गुलामी की बेड़ियां तोड़ने में चार पीढ़ियों का है योगदान

in #lucknow2 years ago

देश की जंगे आजादी में गुलामी की बेड़ियां तोड़ने में फिरंगी महल के उलमा की चार पीढ़ियों ने संघर्ष किया। फिरंगी महल के उलमा ने जहां असहयोग आंदोलन की नींव डाली, वहीं ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार कर जंगे आजादी का बिगुल फूंका। देश को आजादी मिलने के बाद बुलावे के बावजूद भी उलमा ने पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया।

असहयोग आंदोलन भले ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अगुवाई में परवान चढ़ा, लेकिन राजधानी के फिरंगी महल में इस आंदोलन की इबारत 1858 में ही लिखी जा चुकी थी। फिरंगी महल के मौलाना अब्दुर्रज्जाक फिरंगी महली ने अंग्रेजी उत्पादों के बहिष्कार का एलान कर असहयोग आंदोलन की नींव डाल दी थी। दरअसल, आजादी की पहली जंग 1857 में हिंदुस्तानियों की शिकस्त के बाद 21 मार्च 1858 में अंग्रेज जनरल सर काल्विन कैम्पवेल की फौज लखनऊ में दाखिल हुई तो उसने अकबरी दरवाजे से लेकर दिलकुशा तक पूरा शहर खुदवा दिया। गदर में हिंदुस्तानियों को हुए जानमाल के नुकसान और उसके बाद अंग्रेज अफसरों के बर्ताव से व्यथित होकर मौलाना ने फिरंगी महल स्थित अपने घर से असहयोग आंदोलन का आगाज किया। मौलाना ने ब्रिटिश हुकूमत की बनाई बर्फ, चीनी, इंक, कागज, कपड़े, अंग्रेजी बूट यहां तक कि रेल यात्रा के बहिष्कार का एलान कर दिया। 1857 की गदर पर आधारित पुस्तक गर्दिशे रंगे चमन में लेखक कुर्रतुल ऐन हैदर लिखते हैं कि फिरंगी महल के मुख्य उलेमा में शामिल मौलाना अब्दुर्रज्जाक फिरंगी महली सूफी संत भी थे। लिहाजा उन्होंने देश भर में फैले हजारों मुरीद और शार्गिदों को भी अंग्रेजी उत्पादों का इस्तेमाल करने से मना कर दिया।

फिरंगी महल के पत्रों को बीच में ही पढ़ लेते थे अंग्रेज
मौलाना अब्दुर्रज्जाक की अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ जगाई अलख को उनके बेटे मौलाना अब्दुल वहाब फिरंगी महली ने आगे बढ़ाया लेकिन उनके पौत्र मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने इसे परवान चढ़ाया। फिरंगी महल स्थित मौलाना के घर की कोठरी में जंगे आजादी को लेकर खुफिया बैठकें आयोजित होती थीं। इसकी जासूसी करने के लिए अंग्रेज अफसर यहां से निकलने वाले पत्रों को बीच में ही पढ़ लेते थे। मौलाना अब्दुल बारी के परनाती अदनान अब्दुल वाली बताते हैं कि मौलाना शौकत अली ने 18 मई 1920 को एक पत्र लिख कर मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली को इससे अवगत भी कराया था।
महात्मा गांधी का फिरंगी महल से था अहम रिश्ता
अदनान कई किताबों का हवाला देकर बताते हैं कि महात्मा गांधी का फरंगी महल से काफी गहरा रिश्ता था। उन्होंने बताया कि राजधानी के रिफाह-ए-आम क्लब मैदान में 15 अक्टूबर 1920 को जलसे में शामिल होने के लिये जब महात्मा गांधी लखनऊ आए तो वो मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली से मिलने उनके आवास फिरंगी महल आए और यहां पर ठहरे। महात्मा गांधी ने जलसे में भाषण के दौरान इसका जिक्र भी किया।
बुलावे पर भी पाकिस्तान नहीं गए फरंगी महल के उलमा
मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली की 1926 में मृत्यु के बाद उनके भतीजे व दामाद मौलाना कुतुबददीन अब्दुल वाली फिरंगी महली ने उनकी विरासत संभाली। मौलाना कुतुबउददीन की पोती नुजहत फातिमा बताती हैं कि 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद चौधरी खलीकुज्जमां के छोटे भाई चौधरी मुशरिकउज्जमा ने फिरंगी महल आकर मौलाना कुतुबउददीन को पाकिस्तान आने की दावत दी। उन्होंने मौलाना को पाकिस्तान में हर तरह की सहूलियत देने का वायदा किया, लेकिन मौलाना ने उन्हें मना कर दिया। अदनान बताते हैं कि इस घटना को ख्वाजा हसन निजामी देहलवी ने अपनी किताब मादरे हमदर्द में विस्तार से बताया है।

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