मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर से शोक में डूबा मैनपुरी, बाजार रहे बंद
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन से आमजन के साथ ही हर दल के नेता और कार्यकर्ता व्यथित हैं। मैनपुरी के विकास की जब भी बात होगी, तब लोग उन्हें याद करेंगे। सैफई (इटावा) भले ही उनकी जन्मभूमि है, लेकिन मैनपुरी उनकी कर्मभूमि रही है। शायद यही वजह है कि उनके निधन के बाद मैनपुरी के करहल में सुबह से ही दुकानों के शटर नहीं उठे। बाजार में सन्नाटा पसरा दिखाई दिया। हर व्यक्ति के जुबान पर मुलायम सिंह यादव के चर्चे थे। वहीं कुसमरा मंडी में आड़तियों ने शोक सभा की।
दिलों पर करते हैं राज मुलायम सिंह यादव का ठेठ देहाती अंदाज मतदाताओं के दिलों पर हमेशा छाया रहा। चुनावी सभाओं में हजारों की भीड़ में सहयोगियों का नाम लेकर उनका हालचाल पूछने की अदा के लोग हमेशा कायल रहे। इसी अदा के चलते नेताजी मुलायम सिंह यादव का जादू अंतिम समय तक लोगों को लुभाता रहा और वे दिलों पर राज करने लगे।
इटावा की जसवंतनगर विधानसभा से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करने वाले मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 1984 में मैनपुरी को कर्मभूमि बनाकर औरैया के रहने वाले रवींद्र सिंह चौहान को चुनाव लड़ाया, लेकिन उनको जिता नहीं सके। पहली बार मुलायम सिंह ने गांव-गांव जाकर मतदाताओं से वोट भी मांगे।
वर्ष 1989 से उनके लगातार उनके प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहे। मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र की मुलायम सिंह यादव की चुनावी सभाएं लोगों को आज भी याद हैं, जिनमें वह अपने सहयोगियों को नाम लेकर पुकारते थे।
करहल का मुख्य बाजार भी बंद -
आजाद हिंद इंटर कॉलेज के पूर्व प्रवक्ता 92 साल के नाथूराम यादव बताते हैं कि नेताजी जनता के नेता थे, जिससे एक बार मिले उसके हो गए। जिस क्षेत्र में चुनावी सभा की वहां के लोगों पर अपने ठेठ देहाती अंदाज की छाप छोड़ी।
जैन इंटर कॉलेज और नर सिंह इंटर कॉलेज के मैदानों पर की चुनावी सभाओं में लोगों का मंच से नाम लेकर न केवल हालचाल पूछा, बल्कि चुनाव जिताने को भी कहा। औंछा क्षेत्र के नगला नया के 82 साल के विद्याराम यादव बताते हैं कि पड़रिया चौराहे पर नेताजी की सभा का लोगों को इंतजार रहता था। हर सभा में नेताजी मंच से मैदान में भीड़ के बीच बैठे अपने पुराने सहयोगियों को खड़ा करके चुनावी माहौल की जानकारी लेते थे। नेताजी वास्तव में धरती पुत्र थे।