माँ दुर्गा की प्रतिमा को जीवंत रूप देने का प्रयास

in #navratri2 years ago

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  • इस वर्ष नवरात्र में 15 मूर्तियां बनेगी आकर्षण का केन्द्र

  • माटी की कला के आगे विकलांगता ने टेके घुटने

  • प्रहलाद कछवाहा
    मंडला। आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद जिस तरह हमारे देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, औद्योगीकरण, रोजगार, नगरीकरण के क्षेत्र में वृद्धि होने के साथ ही समाज में सामाजिक, राजनीतिक चेतना विकसित हो रही है, उसके साथ ही जिले में प्रतिभाएं भी उभर कर सामने आ रही है। हालाकि कुछ दशक पहले जिले की प्रतिभाएं छिपी रहती थी, लेकिन अब जिले में हजारों प्रतिभाएं पूरे देश में मंडला का नाम रोशन कर रही है। चाहे वह जिले की बेटी हो या बेटा हर क्षेत्र में अपने हुनर से लोगों का दिल जीत रहे है।

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जानकारी अनुसार हमारे मंडला जिले में हुनर की कमी नहीं है। जिले के हुनरमंद अपने हुनर से चारो दिशाओं में अपना जलवा बिखेर रहे है। हर क्षेत्र में प्रतिभाएं हीरे की तरह चमक रही है। ऐसे ही एक हुनरमंद मूर्तिकार हमारे मंडला जिले मेें है, जो अपनी माटी की कला से लोगों को अपनी ओर आकर्षिक कर रहे है। इनकी कला से लोग इनकी तारीफ करते थकते नहीं है। ये है जिले के मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण कटारे, जो जिला मुख्यालय के महाराजपुर दादा धनीराम वार्ड में निवास करते है। मूर्ति बनाने का कार्य इनका पुस्तैनी कार्य है, जो करीब 70 वर्ष से इनके पिता उसके बाद मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण कर रहे है।

इनके द्वारा इस वर्ष माँ दुर्गा की 15 प्रतिमाएं बनाई जा रही है, जो बिल्कुल अलग है, इस बार मूर्तियों में मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण जान डालने का प्रयास कर रहे है। इनके द्वारा बनाई जा रही दुर्गा प्रतिमाएं बिल्कुल सजीव लग रही हैं। उनके द्वारा बनाई जा रही मूर्तियों को देखकर लग रहा है कि मां अपने भक्तों की आंखों में आंखे डालकर बातें कर रही हैं। दुर्गा मां की प्रतिमा के सामने खड़े होते ही भक्तों की उदासी दूर हो जा रही है। मां के इस रूप को देखकर लोग देखते ही रहते है। इसके साथ ही कलाकार की तारीफ भी लोग खूब कर रहे हैं।

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बता दे कि किसी हुनरमंद प्रतिभा के धनी को किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे ही प्रतिभा के धनी मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण एक पैर से विकलांग है। इनकी विकलांगता इनके हुनर के सामने अपने घुटने टेक देती है। एक पैर से विकलांग होने के बावजूद मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण अपने परिवार के साथ मूतियों को आकार देने का कार्य बखूबी करते है। इन्हें कार्य करते देख कोई नहीं कह सकता कि ये विकलांग है। इनका जज्बा और इनका आत्मविश्वास मूर्तियों में जान डाल देते है। इनके परिवार का भरण पोषण इनकी कला से ही चलता है। वर्ष के गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव में पांच सदस्यीय पविार के साथ मूर्तियों को बनाने का कार्य पूरी लगन के साथ करते है।

  • शासकीय नौकरी के साथ बनाते थे मूर्तियां :
    मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने बताया कि इनके पिता गया प्रसाद कटारे मंडला जेल में प्रधान आरक्षक के पद पर पदस्थ थे। ये अपनी शासकीय सेवा के साथ मूर्तियां बनाने का कार्य भी जेल के आसपास ही किया करते थे। अपनी शासकीय सेवा के कार्यकाल के साथ 40 वर्ष तक प्रतिमाओं को बनाने का कार्य किया है। मूर्तिकार लक्ष्मी अपने पिता के इस कार्य में मदद किया करते थे और इनकी इस कला को जीवंत रखने के लिए माटी की कला को आज तक जीवित रखे हुए है। अब मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण के पिता रिटायर हो चुके है, अब मूर्तियां को आकार देने का कार्य गया प्रसाद के बेटे और नाती कर रहे है।

  • 16 वर्ष से सराफा में बना रहे मूर्तियां :

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बता दे कि पिता गया प्रसाद की कला को जीवित रखने के लिए मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने संकल्प ले लिया और अपने पिता के कदमों पर चल पड़े। माटी की कला का कारवां चलता गया और लक्ष्मी नारायण अपने पिता की कला से सीखी कला को बिखेरते गए। करीब 55 वर्ष मंडला जेल के पास मूर्तियां बनाने का कार्य फिलहाल विगत 16 वर्ष पहले जिला मुख्यालय के सराफा बाजार में स्थानांतरित कर लिए। 16 वर्ष से लक्ष्मी नारायण सराफा में एक किराये की दुकान में मूर्तियों को बनाने का कार्य कर रहे है। अभी तक हजारों मूर्तियों को आकार देने के साथ अपने परिवार का पालन पोषण अपनी कला से कर रहे है।

  • 11 वर्ष पहले हादसे में एक पैर से हुए विकलांग :
    बता दे कि आज से 11 वर्ष पहले अप्रैल 2011 में एक यात्री बस में जा रहे लक्ष्मी नारायण एक सड़क हादसे में अपना एक पैर गवां चुके थे। इस सड़क हादसे से इनके परिवार पर दुख का पहाड़ टूट गया था। गंभीर घायल होने के बाद इनके परिवार का भरण पोषण की चिंता सताने लगी थी। लेकिन ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती। मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण का आत्म विश्वास और उनका हौंसला उन्हें अपने पिता की कला को जीवित रखने का संकल्प एक बार फिर लक्ष्मी नारायण को अपने परिवार के साथ खड़ा कर दिया। सड़क हादसे में लक्ष्मी नारायण का एक पैर खराब हो चुका था, डॉक्टर को उनका एक पैर अलग करना पड़ा। इसके बाद भी लक्ष्मी नारायण अपना हौसला टूटने नहीं दिए और अपनी विकलांगता को अपनी कला के आगे नहीं आने दिए। लक्ष्मी नारायण अपने परिवार और एक पैर के सहारे अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे।

  • प्रतिमा को जीवंत बनाने का प्रयास :

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बता दे कि जिले में करीब 80 मूर्तिकार है, जो मूर्तियां बनाने का कार्य करते है। इन्हीं मूर्तिकारों में एक प्रतिभा के धनी मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण है, जो प्रतिवर्ष गणेशोत्सव और दुर्गोत्सव में मूर्तियां बनाते है। प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी नवरात्र के लिए लक्ष्मी नारायण ने माँ दुर्गा की 15 प्रतिमाएं बना रहे है। इन 15 दुर्गा की प्रतिमाएं हर वर्ष की तरह नहीं है, इस वर्ष इन प्रतिमाओं को जीवंत आकार देने का प्रयास मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण कर रहे है। लक्ष्मी नारायण द्वारा बनाई जा रही प्रत्येक मूर्ति प्रसन्न और मुस्कुराती मुद्रा में नजर आएगी। मूर्तियों को आकार दे दिया गया है। अभी मूर्तियां पूर्ण भी नहीं हुई है, बावजूद इसके इन दुर्गा प्रतिमाओं को देखकर मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। प्रतिमाओं में माँ के जीवंत होने का एहसास अलग ही नजर आ रहा है।

  • मुस्कुराती हुई प्रतिमा को देख भूल जाएंगे गम :

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मंडला मुख्यालय के प्रसिद्ध मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने बताया कि विगत दो वर्ष कोरोना ने लोगों को जीना सिखा दिया है। बहुत लोगों ने अपने परिवार को खोया है, इसकी वजह से उनके चेहरे पर मायूसी आज भी साफ देखी जा सकती हैं। विगत वर्ष नरसिंहपुर और छिंदवाड़ा जिले के मूर्तिकार ने माँ दुर्गा की ऐसी ही एक मुस्कुराती हुई प्रतिमा बनाई थी, जिसे देखकर लग रहा था कि माँ दुर्गा बस अब कुछ बोलने ही वाली है। जो भक्त इनके दर्शन के लिए पहुंचे, वे माँ दुर्गा की प्रतिमा को देखकर बस निहारते ही रहे। भक्तो का माँ भावानी के प्रति आस्था और उनके चेहरे में प्रसन्नता देखने की सोच बनाकर मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने मातारानी के मनमोहक, हंसमुख चेहरे वाली दुर्गा प्रतिमा बनाने की प्रेरणा मिली। जिसके बाद मूर्तिकार लक्ष्मी नारायण ने माँ दुर्गा की प्रतिमा बना रहे हैं।

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Aise murtikar kalakar ko kudrat ki taraf se ek aisa anokha uphar milta hai Jo jivan mein Apne Charon or ek jivant Kala ko faila dete Hain aur jab vyakti apahi hone ke bad bhi niraash Na ho aise kalakaron ko vishesh protsahan milta hai aur aage jivan jeene ki ek kalakar prachar hota hai