योगी आदित्यनाथ: छात्र नेता अजय से 'मुख्यमंत्री-महाराज' बनने का दिलचस्प सफ़र

in #lucknow3 years ago

NEWS DESK: WORTHEUM, PUBLISHED BY, SURYA KANT SINGH, 15 MARCH 2022 10:00 AM IST
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साल 2005 में संसद में सांसद आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश में मतगणना पूरी नहीं हुई है मगर अभी तक आ रहे रूझानों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे चल रही है. रूझान यदि आख़िरी नतीजे में बदलते हैं तो योगी आदित्यनाथ फिर प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने उतरे योगी प्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री होंगे जो पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता में लौटेंगे. पढ़िये योगी आदित्यनाथ के महंत से मुख्यमंत्री बनने के सफ़र की कहानी.

वे "मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज" कहलाना पसंद करते हैं. ट्विटर के उनके आधिकारिक अकाउंट से किए हर ट्वीट में उनका नाम इसी तरह लिखा जाता है.

ट्विटर के उनके आधिकारिक अकाउंट में उनका परिचय कुछ इस तरह लिखा गया है - 'मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश); गोरक्षपीठाधीश्वर, श्री गोरक्षपीठ; सदस्य, विधान परिषद, उत्तर प्रदेश; पूर्व सांसद (लोकसभा-लगातार 5 बार) गोरखपुर, उत्तर प्रदेश.'

भारत के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब एक जन-प्रतिनिधि संवैधानिक पद पर रहते हुए न सिर्फ़ अपनी धार्मिक गद्दी पर भी विराजमान हो, बल्कि राजकाज में भी उसकी गहरी छाया दिखती हो.

महंत आदित्यनाथ योगी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक सत्ता भी उनके हाथ आई, इसी बात को हमेशा ज़ाहिर करने के लिए 'मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज' का संबोधन चुना गया.
मुख्यमंत्री और महाराज का ये मिला-जुला नाम, सिर्फ संबोधन नहीं है, यह उनके धार्मिक-राजनीतिक सफ़र की ताक़त, ख़ासियत और कुछ लोगों की नज़रों में ख़ामी भी है.

चरण स्पर्श की संस्कृति

साल 2017 में उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर प्रेस क्लब ने उन्हें न्योता दिया.

गोरखपुर में वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह याद करते हैं, "जैसे ही मुख्यमंत्री सभा में दाखिल हुए, संचालन कर रहे पत्रकार अपनी बात रोककर बोले - देखिए, हमारे मुख्यमंत्री आ गए, हमारे भगवान आ गए."

"इसके बाद मुख्यमंत्री मंच पर जाकर बैठ गए और वहां मौजूद सभी पत्रकार उनका स्वागत करने के लिए एक-एक कर मंच पर गए और उनके पैर छुए."
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साल 2017 में मेयर चुनाव की बीजेपी प्रत्याशी प्रमिला पांडे मुख्यमंत्री के चरण स्पर्श करती हुईं

पैर छूकर बड़ों या आदरणीय का आशीर्वाद लेना उत्तर प्रदेश में आम है, लेकिन उस क्षण में पैर महंत के छुए जा रहे थे या मुख्यमंत्री के, यह कहना मुश्किल है.

मनोज सिंह पूछते हैं, "पत्रकार पैर छुएगा, तो पत्रकारिता कैसे करेगा?"

हर तरफ़ भगवा रंग

योगी आदित्यनाथ की दोनों पहचानों को अलग करना इसलिए भी मुश्किल है कि वो ख़ुद उन्हें साथ लेकर चलते हैं.

सरकारी दस्तावेज़ों में उनके नाम के साथ महंत या महाराज नहीं लगाया जाता पर मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भी गेरुआ वस्त्र पहनने से उनकी वही छवि दिखती है.

लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं, "वो सत्ता में हैं तो लोग वही करते हैं जो उन्हें पसंद है, उनकी कुर्सी के पीछे सफ़ेद की जगह गेरुआ तौलिया टंगा रहता है, शौचालय का उद्घाटन करने भी जाएं तो दीवार को गेरुए रंग से रंग दिया जाता है."
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उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के 100 दिन पूरे होने का समारोह, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर गेरुआ तौलिया

महीने में एक या दो बार वो गोरखपुर जाते हैं और मंदिर में पूजा-अर्चना, धार्मिक परंपराओं और त्योहारों का हिस्सा बनते हैं. सभी धार्मिक गतिविधियों की तस्वीरें उनके सरकारी सोशल मीडिया हैंडलों से बराबर शेयर की जाती हैं.

धर्म वहाँ हर जगह बसा है. पुलिस थानों में छोटे मंदिर बने हैं. गोरखपुर की ज़िला अदालत में हर मंगलवार वकील हनुमान चालीसा पढ़ते हैं.

गिरफ़्तारी और गाय के आँसू

मुख्यमंत्री बनने से दस साल पहले, जनवरी 2007 में गोरखपुर के तत्कालीन सांसद आदित्यनाथ को कर्फ़्यू के दौरान 'सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाले भाषण' देने के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया था.

मनोज सिंह बताते हैं, "तब भी मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी ने उन्हें गिरफ़्तार करने से पहले उनके पैर छुए थे."

"आस्था का प्रभाव इतना था कि हिंदी में छपनेवाले एक बड़े अख़बार में उस घटना पर लिखी गई ख़बरों में से एक में, गिरफ़्तारी के बाद गोरखनाथ मंदिर की गोशाला की एक गाय के रोने का विस्तृत ब्यौरा दिया गया था."
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गोरखनाथ मंदिर की गौशाला में बतौर मुख्यमंत्री पहले दौरे में गाय को चारा खिलाते हुए

योगी आदित्यनाथ का यही धार्मिक प्रभुत्व और उग्र हिंदुत्व की राजनीति उनके शासन-प्रशासन में साफ़ दिखाई देती है. यह योगी आदित्यनाथ तक सीमित नहीं है, राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सरकारी हेलिकॉप्टर से कांवड़ियों पर पुष्प-वर्षा कर चुके हैं.

एंटी रोमियो स्क्वॉड, अवैध बूचड़खानों की तालाबंदी, शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर क़ानून जैसी नीतियां हों या उनके भाषण, बयान, सब जगह धार्मिक और राजनीतिक सत्ता को एकाकार होते हुए देखा जा सकता है.

साल 2021 में एक जनसभा में उन्होंने कहा, "साल 2017 से पहले अब्बा जान कहने वाले राशन हजम कर जाते थे."

साल 2020 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर उप-चुनाव की सभा में उन्होंने कहा, "लव-जिहाद वाले सुधरे नहीं तो राम नाम सत्य है की यात्रा निकलने वाली है."

उनके शासन में अंतरधार्मिक विवाहों का विरोध उग्र हुआ है. उसे 'लव-जिहाद' कहा जाने लगा है.

इस शब्द का इस्तेमाल उस कथित साज़िश की ओर इशारा करने के लिए किया जाता है जिसके तहत हिंदू औरतों को शादी के ज़रिए जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है.