गौरवशाली गुरू शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण

in #madhyapradesh2 years ago

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अपने गुरू का शताब्दी महोत्सव मनाने जैनाचार्य श्री कुलधर्म विजय जी मसा. करेंगे शिवपुरी में चार्तुमास*

100 साल पहले आचार्य विजय धर्म सूरि जी महाराज का शिवपुरी में हुआ था समाधि मरण, 9 सितम्बर से 19 सितम्बर तक मनाया जाएगा आचार्य विजय धर्म सुरि जी का शताब्दी महोत्सव

शिवपुरी। भारतीय संस्कृति में गुरू शिष्य की गौरवशाली परम्परा की जड़े कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात उदाहरण शिवपुरी में देखने को मिला। 100 साल पहले सन् 1923 विक्रम संवत 1978 को देश विदेश में ख्याति प्राप्त जैनाचार्य श्री विजय धर्म सूरि जी महाराज साहब का समाधि मरण हुआ था। उनके शरीर त्यागने केे बाद उनके शिष्य आचार्य श्री विद्या विजय जी महाराज ने अपने गुरू की याद को चिरस्मरणीय बनाने के लिए शिवपुरी में वीर तत्व प्रकाशक मंडल (बीटीपी) की स्थापना की। शिक्षा और खासकर धार्मिक शिक्षा के क्षेत्र मेें इस संस्था ने इतना बेहतर काम किया कि इसकी ख्याति पूरे देश में फैल गई और इस संस्था से निकले विद्धवानों ने अपने ज्ञान की छाप छोड़ी। बीटीपी के समृद्ध पुस्तकालय में धार्मिक गं्रथों और शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए भी दूर-दूर से लोग आते थे। लेकिन समय के प्रभाव से यह संस्था धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खो गई। लेकिन इतने लंबे अंतराल के बाद आचार्य श्री विजयधर्म सूरि जी के महाराज साहब की शिष्य परम्परा के प्रसिद्ध जैन संत और आचार्य श्री कुलधर्म विजय जी महाराज साहब अपने दादा गुरू देव विजय धर्म सूरि जी की समाधि देखने शिवपुरी आए और अपने उत्कृष्ट शिष्य धर्म का पालन करते हुए उन्होंने श्री विजय धर्म सूरि जी महाराज साहब का शताब्दी महोत्सव आयोजित करने के लिए शिवपुरी श्री संघ की विनती को स्वीकार कर चार्तुमास करने का निर्णय लिया। यह भी ईश्वरीय संयोग रहा कि उनका आगमन शताब्दी महोत्सव के आयोजन से जुड गया।
शिवपुरी में चार्तुमास करने आ रहे परम पूज्य आचार्य श्री कुलचंद्र सुरिश्वर जी महाराज और पन्यास प्रवर पूज्य मुनि श्री कुलदर्शन विजय जी महाराज साहब ने अपने गुरू के लिए समर्पित समाधि मंदिर पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए जानकारी दी कि शिवपुरी में वह चार्तुमास गुरू की समाधि भूमि पर धर्म जागरण, गुरू के प्रति अपने धर्म तथा शिष्य परम्परा का निर्वहन करने के लिए कर रहे हैं। उनके चार्तुमास काल में ही आचार्य विजय धर्म सूरि जी महाराज साहब का शताब्दी महोत्सव है और यह महोत्सव शिवपुरी में 9 सितम्बर से 19 सितम्बर तक समाधि मंदिर पर अनेक धार्मिक आयोजनों के साथ भव्य रूप में मनाया जाएगा। इस आयोजन की जोरदार तैयारियां शुरू हो गई हैं। पन्यास प्रवर श्री कुलदर्शन विजय जी महाराज साहब ने जानकारी देते हुए बताया कि शताब्दी महोत्सव के पूर्व जैनाचार्य श्री कुलचंद्र सुरिश्वर जी महाराज साहब ठाणा 3 और परम पूज्प साध्वी शासन रत्ना श्री जी ठाणा 6 का भव्य नगर प्रवेश 2 जुलाई को शिवपुरी में होगा। चार्तुमास प्रवेश के लिए प्रवेश यात्रा का शुभारंभ समाधि मंदिर से 2 जुलाई को सुबह 8 बजे होगा और नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए यह शोभा यात्रा प्रात: साढ़े 9 बजे पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर कोर्ट रोड पहुंचेगी। जहां धर्म सभा के पश्चात साधार्मिक वात्सल्य का आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन में भाग लेने के लिए देशभर से अनेक जैना श्रावक और श्राविकाएं भी शिवपुरी पहुंचेंगी। पन्यास प्रवर श्री कुलदर्शन विजय जी ने जानकारी देते हुए बताया कि समूचा आयोजन श्वेताम्बर जैन समाज शिवपुरी, बीटीपी ट्रस्ट और भक्त मंडल द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। चार्तुमास कमेटी के संयोजक तेजमल सांखला, श्वेताम्बर समाज के अध्यक्ष दशरथमल सांखला, सचिव विजय पारख, प्रवीण जैन लिगा और मुकेश भांडावत को मुख्य जिम्मेदारियां सौंपी गई हें।
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शिवपुरी को गुरूदेव विजयधर्म सूरि जी ने किया था धन्य
पन्यास प्रवर श्री कुलदर्शन विजय जी ने जानकारी देते हुए बताया कि गुरूदेव विजयधर्म सूरि जी चार्तुमास करने के लिए आगरा जा रहे थे। शिवपुरी में उनका कभी आगमन नहीं हुआ। लेकिन आगरा चार्तुमास के दौरान जब वह शिवपुरी से निकले तो अचानक उनकी तबीयत खराब हुई और यहीं उनका समाधि मरण हुआ। अपने गुरू की स्मृति को शिष्य विद्या विजय जी ने स्मरणीय बनाने के लिए यहां बीटीपी मंडल की स्थापना की।
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गुरू की कृपा से गुरूदेव ने पाईं थीं आध्यात्मिक ऊंचाईयां
आचार्य विजयधर्म सूरि जी जिनका शिवपुरी में शताब्दी महोत्सव मनाया जा रहा है, के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी देते हुए पन्यास प्रवर श्री कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि वह गुजरात में महुआ के निवासी थे। बचपन से ही उनकी शोहबत बहुत खराब थी। वह तमाम बुराईयों में लिप्त थे और इससे परेशान आकर उनके माता-पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया था। वह भागकर भाव नगर पहुंचे। जहां उनके लिए सारे दरबाजे बंद मिले। लेकिन एक दरबाजा खुला हुआ था, वह था जैन उपाश्रय स्थल। यहां जैन साधू विराजमान रहते हैं। यहीं उनका गुरू से साक्षातकार हुआ और गुरू ने उनके जीवन की दिशा बदल दी तथा उनके जीवन को परिपूर्णता प्रदान की।