वर्मी कम्पोस्ट एवं जैविक खाद के इस्तेमाल से बंजर धरती की बढ़ाई जा सकती है उर्वरा शक्ति

in #kaushambi2 years ago

Screenshot_2022-06-27-22-49-17-33_6012fa4d4ddec268fc5c7112cbb265e7.jpg कौशांबी के किसान ऊधौ सिंह वर्मी कंपोस्ट कल्चर एवं जैविक खाद के प्रयोग से बंजर हो रही धरती को बचाने का संदेश दे रहे हैं। दोनों विधि से तैयार खाद से वह लाखों रुपए कमा रहे हैं। यह खाद सेहत के प्रति भी काफी लाभदायक है क्योंकि इसमें किसी प्रकार की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं किया गया है। वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद की मांग अन्य किसान भी कर रहे हैं। दोनों खादों के इस्तेमाल से उगाए गए अन्न के सेवन से सेहत तो ठीक ही रहती है। इसके अलावा बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं। साथ-साथ बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं। किसान ऊधौ सिंह का मानना है कि पर्यावरण को प्रदूषण से एवं धरती को बंजर होने से भी बचाने के लिए वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने सरकार से यह मांग की है कि वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद के इस्तेमाल के लिए किसानों को बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें जागरूक करने के लिए समय-समय पर गोष्ठियां आयोजित करना चाहिए। इनके इस्तेमाल से क्या-क्या फायदे हैं, इसके बारे में भी किसानों को जानकारी देना चाहिए। किसानों को यह भी बताना चाहिए कि वर्मी कम्पोस्ट एवं जैविक खाद से उगाए अन्न के सेवन से तमाम रोगों से बचा जा सकता है, जबकि रासायनिक खादों से पैदा अनाज से तमाम प्रकार की बीमारियां जकड़ लेती हैं।

वीओ- नेवादा ब्लाक के गोविंदपुर गांव के किसान ऊधौ सिंह ने तकरीबन 20 साल पहले जैविक खाद बनाने की जानकारी कृषि वैज्ञानिकों द्वारा हासिल की थी। पहले तो उन्हें कृषि वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया सुझाव कुछ अटपटा लगा लेकिन उन्होंने मजाक ही मजाक में जैविक खाद तैयार कर डाली। पहली दफा उन्होंने खाद का इस्तेमाल अपने ही बासमती धान की फसल में किया। फसल पक कर तैयार हुई तो उन्हें उम्मीद से बढ़कर उपज देखने को मिली। रासायनिक खाद द्वारा पैदा अनाज की तुलना में जैविक खाद द्वारा उगाए गए अनाज का स्वाद काफी अच्छा लगा। इसके अलावा जैविक खाद द्वारा उगाये गए अनाज के सेवन का शरीर पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं हुआ। उन्होंने जैविक खाद के साथ-साथ वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार करने का कार्य भी शुरू कर दिया। आज वह दोनों खाद अपने कृषि फार्म में तैयार करते हैं। अपने खेतों में इन खादों का तो इस्तेमाल करते ही हैं। इसके अलावा अन्य किसान भी इनसे खाद खरीद कर ले जाते हैं और अपने फसलों में खादों का इस्तेमाल करते हैं। जैविक खाद एक बीघे में एक से डेढ़ किलोग्राम इस्तेमाल होता है, जबकि वर्मी कंपोस्ट विधि से तैयार खाद एक बीघे में लगभग 15 कुंतल लगती है।यह धान, गेहूं, गन्ना की फसल के लिए काफी मुफीद होता है। सब्जियों की खेती के लिए वर्मी कंपोस्ट खाद प्रति पौधे एक से डेढ़ किलोग्राम लगता है। इन खातों के इस्तेमाल से प्रतिवर्ष 6 से 8 लाख तक कमाई भी हो रही है।

जैविक खाद बनाने की विधि-

जैविक खाद बनाने के लिए जमीन ऊंची होना चाहिए। एक बेडनुमा चेम्बर होना चाहिए। खाद बनाने के लिए देसी गाय का गोबर होना चाहिए। गोबर की मात्रा कम से कम 50 किलो ग्राम होना चाहिए। इसके अलावा 250 ग्राम मुर्गी के अंडे के छिलके, 250 ग्राम पीली मिट्टी, 250 ग्राम गुड़ और बायोडायनामिक रिपिरेन्स 502, 507 दवा भी होना चाहिए। इन सबको बेडनुमा चेम्बर में डाल देना चाहिए। समय- समय पर पानी जरूर डालते रहना चाहिए। 80 से 90 दिन में 20 से 25 किग्रा. खाद बनकर तैयार हो जाती है। एक बीघे में डेढ़ किलोग्राम खाद का फसलो में छिड़काव करना चाहिए।

वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करने की विधि---

वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार करने के लिए ऊंचे स्थान का प्रयोग करना चाहिए।इसके अलावा धूप से बचने के लिए छायादार स्थान होना चाहिए। बेड नुमा चेंबर भी होना चाहिए। बेड की लंबाई 7 फुट, चौड़ाई 3 फुट और गहराई डेढ़ फुट होनी चाहिए। इसमें गाय एवं भैंस सभी प्रकार के गोबर का इस्तेमाल किया जाता है। गोबर भरने के बाद 3 से 4 दिन तक पानी डालकर ठंडा किया जाता है जब गोबर पूरी तरीके से ठंडा हो जाता है तो आइसिनिया फोटीडिया प्रजाति का 4 से 5 किलो केचुआ डाला जाता है। समय-समय पर पानी भी डाला जाता है। ताकि गोबर गर्म ना होने पाए और गर्मी से केंचुआ मरने भी ना पाए। 8 से 10 दिन में लकड़ी से गोबर को पलट आ भी जाता है। 90 दिन के भीतर खाद बनकर तैयार हो जाती है। खाद चाय की पत्ती की तरह दानेदार तैयार होती है। एक बीघे में 9 से 10 कुंतल वर्मी कंपोस्ट खाद डाली जाती है।