त्याग धर्म* भोग तो भोग अधर्म है

in #mahaveer2 years ago

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त्याग धर्म भोग तो भोग अधर्म है

जिस व्यक्ति के जीवन में भोगों का बाहुल्य रहता है त्याग की बृत्ति न्यूनता रहती है वह व्यक्ति अपने जीवन में सुख का अनुभव नहीं कर सकता क्योंकि सर्वोच्च ऐश्वर्य भी एक दिन बिल्कुल नष्ट हो जाता हैं।
भगवान महावीर ने अपने महल का त्याग किया शांति पाने की तलाश में और आप शांति का त्याग कर रहे हो महल की तलाश में उक्त बात नगर में चल रहे पर्यूषण पर्व के दौरान चर्या शिरोमणि आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य ब्रह्मचारी मनोज भैया सोनीपत ने त्याग धर्म के महत्व को समझाते हुए महावीर मार्ग स्तिथ जैन मंदिर में कही।
उन्होंने त्याग धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि आज सारा संसार स्त्री ,जमीन ,पैसे के चक्कर में घूम रहा है जो व्यक्ति इनसे दूर रहता है वह दूसरा परमेश्वर है इससे निष्कर्ष यह एक ही मनुष्य को सब कुछ त्याग करना चाहिए।

साथ ही भैया जी ने दान और त्याग के बारे में अंतर समझाते हुए कहा कि अपनी चंचल लक्ष्मी में से जो वस्तु किसी अन्य व्यक्ति को या धर्म कार्य में दी जाती है वह दान है इसके उल्टा बुरी चीज को छोड़ना त्याग है आज के दिन भैया जी ने सभी से कहा मानव मात्र को सप्त व्यसनों का त्याग करना चाहिए वही उन्होंने समाज के सभी लोगों से कई तरह के नियम दिलवाये साथ ही प्रतिदिन देव दर्शन अभिषेक आदि की प्रतिज्ञा भी दिलवाई इसके पूर्व ब्रह्मचारी ब्रह्मचारी मनोज भैया ने प्रातः के समय मुख्य मार्ग पर स्तिथ श्री नेमेश्वर दिगंबर जैन मंदिर में भगवान की शांति धारा कराई इस दिगंबर जैन मंदिर में शांति धारा करने का शौभाग्य नेहील भैया चंद्रभान जैन अनुराग जैन रितेश जैन पवन जैन कैलाश मामा आदि को प्राप्त हुआ।
इसके बाद भैया जी के द्वारा महावीर मार्ग स्थित मंदिर में भी शांति धारा कराई गई जिसका सौभाग्य चौधरी अशोक कुमार अनिल कुमार परिवार एवं दूसरी तरफ से शांति धारा करने का सौभाग्य बच्चू लाल अरुण कुमार आशीष अमित परिवार को प्राप्त हुआ।
रात्रि कालीन प्रवचन के बाद संस्कृतिक कार्यक्रम एवं भजन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।