मीडिया पानी की तरह है जिसमें हम जैसा रंग डालेंगे उसका वैसा ही रंग दिखेगा..!*
एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभा सकते सोशल व प्रिंट एवं चैनल मीडिया
नफरत देश को नुकसान पहुंचाती,और महोब्बत तरक्की..
धीरे धीरे सोशल मीडिया व कुछ चैनलों व अखबारों में सही सूचना और अफवाह में अंतर मिटता जा रहा है दिल्ली में ही नहीं वरन देश भर में अराजकता सोशल मीडिया और कुछ मीडिया कर्मियों की पहचान बनती जा रही है! दंगे भड़काने के पहले और अब के खुराफातों में अंतर भी स्पष्ट देखा जाने लगा है अब सोशल मीडिया पर भड़काऊ बातें लिखकर दंगा भड़काया जाता है! इतना ही नहीं दंगा भड़काने के बाद उसकी आग में घी भी यही कुछ मीडिया कर्मी व सोशल मीडिया द्वारा ही डाला जाता है! दरअसल सोशल मीडिया पानी की तरह है जिसमें हम जैसा रंग डालेंगे उसका वैसा ही रंग दिखेगा!समझदारी पैदा करेंगे तो समझदारी दिखेगी और विभाजनकारी तत्व डालेंगे तो वैसा ही दिखेगा! सही मायनों में अच्छे और बुरे दोनों का ही आईना है मीडिया! अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में आम जनता के बीच गलत जानकारी और नफरत फैलाने वाले मुद्दे भी फलफूल रहे हैं!एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभा सकता है मीडिया !जब कि देखने मे आ रहा हैं कि सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बांटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है!वर्तमान में कुछ डिजिटल चैनलों व कुछ अखबारों की प्रस्तुत की जाने वाली निरर्थक चर्चाओं व प्रिंट मीडिया पर परोसी जा रही शोध रहित स्तरहीन सनसनीखेज़ खबरों असभ्य वार्तालाप असंस्कारी आचरण शाब्दिक पत्थरबाजियों तथा नकारात्मकता से देश का टेलीविज़न दर्शक श्रोता एवं समाचार पाठक परेशान हैं! परिणामस्वरूप समाज में वैमनस्य आक्रोश नफरत वैचारिक व्यावहारिक मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रदूषण फैल रहा है जिसे हम सभी अनुभव तो कर रहे हैं परंतु व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं! अप्रत्यक्ष रूप से सोची समझी साजिश से जैसे हमारी मानसिकता तथा जीवन परिवेश को बदलने का कोई सोचा समझा प्रयास किया जा रहा हो!कुल मिलाकर मौजूदा दौर में सोशल मीडिया हमारे लिए वरदान के साथ ही अभिशाप की तरह भी सामने आ रहा है।