आओ विधेयक से कानून बनने की प्रक्रिया समझें

आओ विधेयक से कानून बनने की प्रक्रिया समझें

केंद्र सरकार ने पर्सनल डेटा प्रोटक्शन बिल 2021 वापस ले लिया है

सरकार ने जेपीसी के प्रस्तावित 81 संशोधनों और 12 सिफारिशों के कारण पीडीपी बिल वापस लिया - संशोधित अंदाज में बिल लाकर इस दशक को भारत की तकनीक बनाने में सफल होंगे - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र देश, सर्वधर्म समभाव की भावना, धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक, सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास का जुनून और राष्ट्रभक्ति के जज्बे के साथ हम आज़ादी का 75वां अमृत जयंतीमहोत्सव मना रहे हैं। 3 अगस्त 2022 को लाल किले से नए संसद भवन तक तिरंगा रैली निकाली, 13-15 अगस्त 2022 तक हर घर तिरंगा लहराएगा अभियान का संकल्प सहित हम लोकतांत्रिक खूबसूरती का जश्न हम वर्ष भर से मनाते देखते रहते हैं।
इस खूबसूरती का सारा विश्व कायल है जिसे देखने हजारों सैलानी भारत आते हैं। यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था है ही ऐसी है कि कोई भी कानून बनाने के लिए संसद के दोनों सदनों में पास कराना, फिर राष्ट्रपति के साइन होने के बाद ही कानून बनता है। यदि संसद में कानून की धाराओं को लेकर गतिरोध उत्पन्न होता है तो ज्वाइंट पार्लियामेंट्री क मेंटी (जेपीसी) में यह विधेयक जाता है और उसकी सिफारिशों और संशोधनों के अनुसार बिल में परिवर्तन कर फिर पेश कर प्रक्रिया अनुसार कानून बनाया जाता है। इसलिए कोई भी कानून या उसमें संशोधन बनाना आसान नहीं होता अर्थात लोहे के चने चबाने पड़ते हैं जो हमें दिनांक 3 अगस्त 2022 को देखने को मिला कि केंद्र सरकार ने पर्सनल डेटा प्रोटक्शन विधेयक 2021 को जेपीसी के प्रस्तावित 81 संशोधनों और 12 सिफारिशों के चलते सप्लीमेंट्री बिजनेस लिस्ट में वापस लिए जाने के लिए पीडीपी बिल का भी नाम था इसलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सहायता से इस आर्टिकल के माध्यम से इस बिल को वापस लेने पर चर्चा और आओ विधेयक से कानून बनने की प्रक्रिया समझने पर चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम किसी भी विधेयक के कानून बनने की प्रक्रिया की करें तो किसी भी क्षेत्र की परिस्थितियों और जरूरतों के आधार पर नियंत्रण करने उस विषय पर कानून बनाने के लिए सर्वे, उस का प्रारूप तैयार कर प्रथम वाचन, कैबिनेट में पास करना, राजपत्र में प्रकाशन, दोनों सदनों में चर्चा, स्थाई समिति को भेजा जाना, संशोधन सिफारिशों पर परिस्थितियों अनुसार प्रक्रिया में दोनों सदनों में पास कराकर राष्ट्रपति की सही से कानून का दर्जा प्राप्त होता है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 3 अगस्त 2022 को पीडीपी बिल की वापसी की करें तो, सरकार ने बुधवार को पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल को वापस ले लिया। केंद्रीय सूचना और तकनीकी मंत्री ने इस बिल के वापस लिए जाने की जानकारी दी। संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) ने इस बिल की डिटेल में छानबीन की और 81 संशोधन और 12 सिफारिशों का प्रस्ताव दिया। ये सभी प्रस्ताव डिजिटल इकोसिस्टम के लीगल फ्रेमवर्क के लिए दिए गए। मंत्री ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति यानी कि जेपीसी की रिपोर्ट के अनुसार, एक विस्तृत कानूनी फ्रेमवर्क पर काम जारी है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 को वापस लेने और एक नए विधेयक, जो विस्तृत कानूनी फ्रेमवर्क के अनुरूप हों, को लाए जाने का प्रस्ताव है।
भारत सरकार ने साल 2019 में लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 पेश किया था। 16 दिसंबर, 2021 को संसद के दोनों सदनों के सामने संशोधित विधेयक के साथ एक डिटेल रिपोर्ट पेश की गई थी।
साथियों बात अगर हम इस बिल के वापसी के कारणों की करें तो, देश में डेटा सुरक्षा कानून कई सालों से विचाराधीन है, वहीं मौजूदा बिल ने बड़ी टेक कंपनियों को चिंता में डाल दिया था। कई सिविल सोसायटी समूहों ने भी बिल में कुछ प्रावधानों की आलोचना की थी, इसमें एक निगरानी की अनुमति भी है जिस पर लंबे दिनों से विरोध चल रहा था अब सरकार ने इस बिल को वापस ले लिया है तो नए सिरे से विधेयक आने की संभावना है। नए बिल में जेपीसी के प्रस्तावों को शामिल किया जा सकता है।
जब से यह बिल पेश किया गया था, तब से विपक्षी दलों के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा था। दो पार्टियों ने संसद में इस बिल के खिलाफ सबसे ज्यादा आवाज उठाई। इसके बाद बिल को सरकार ने जेपीसी के पास भेज दिया गया, विपक्ष का कहना था कि डेटा गोपनीयता कानून लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है, लिहाजा इस कानून को पारित करने का कोई औचित्य नहीं। विपक्ष का यह भी आरोप था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को लोगों के पर्सनल डेटा तक पहुंच बनाने का बड़ा अधिकार मिलता है जो कि ठीक नहीं है। फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां भी इस कानून के खिलाफ थीं, उनको डर था कि इस कानून के कारण अन्य़ देशों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और बाकी देश भी स्थानीयकरण की नीति लाने लगेंगें।
मसौदा विधेयक में लोगों के डाटा का इस्तेमाल उनकी अनुमति से ही करने का प्रावधान किया गया था। साथ ही डाटा संग्रह के लिए देश में ही सर्वर स्थापित करने का जिक्र था। विधेयक में प्रस्ताव था कि कानून तोड़ने पर कंपनी पर 15 करोड़ या उसके ग्लोबल टर्नओवर के 4 परसेंट तक का जुर्माना लगाया जाए। संवेदनशील डेटा को भारत के अंदर सर्वर पर स्टोर करना होगा।
राज्य मंत्री ने कहा सरकार इसके बदले भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बिल का मसौदा तैयार कर इसे सदन में लाएगी।उन्होंने कहा कि बिल का मसौदा इस ढंग से तैयार किया जाएगा जिसमें पीएम के ‘टेकहंड’ का विजन परिलक्षित हो।
उन्होंने कहा कि पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पर जेसीपी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि बिल में इससे जुड़ी कई चिंताओं को रेखांकित किया गया है पर यह आधुनिक डिजिटल गोपनीयता कानून के दायरे से परे है। उन्होंने कहा, निजता भारतीय नागरिकों का मौलिक अधिकार है और एक ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप साइबर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा पिछले साल डिजिटल इंडिया के छह वर्ष पूर्ण होने पर एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो उन्होंने कहा था, कि भारत एक डेटा पावरहाउस के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के प्रति भी जागरूक है और कहा कि डेटा सुरक्षा के सभी पहलुओं पर काम चल रहा है। डेटा और जनसांख्यिकीय लाभांश भारत के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करते हैं। एक साथ, हम इस दशक को 'भारत की तकनीक' बनाने में सफल होंगे।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ विधेयक से कानून बनाने की प्रक्रिया समझें।केंद्र सरकार ने पर्सनल डेटा प्रोटक्शन विधेयक 2021 वापस ले लिया है।सरकार ने जेपीसी के प्रस्तावित 81 संशोधनों और 12 सिफारिशों के कारण पीडीपी बिल वापस लिया है। संशोधित अंदाज में बिल लाकर हम इस दशक को भारत की तकनीक बनाने में सफल होंगे

IMG-20220706-WA0207.jpg-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र