विभाजन की विभीषिका से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को किया याद

in #mirjapur2 years ago

गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए समन्वयक डॉ अरविंद मिश्र ने बताया कि भारत विभाजन के अनुभव को याद करना आज इसलिए आवश्यक है, ताकि हम संबंधित मुद्दों की गहराई को समझें और उन पर कोई विवेकपूर्ण सहमति बना सकें, जो विभाजन के लिए उत्तरदायी थे। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हमारी राष्ट्रीय स्मृति में विभाजन की त्रासदी उसी सघनता से रची-बसी है, ताकि इसकी पुनरावृत्ति से बचाव की ऊर्जा भी उतनी ही सघन हो। ऐसे तमाम सवालों से गुजरकर ही विभाजन की विभीषिका की स्मृति दिवस के औचित्य को परखा जा सकेगा।
आजादी का अमृत महोत्सव की श्रृंखला के तहत 14 अगस्त 1947 को देश के बंटवारे का स्मरण करने के लिए रविवार को केबीपीजी कॉलेज के सामुदायिक भवन में क्या भारत विभाजन अपरिहार्य था विषयक गोष्ठी आयोजित की गई। प्राचार्य डॉ अशोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी में शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं ने विभाजन की विभीषिका में जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धा-सुमन अर्पित कर इसकी यादों से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रकाश डाला।मुख्य वक्ता मध्यकालीन इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ देवेंद्र नाथ द्विवेदी ने बताया कि भारत पाकिस्तान का बंटवारा किसी विभीषिका से कम नहीं है। इसके दर्द से आज भी हजारों परिवार एवं देश गुजर रहा है। बंटवारे से पहले पाकिस्तान जैसे देश का कोई नामोनिशान नहीं था। उन्होंने बताया कि यह अंग्रेजों की एक सोची समझी साजिश थी, जिसके फलस्वरूप भारत को दो देशों में बांटा गया था। यह बंटवारा सामान्य या साधारण नहीं था। इस बंटवारे की घटना के मद्देनजर 14 अगस्त 1947 के दिन का इतिहास में बहुत गहरा जख्म है जो कि हमेशा ताजा रहेगा।
मध्यकालीन इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ अमिताभ तिवारी ने बताया कि भारत का विभाजन एक जटिल मामला है, जिसके लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना नासमझी है। इसमें मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, कांग्रेस और ब्रितानी शासन, सबकी भूमिका है। किसकी कम, किसकी ज्यादा, इस पर बहस की बहुत गुंजाइश है। ये सच है कि मुस्लिम लीग ने अलग देश की मांग की थी और उनकी ये मांग पूरी हो गई। यही वजह है कि विभाजन का पूरा दोष मुसलमानों पर डाल दिया गया, लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी मुसलमान विभाजन के पक्ष में थे या केवल मुसलमान ही इसके लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने आगे कहा कि मौलाना आजाद और ख़ान अब्दुल गफ्तार खान विभाजन के सबसे बड़े विरोधी थे। उन्होंने इसके खिलाफ पुरजोर तरीक़े से आवाज उठाई थी, लेकिन उनके अलावा इमारत-ए-शरिया के मौलाना सज्जाद, मौलाना हाफ़िज-उर-रहमान, तुफ़ैल अहमद मंगलौरी जैसे कई और लोग थे, जिन्होंने बहुत सक्रियता के साथ मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति का विरोध किया था।
कार्यक्रम अध्यक्ष प्राचार्य डॉ अशोक कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते कहा कि इतिहास की ध्वनि को सुनना होगा और कुछ नए और कठिन समाधान तलाशने ही होंगे। वर्तमान के शोर में उस ध्वनि को अनसुना करने से कोई हल नहीं निकलेगा। दोनों समुदायों की चिंताओं और विवेक पर भरोसा करना पड़ेगा। विवाद के विषयों पर संवाद करना होगा। डॉ ज्योतिश्वर मिश्र और डॉ इंदुभूषण द्विवेदी ने भी गोष्ठी के शीर्षक को रेखांकित किया। संचालन डॉ कुलदीप पांडेय ने किया।

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