भू-अधिग्रहण मामले में मुआवजा निर्धारण: सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार का खुलासा
बरेली 6 सितम्बरः(डेस्क)बरेली-सितारगंज हाईवे और बरेली में रिंग रोड के लिए भूखंडों के अधिग्रहण में फर्जीवाड़े का मामला अब खुलकर सामने आ गया है। सूत्रों के अनुसार, सरनिया गांव में एक गोदाम की कीमत का मूल्यांकन 30 लाख रुपये किया गया था, जबकि इसके लिए दोगुनी दर से मुआवजा 60 लाख रुपये होना चाहिए था। लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से इस गोदाम के लिए लगभग छह करोड़ रुपये का मुआवजा तय कर दिया गया।
गनीमत यह रही कि भुगतान होने से पहले ही यह मामला उजागर हो गया। अब यह मामला आर्बिटरेशन (मध्यस्थता) में है, जहां इसकी गहन जांच की जाएगी।
इस घोटाले में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। पिछले कुछ समय में, बरेली-सितारगंज प्रोजेक्ट के भूमि अधिग्रहण में 100 करोड़ रुपये से अधिक की धांधली का खुलासा हुआ है। इस मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जिसमें राजस्व विभाग और एनएचएआई के अधिकारियों की भूमिका की समीक्षा की जाएगी।
इस प्रोजेक्ट के लिए 2021 में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हुई थी, और इसके बाद कई अधिकारियों की मिलीभगत से कृषि भूमि पर अवैध निर्माण कर मुआवजे की राशि बढ़ा दी गई। यह सब कुछ नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए किया गया, जिससे भू-माफियाओं को लाभ हुआ।
इस मामले में अब तक कुछ अधिकारियों को निलंबित किया गया है, और जांच जारी है। प्रशासन ने इस घोटाले में शामिल सभी जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।
भ्रष्टाचार के इस मामले ने न केवल स्थानीय किसानों को प्रभावित किया है, बल्कि यह सरकार की छवि पर भी सवाल खड़ा करता है। ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह के फर्जीवाड़े की पुनरावृत्ति न हो सके।
इस घोटाले की जांच से यह स्पष्ट होगा कि किस तरह से सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया गया और किन अधिकारियों ने इस प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाई। यह मामला न केवल बरेली बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता को उजागर करता है।