के परिक्षेत्र को जैव विविधता का अनूठा संगम बताते हुए कहा कि जिले में राज्य की लगभग 9 . 6 प्रतिशत मछली प्रजातियां है। जिसमें साईप्रीनीफारमस की प्रजातियां सर्वाधिक है। इसी के साथ पहाड़ी झरनों की भी 14 प्रजातियां जिले में मौजूद है जो यहां के जलाशयों के महत्व को दिखाता है।

पठारी और समतल क्षेत्र में बंटा हुआ जिला
चित्तौडग़ढ़ में दोनों समुदायों के आरणों के परम्परागत सरंक्षित क्षेत्रों का एक विशाल वृक्ष कुंज है जो गंगा जमुनी संस्कृति को दर्शाता है। इन ओरणों में प्रचुर संख्या में वन्य जीवों की प्रजातियां और पेड़ पौधों की प्रजातियां मौजूद है वहीं कई संकटग्रस्त प्रजातियों की प्रजनन स्थली और आश्रय स्थली भी है। उन्होनें बताया कि जिले में उभयचर वर्ग में तरह की प्रजातियां पाई जाती है वहीं पक्षी वर्ग में 254 तरह की प्रजातियां है जिनमें18 प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में है। जिनमें गिद्ध, सारस, स्टॉर्क, आईबीस आदि शामिल है। उन्होनें बताया कि शोध के आधार पर तथ्यों से जानकारी मिली है कि राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में नम भूमि में रहने वाले सारस जैसी प्रजातियों का बहुतायत में मिलना कौतूहल का विषय है और चित्तौडग़ढ़ का क्षेत्र उनकी सुरक्षित स्थली है। उनके द्वारा किये गये शोध में डॉ सुनील दूबे, मोहम्मद समीअ, नाजनीन शेख, अश्लेष दशोरा, नेहा दशोरा, रिदम ऋषी, यामिनी दशोरा और हिमानी जैन सक्रिय सहयोग कर रहे है।
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