जानकारी छुपाने पर जारी हुई नोटिस

IMG_20220704_220719.jpgRTI आवेदन के निराकरण में अपनी गलती छुपाने के लिए नोटशीट में कांटछाट कर अपने ही सीनियर अधिकारी को फंसाने का एक मामला सूचना आयोग के सामने आया है। फर्जीवाड़े के इस आरोप पर मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने जाँच कर उपायुक्त विकास जिला पंचायत कटनी कृष्णकांत पांडे के विरुद्ध भोपाल में पंचायत विभाग विकास आयुक्त को अनुशासनिक कार्रवाई के लिए निर्देशित किया है।*

प्रभात कुमार द्विवेदी ने आरटीआई आवेदन जिला पंचायत सिंगरौली में दायर किया गया था। जानकारी नहीं मिलने पर द्विवेदी ने प्रथम अपील दायर की और उसके बाद सूचना आयोग में द्वितीय अपील दायर की। जब आयोग ने इस मामले में जांच की तो पता चला आरटीआई आवेदन की फाइल तत्कालीन परियोजना अधिकारी कृष्णकांत पांडे के पास थी। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस प्रकरण में पांडे को जमाने का कारण बताओ नोटिस जारी किया तो पांडे ने जानकारी नहीं मिलने के लिए तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ सिंगरौली प्रियंक मिश्रा जो अब वर्तमान में कलेक्टर कटनी है को जवाबदेह ठहराया। अपने पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए पांडे ने तीन नोटशीट आयोग के सामने पेश की जिसमें उनके द्वारा आरटीआई आवेदन का प्रकरण को प्रियंक मिश्रा को मार्क किया गया था। पांडे का कथन था कि प्रियंक मिश्रा के पास फाइल भेज दी थी। और मिश्रा ने इस मामले में आगे कार्यवाही नहीं की है तो प्रियंक मिश्रा ही दोषी हैं। आयोग ने इस प्रकरण मे प्रियंक मिश्रा को भी जुर्माने का नोटिस जारी कर दिया था। मिश्रा ने बाद में पांडे के कथन को असत्य बताया और कहा कि उनके पास कोई भी फाइल नहीं भेजी गई थी। साथ ही मिश्रा ने इस नोटशीट की जांच करने के लिए सिंगरौली के जिला पंचायत सीईओ साकेत मालवीय को लिखा। जिला पंचायत सीईओ सिंगरौली साकेत ने अपने प्रतिवेदन में बताया कि नोट शीट पर काट छांट की गई है और नोटशीट कूट रचित प्रतीत हो रही है। इसके बाद आयोग द्वारा के के पांडे को अपने आरोपों को एफिडेविट के रूप में आयोग के समक्ष पेश करने को कहा गया। सिंह ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यह जांच का विषय है कि नोटशीट में जो काटछांट हुई है वह सूचना आयोग के इस प्रकरण में सुनवाई के दौरान हुई है या फिर सुनवाई से पहले आरटीआई आवेदन दायर होने के बाद हुई है।

राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा इन सभी दस्तावेजों की जांच की गई तो नोटशीट की नंबरिंग पर भी ओवर राइटिंग दिखी। सिंह ने जो नोटशीट प्रियंक मिश्रा को मार्क हुई थी उसी को मिश्रा के पास भेजने का प्रमाण पेश करने के लिए के के पांडे को कहा था पर पांडे कोई भी प्रमाण आयोग के समक्ष पेश करने में असफल रहे। सिंह द्वारा इस प्रकरण में की गई जांच में यह भी तथ्य सामने आया की पांडे लोक सूचना अधिकारी के पद पर थे ही नहीं और आरटीआई आवेदन पर उन्हें कोई कार्रवाई करने की पात्रता भी नहीं थी। ऐसी स्थिति में आरटीआई अधिनियम के तहत पांडे की भूमिका लोक प्राधिकारी के रूप में स्थापित होती है और उन्हें अधिनियम के अनुरूप 5 दिन के अंदर संबंधित अधिकारी को आरटीआई आवेदन को अंतरित करना था। लेकिन पांडे द्वारा आरटीआई आवेदन को अंतरित ना करके अधिनियम का उल्लंघन किया।

सूचना आयुक्त सिंह ने अपने आदेश में कहा है नोटशीट में छेड़छाड़ करना भारतीय दंड संहिता की धारा 463, 464 और 465 के तहत दंडनीय अपराध है। वही गलत एफिडेविट प्रस्तुत करना भारतीय दंड संहिता की धारा 191 और 192 के तहत दंडनीय है। सिंह ने अपने आदेश में भोपाल के विकास आयुक्त पंचायत विभाग को निर्देशित किया कि आगे और जाँच कर इस संबंध में सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के तहत पांडे के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई सुनिश्चित की जाए और एक महीने में आयोग को विभाग द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी भी दी जाए।

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अच्छी कवरेज