बुन्देलखण्ड और ललितपुर ने बहुत साथ दिया था चन्द्रशेखर आजाद का

in #lekh2 years ago

#आजादकेजन्मदिवस_पर


एक #बुन्देलाखनियाधानानरेश जिसने #चन्द्रशेखर_आजाद की खातिर अपना बहुत कुछ खो दिया था।
बुन्देलखण्ड और ललितपुर ने बहुत साथ दिया था चन्द्रशेखर आजाद का
----------------------------------------1923 में चन्द्रशेखर आजाद ने "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" का गठन किया था और उसके प्रचार प्रसार के लिए रवीन्द्र नाथ बख्शी को झांसी भेजा गया ।
रविन्द्र नाथ बख्शी की भेंट झांसी में मास्टर रुद्र नारायण सक्सैना (या श्रीवास्तव) से हुयी ।रुद्र नारायण एक अखाड़ा भी चलाते थे जिससे उनसे नौजवान खूब जुड़े थे और बख्शी जी ने रुद्र नारायण को अपने दल से जोड़ लिया ।कहते हैं कि मास्टर रुद्र नारायण अपने नाम के साथ सिंह लिखते थे और वे सिंह जैसे वहादुर थे भी ।उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद का एक चित्र वनाया था जिसमें एक नौजवान मूंछ उमेठे खड़ा है । उन्होंने उस नौजवान को काफी सुदर्शन दिखाया है जब कि इन्हीं लोगों के साथी भगवान दास माहोर ने" यश की धरोहर" में लिखा है कि वे हल्के चेचकरु और दवे रंग के सामान्य कद-काठी के थे । ..........................................हालांकि अन्तिम दिनों में आजाद ने मास्टर जी से उस चित्र को नष्ट करने को कहा था और मास्टर जी ने भी कह दिया था कि चित्र नष्ट कर दिया गया है लेकिन उन्होंने चित्र सुरक्षित रख लिया और आजाद की शहादत के बाद देश भर में ज्यादातर मास्टर रुद्र नारायण सिंह सक्सैना के चित्र से ही लोगों को आजाद का चेहरा देखने का मौका मिला और फिर सामान्यतः यही प्रचलन में हो गया है ।
................................................ अज्ञातवास के दौरान आजाद झाँसी आये ।झाँसी उनका केन्द्र था डा भगवान दास माहोर ,सदाशिवराव मलकापुर, मास्टर रुद्र नारायण आदि का बड़ा ग्रुप था ।

फरारी के दौरान जब झाँसी में पुलिस की सरगर्मी बड़ी तो वे खनियांधाना रियासत के बुन्देला राजपूत नरेश के यहाँ आ गये ।खनियांधाना नरेश खलक सिंह जू देव बुन्देला ने उन्हें शरण दी ,और मदद की और दोस्त की तरह रखा ।खनियांधाना की सीमा ललितपुर से लगी थी और वे राजा के साथ शिकार खेलने ललितपुर जिले के जंगलों में आया करते थे इस दौरान निशानेबाजी की प्रतियोगिता होती थी ।..........................................इतिहास गवाह है कि इस दोस्ती की कीमत खनियांधाना महाराज को बहुत कुछ खोकर गंवानी पड़ी .......उनके राज्य के अधिकार सीज कर दिये गये ,........अंग्रेजी सरकार ने उन्हें प्रताड़ित किया लेकिन वे दवे नहीं ,....देश के लिये सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हो गये ।.. यहां तक कि जब महाराज के राज्याधिकारी सीज कर उन्हें पैंशन दे दी गयी तब भी वे अपनी पैंशन से क्रान्तिकारियों की मदद करते रहे...........कभी कभी मुझे #बुन्देलाओं की इतिहास के प्रति उदासीनता सालती है ,क्यो कि सदियों से इतना त्याग और बलिदान करने के बाबजूद वे इतिहास में अपने उचित स्थान पाने का प्रयास नहीं करते ।

खनियांधाना में ही एक बार जब अँग्रेजो ने बहुत छापेमारी की तो वे ललितपुर चले आये ।

ललितपुर के कांग्रेसी नेताओं ने इन्हें संरक्षण और आर्थिक संवरण भी दिया

इस दौरान छिपा छिपाछिपऊवल , आंखमिचौनी का खेल चलता रहता था।नेहरू महाविद्यालय के प्राचार्य रहे डा भगवत नारायण शर्मा Bhagwat Narayan Sharma बताते हैं कि वे तालाब के तुबन मन्दिर के पास स्थित कच्चे घाट पर रहा करते थे चुंकि इस ओर तालाब और घना जंगल था और उस ओर दर्जनों एकड़ में फैला घने पेड़ों से आच्छादित कम्पनी बाग था जो उनकी सुरक्षा की द्रष्टि से सुरक्षित जगह थी शर्मा जी बताते हैं कि वे रात के अन्धेरे में मिलने आने बालों से कहा करते थे कि जो मरने को तैयार हो वही मेरे पास आया करो।

उस दौरान आजाद को आर्थिक मदद की दरकार ज्यादा थी ।जिले के बड़े कांग्रेसी नेता पंडित नन्द किशोर जी ने ललितपुर जिले के तत्कालीन सबसे बड़े व्यापारी राय साहव राठौर जी से कहा कि आन्दोलन के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है और आप तत्काल रुपए भेजें ।राय साहव राठौर जी ने अपने बड़े पुत्र को रुपया लेकर सिवनी खुर्द गांव भेजा ,जहां पं नन्दकिशोर जी एक मध्यम कद काठी के युवक के साथ बैठे हुये थे ।युवक सांवला और चेहरे पर हल्के चेचक के दाग़ होने के बावजूद रुपवान था और उसके चेहरे से नूर सा टपकता महसूस होता था ।

पंडित जी ने रायसाहव के पुत्र से रुपया युवक को देने को कहा ।
रुपए देने के बाद जव राय साहव का पुत्र जाने लगा तो पंडित जी बोले ,"कि तुम्हें कम से कम यह जानने का हक तो है ही ,कि जिसे तुम रुपये दे रहे हो वह कौन है ?
जब पंडित जी ने बताया कि ये चन्द्रशेखर आजाद जी हैं तो राय साहव के बड़े पुत्र आश्चर्य और खुशी से लवरेज हो गये ।

फिर पंडित जी ने लौटते हुए राय साहव के पुत्र को सलाह दी कि वे इस घटनाक्रम का जिक्र किसी से न करें ,अन्यथा वे परेशान हो सकते हैं ।
और बात भी सही थी ,क्यों कि राय साहव बहुत बड़े व्यापारी थे उन्हें अंग्रेजों से राय साहव की पदवी और मजिस्ट्रेट का पद मिला हुआ था ।अब अगर ऐसे में अंग्रेजी सरकार को यह मालूम चल जाता कि ये स्वतंत्रता सेनानियों की भी मदद करते हैं तो उन्हें अंग्रैजों के कोप का भाजन भी वनना पड़ता ।

प्रसिद्ध साहित्यकार वनारसी दास चतुर्वेदी जब कलकत्ता से संपादक की नौकरी छोड़ कर आये और टीकमगढ़ महाराज की सलाह पर कुण्डेश्वर से "मधुकर "पत्रिका निकालने लगे तब उन्होंने आजाद के बुन्देलखण्ड जीवन और इनके साथियों पर खूव लिखा ।पं वनारसी दास चतुर्वेदी जब आज़ादी के बाद चन्द्र शेखर आजाद की मां से मिलने गये तो वे द्रवित हो गये ।वे लिखते हैं कि मां काफी वृद्ध थीं , मोतियाबिंद उतरने से उन्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ता था और भिक्षुक जीवन वसर कर रहीं थीं ।
उस समय तो वे लोट गये , लेकिन बाद में उनकी सलाह पर सदाशिव राव मलकापुर उन्हें झांसी लाये और आजाद के साथियों ने उनके खाने पीने की व्यवस्था की और पं चतुर्वेदी के प्रयास से उन्हें सरकारी सहायता भी मिलने लगी।
डा भगवान दास माहोर ने अपनी "यश की धरोहर"नामक पुस्तक में आजाद के बुन्देलखण्ड के काल का भ्रमण का विस्तृत बर्णन किया है ।

आज के दिन चन्द्रशेखर आजाद और सब कुछ कुर्बान कर देने बाले वीर बुन्देला खनियांधाना नरेश को सादर नमन

देवेन्द्र गुरु ललितपुर![IMG-20220723-WA0005.jpg](https://images.wortheum.news/DQmYHKyaFHHX3SpKSrdoqr4MN6jxuzMY1LPSYoKYmK29Fca/IMG-20220723-WA0005.jpg)
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