इस्ट के वियोग में दुःखी प्राणी को सकंलेस होता रहता है--आर्यिक श्री आदर्शमति माताजी

in #mp2 years ago

अशोकनगर-इस्ट के वियोग में और अनिष्ट के सहयोग में कदम कदम पर भी प्राणी को सकंलेस होता है वह एक क्षण को भी सुखी नहीं हो पाता वह निरंतर संकल्प विकल्प करता रहता है कल तक जो सहयोगी थे आपका सहयोगी मित्र था पाप के उदय में वही मित्र शत्रू वन जाता है और हर पल आपको दुःख पहुंचाने लगता है उक्त आशय के उद्गार सुभाष गंज में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आर्यिकारत्न श्रीआदर्श मति माताजी ने व्यक्त किए
उन्होंने कहा कि देवो का शरीर सप्त धातुओं से रहित होता है उन्हें मनुष्यों की तरह भूख प्यास नहीं लगती है उनकी आयु के अनुसार उनके कंठ से उतने वर्ष वाद अमृत झर जाता है और भूख समाप्त हो जाती है इसलिए तो कहते हैं कि देवो के सुखों का वर्णन नहीं किया जा सकता इन सुखों के बीच भी वह संयम ग्रहण नहीं कर सकते भगवान के समवशरण में पूछा गया कि चक्रवर्ती हजारों रानीयो के साथ छः खण्य की सम्पदा हाथी घोड़े रत्न राशि सेवक इन सभी सुखों को भोगते हुए भी उसे घर में वैरागी कह जाता है तव कहते हैं कि चक्रवर्ती घर में वैरागी इसलिए कहा गया वह इस अकूत सम्पदा के वीच रहते हुए भी इनसे दूर रहता है कैसे रहता है तो उस व्यक्ति को चक्रवर्ती के राजमहल में हजारों रानीयो के वीच एक दीप में लवालव तेल भर कर भेजते हुए कहा जाता है
उन्होंने कहा कि,कीIMG-20220517-WA0133.jpg दीपक से एक बूंद भी तेल गिर गया तो साथ चल रहे सैनिक सिर को धड़ से अलग कर देंगे इसी चेतावनी के साथ महल में भेजा जाता है वापिस आने पर राज सम्पदा के वारे में पुछने पर वह कुछ नहीं वता पाता तव चक्रवर्ती वह इसी तरह सम्पदा से दुर रहकर राज्य व्यवस्था को वनाये रखता है इसलिए उसे घर में वैरागी कह गया हैIMG-20220517-WA0134.jpg

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