केदारनाथ मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य -

in #kedarnath2 years ago

ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने कराया था फिर आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया यह मंदिर समुद्र तल से 3770 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है प्रतिकूल वातावरण के कारण यह मंदिर 6 महीने खुला रहता है और 6 महीने बंद रहता है अप्रैल महीने में अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तथा नवंबर महीने में दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज को कपाट बंद कर देते हैं उत्तराखंड में केदारनाथ और बद्रीनाथ तीर्थ है दोनों के दर्शन का बड़ा ही महत्व है पुराणों में वर्णित है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है उसकी यात्रा निष्फल हो जाती है ऐसी मान्यता है कि नर नारायण दोनों आज भी नर नारायण पर्वतों के रूप में तपस्या में लीन है महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों ने अपने परिजनों तथा गुरु की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए यहां तपस्या की थी
केदारनाथ मंदिर के पीछे एक छोटा सा कुंड है जिसका जल लोक कल्याण एवं अमृत गुणों से भरपूर है इसे अमृत कुंड कहते हैं मंदिर के पश्चिम दिशा में पास ही मंदाकिनी नदी बहती है
केदारनाथ मंदिर के पीछे एक छोटा सा मंदिर है जो शंकराचार्य की समाधि है शंकराचार्य जी ने चार धाम की स्थापना के बाद केवल 32 वर्ष की आयु में केदारनाथ में शरीर त्याग कर दिया था मुख्य मंदिर से 1 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर एक भैरव मंदिर स्थित है ऐसी मान्यता है कि जब केदारनाथ के कपाट बंद होते हैं तब भैरवनाथ ही मंदिर की रक्षा करते हैं मंदिर के पीछे कुछ दूरी पर पहाड़ी पर एक विशाल झील दिखाई देती है इस झील का नाम वासु की ताल है इस झील में अगस्त सितंबर में ब्रह्म कमल फूल खिलते हैं केदारनाथ क्षेत्र में ही गौरीकुंड स्थित है यह गर्म जल का कुंड है जो पवित्र तथा औषधीय गुणों से भरपूर है गौरीकुंड से पहले सोनप्रयाग नामक स्थान है यहां पर सोंग गंगा तथा मंदाकिनी का संगम होता है सोनप्रयाग से 14 किलोमीटर की दूरी पर श्री योगी नारायण मंदिर स्थित है ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान महादेव तथा पार्वती का विवाह हुआ था जून 2013 में आई भीषण बाढ़ में यह क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था उस भीषण बाढ़ के समय मंदिर के ठीक पीछे एक विशाल पत्थर कहीं से आ गया था यह पत्थर यहां कैसे आया कोई नहीं जानता इस पत्थर के कारण मंदिर को कोई भी हानि नहीं हुई आश्चर्य की बात है कि इस पत्थर की चौड़ाई मंदिर की चौड़ाई के बराबर है आज इस पत्थर को भीम शिला के नाम से पूजा जाता है केदारनाथ मंदिर को जागृत ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है ।