स्टाफ की कमी से कुष्ठ रोगी नहीं हो पा रहे चिन्हित

in #mandla2 years ago

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  • जागरूकता की कमी से जांच नहीं करा रहे मरीज
  • वर्ष 2021-22 में मात्र 53 रोगी
  • जिला कुष्ठ नियंत्रण कार्यालय का भवन भी जर्जर

मंडला. जिले में जागरूकता की कमी और प्रशासन की लचर व्यवस्था के चलते लोग आज भी झोलाछाप के चक्करों में अपनी जान दाव पर लगाते है। गंभीर बीमारी का सही समय में सही उपचार नहीं मिलने के कारण बीमारी और बढ़ जाती है। आदिवासी जिले में लगातार कुष्ठ रोगी मिलने का सिलसिला जारी है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टर कुष्ठ रोग को खत्म करने के वजाए बीमारी को बढ़ा रहे है। जिला मुख्यालय में स्टाफ की कमी के कारण इलाज तो दूर कुष्ठ रोगियों की पहचान तक नहीं हो पा रही है। जिले में रजिस्टर्ड कुष्ठ रोगियों की संख्या वर्ष 2021-22 में 53 रही है, जबकि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक है।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रति 10 हजार की जनसंख्या पर एक मरीज के आंकड़े को कम किए जाने का लक्ष्य है जो वर्तमान में कुष्ठ रोगियों की संख्या के अनुसार इस लक्ष्य को पूरा भी करती है। सरकारी रिकॉर्ड में यह संख्या कम जरूर है वास्तविकता में कुष्ठ रोगों से पीडि़त मरीजों की संख्या अधिक हो सकती है, क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि कुष्ठ रोगों के लक्षण दिखाई देने पर रोगी अस्पतालों में न जाकर मनमाने तरीके दवाएं खाते रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनका यह रोग कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो जाएगा कुष्ठ रोग के प्रति जागरूकता की कमी नए संक्रमितों को जन्म दे रही है। कई बार इससे ग्रसित मरीज सामाजिक प्रतिष्ठा के भय से इलाज नहीं कराते हैं या फिर झोलाछाप की शरण में चले जाते हैं, या फिर झाड़ फूंक से इलाज कराने की कोशिश करते हैं। इससे आराम मिलने की जगह मर्ज बढ़ता चला जाता है। ऐसे मरीजों की जानकारी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज भी नहीं हो पाती है।

  • स्टाफ की कमी बनी परेशानी :
    कुष्ठ रोग निवारण कार्यक्रम को संचालित करने के लिए स्टाफ की कमी भी समस्या है। इसके चलते आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद लेनी पड़ती है। कुष्ठ कार्यक्रम के लिए 26 पद स्वीकृत हैं लेकिन इसमें मात्र 6 कर्मचारी-अधिकारी ही पदस्थ हैं। जो जिले में कुष्ठ रोगियों की पड़ताल और उनके उपचार को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। दूसरी ओर समाज में यह धारणा है कि कुष्ठ रोग पूर्व जन्म के पाप का फल है और कोई दैवीय प्रकोप है। अनुवांशिकी और छूत का रोग है। डॉक्टर ऐसी धारणाओं को खारिज करते हैं।

  • 6 से 12 महीने तक इलाज से रोग से मुक्ति :
    जानकारी अनुसार कुष्ठ रोग ला इलाज बीमारी नहीं है। कुछ दवाओं के नियमित उपयोग से मरीज कुछ ही समय में पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है। इस बीमारी के इलाज के लिए छमाही और 12 महीने का एमडीटी उपचार कोर्स उपलब्ध है। समय में इलाज नहीं लेने से मरीज इस बीमारी का वाहक भी बन सकता है। जिनमें पर्याप्त रोग प्रतिरोधक क्षमता है, उन्हें यह नहीं हो पाता लेकिन यदि किसी व्यक्ति के शरीर में ये वायरस प्रवेश कर गए हैं तो इसका असर आने वाले 10-15 सालों बाद भी दिखाई दे सकता है।

  • जर्जर भवन में संचालित हो रहा कार्यालय :
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    जिला अस्पताल के सामने जिला कुष्ठ नियंत्रण इकाई कार्यालय जर्जर भवन में संचालित किया जा रहा है जिसकी छतों से आए दिन छपाई गिरती रहती है कुछ दिनों पहले सीलिंग की छपाई का बड़ा हिस्सा भरभराकर गिर गया था हालांकि यह रात में गिरा था जिससे कोई बड़ा हादसा नहीं हो सका यदि दिन में गिरता हो यहां बैठने वाले कर्मचारी को निश्चित चोट पहुंचती।