अपर महाधिवक्‍ता बर्खास्‍त: साहब ने चुहिया मारी, अध्‍यक्ष मारें ठहाका

in #lucknow2 years ago

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आज की महफिल एक डबल-एजी यानी अपर महाधिवक्‍ता के केंद्र में है। लेकिन इसके आसपास बड़े-बड़े दिग्‍गज या उनकी परछाइयां दिख रही हैं। इन सायों में एक तो हैं हाईकोर्ट के एक बड़े जज साहब, जिन पर आरोप है कि उन्‍होंने अपनी न्‍यायिक सरहद पार कर ली है। दूसरे हैं उत्‍तर प्रदेश सचिवालय के एलआर यानी न्‍याय और विधायी सचिव। तीसरे हैं हाईकोर्ट के वकीलों की शीर्ष-संस्‍था अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष, जिनके बारे में अब खुलेतौर पर आरोप लग रहे हैं कि एक बड़ी ओहदेदार महिला वकील के प्रति हुए किसी कृत्‍य पर वे न तो बोले हैं, और न ही बार एसोसियेशन ने उस पर अपना मुंह खोला है।

वकीलों का अड्डा: मजा लूटैं गाजी मियां, धक्का सहे मुजावर
जिनको ग्रामीण जीवन का तनिक भी अहसास होता है, उन्‍हें धोबी का महत्‍व खूब पता होगा। घर से लेकर घाट तक भले ही किसी कोई ऐसा विशेषाधिकार न हो, लेकिन इस मामले में धोबी सर्वोच्‍च विशेषाधिकार रखता है। खुश है तो अमुक को खुशियों से मालामाल कर देगा, लेकिन अगर किसी व्‍यक्ति के व्‍यवहार पर नाराज हुआ, तो वह अमुक व्‍यक्ति के कपड़ों को छियोराम-छियोराम की तरह फाड़ दे। बाद में भले ही चिल्‍ल-पों घर-गली में होती रहे। लेकिन इतना जरूर है कि इसके बावजूद धोबी तो मूंछों में खूब मुस्‍की मारा करता है। रामचरित मानस में गलती किसकी भी, लेकिन धोबी ने अपनी पत्‍नी का बहाना लेकर राम का दाम्‍पत्‍य-जीवन ही बर्बाद कर डाला। मगर जिसका कपड़ा फड़ता है, वह जार-जार रोता है, बिलखता है, मोहल्‍लेवाले भी गमगीन होकर उसके गमों में मलहम लगाने की चेष्‍टा करते हैं। लेकिन ग्राम प्रधान इस पूरे प्रकरण पर दूर खड़ा होकर खीखीखी करता हंसता रहता है। और जब खुशी बाहर निकलने लगती है तो वह जमीन पर लोटपोट कर और अपना पेट दबा-दबा कर अपनी हंसी जबर्दस्‍त फारिग करता है।
दरअसल, यह कोई एक घटना नहीं, बल्कि हाईकोर्ट से लेकर मुख्‍यमंत्री सचिवालय के लोगों का एक युग्‍म है, एक गठजोड़। जाहिर है कि यह दोनों ही परिसर बेहद गम्‍भीर प्रवृत्ति माने जाते हैं, जहां बहुत सोच-समझ कर बात कही जाती है, तर्क किया जाता है और उस पर फैसले किये जाते हैं। लेकिन आजकल यहां गम्‍भीरता के बजाय हंसी-ठट्ठा ज्‍यादा ही है। सचिवालय के एक बड़े बाबू ने हाईकोर्ट की एक अपर महाधिवक्‍ता की नौकरी पर लात मार दिया। इससे शर्मनाक और क्‍या होगा कि आम आदमी को न्‍याय दिलाने वाला एक वकील आजकल हाईकोर्ट में अपने लिए न्‍याय की अरदास वाली अर्जी लिये दौड़ रहा है।
सूत्रों के अनुसार घटनाक्रम हाईकोर्ट में जस्टिस डीके सिंह की अदालत में शुरू हुआ, जिसमें एक मुकदमे पर डबल-एजी यानी अपर महाधिवक्‍ता ज्‍योति सिक्‍का को अपनी दलील देनी थी। लेकिन एक अंतिम संस्‍कार में शामिल होने के चलते ज्‍योति सिक्‍का अदालत में नहीं आ पायीं। अदालत ने दोपहर बाद का समय लगा दिया, लेकिन ज्‍योति सिक्‍का तब भी नहीं आ पायीं। इस पर जस्टिस डीके सिंह ने ज्‍योति सिक्‍का की गैरहाजिरी पर फैसला करते हुए सरकार से उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई करने को कहा। फिर क्‍या था, उप्र सचिवालय के न्‍याय और विधायी सचिव ने ज्‍योति सिक्‍का को डबल-एजी पद से बर्खास्‍त कर दिया।
एक सूत्र बताते हैं कि उस अदालत में उनके एक वकील ने मामला अलग तरीके से पेश किया। किसी सूत्र का कहना है कि यह वकील-दम्‍पत्ति पहले से ही अदालत के निशाने पर थे। एक वकील ने बताया कि ज्‍योति सिक्‍का कोई जिम्‍मेदार अपर महाधिवक्‍ता नहीं रही हैं। चर्चाएं तो कुछ जजों के रवैयों पर भी चल रहा है। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक जस्टिस को यह विशेषाधिकार कैसे दे दिया गया कि वह किसी मामले पर किसी सरकारी वकील को उसके पद से हटाने के लिए कोई आदेश सरकार को दे डाले।
इस पर जोरदार हंगामा खड़ा हो गया है, सिवाय अवध बार एसोसियेशन के। एसोसियेशन इस पूरे मामले में कुछ इस तरह खामोश है कि मानो वहां कोई मामला हुआ ही नहीं। लेकिन विवाद तो जबर्दस्‍त चल ही रहा है। इकलौते एक वकील हैं इस मामले पर पूरी संजीदगी के साथ भिड़ गये हैं। इनका नाम है डॉक्‍टर एलपी मिश्र। उन्‍होंने इस मामले को न केवल संज्ञान में लिया, बल्कि जस्टिस डीके सिंह के फैसले के बाद ज्‍योति सिंह की बर्खास्‍तगी के विरोध में एक विशेष याचिका भी दायर की है। जोरदार बहस के बाद अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।

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