छठी मईया करि-कर जोरी कि रहे मोरा अमर सुहाग...

in #karnal2 years ago

करनाल। यूं तो देश में पति और बच्चों की दीर्घायु के लिए कई व्रत रखे जाते हैं, जिनके साथ अलग अलग धारणाएं, परंपराएं और मान्यताएं जुड़ी हैं, लेकिन छठ पर्व इन सभी में सबसे लंबा और कठिन व्रत है। अक्सर किसी व्रती महिला को देखकर मन में सवाल उठता है कि इस व्रत में महिलाएं नारंगी रंग का सिंदूर नाक से लेकर मांग तक क्यों सजाती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि सिंदूर की रेखा जितनी लंबी होगी, उनके सुहाग (पति) की आयु भी उतनी लंबी होगी। तभी तो छठ में यह गीत काफी प्रचलित है कि ‘छठी मईया करि-कर जोरी कि रहे मोरा अमर सुहाग’

माता छठी को शास्त्रों में भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री बताया गया है। कुछ ग्रंथों में माता छठी को भगवान सूर्य देव की बहन भी कहा गया है। इसके साथ ये मान्यता जुड़ी है कि माता छठी की पूजा अर्चना करने से पति और संतान की आयु लंबी होती है। ये प्राचीन हिंदू त्योहार है, जो खासतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप से निकला है। बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और मधेश आदि में तो मनाया ही जाता है। जहां जहां इन राज्यों के लोग रहते हैं, वहीं भी इस छठ की छटा बिखर रही है। कई अन्य देशों में भी अब इस त्योहार की झलक देखी जा रही है। छठ व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है, क्योंकि चार दिन तक चलने वाले इस व्रत में बिना जल ग्रहण किए 36 घंटे तक उपवास रखा जाता है। इसके साथ ही छठ व्रत के दौरान व्रती महिलाएं नाक से लेकर मांग तक एक विशेष प्रकार का सिंदूर लगाती हैं, जो कि छठ पूजा का एक अहम अंग माना जाता है।

व्रती महिलाएं नाक से मांग तक सजाती हैं सिंदूर
सदियों से हिंदू महिलाओं में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण अयोध्या आए तो हनुमान जी भी उनके साथ पहुंचे। यहां प्रभु राम के लिए माता सीता को सिंदूर से मांग सजाते देखकर हनुमान जी ने पूरे शरीर में नारंगी सिंदूर लगा लिया। भगवान हनुमान संकटमोचक हैं, इसलिए महिलाएं नारंगी सिंदूर लगाती है, ताकि बजरंग बली हमेशा उनके पति की रक्षा करते रहें और पति की आयु लंबी हो। छठ पूजा के दौरान संध्या अर्घ्य से लेकर सुबह के अर्घ्य तक महिलाएं लंबा सिंदूर लगाती हैं ताकि परिवार में खुशहाली बनी रहे। छठ पूजा के दिन महिलाएं अपने संतान और पति के सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करती हैं।

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