श्रीमद्भागवत कथा महायज्ञ की गाजेबाजे के साथ निकली कलश यात्रा

in #kalash2 years ago

श्रीमद्भागवत कथा महायज्ञ की गाजेबाजे के साथ निकली कलश यात्रा

श्रीमद् भागवत कथा के मुख्य यजमान प्रकाश चंद्र तिवारी व मुनि आगमन पांडेय है।

सहजनवा / गोरखपुर
ऋषि सेवा समिति के तत्वाधान में भागवत कथा का मव्य शुमारम्भ हुआ । जिसकी शोभायात्रा सहजनवा काली मंदिर से प्रारम्भ होकर बौरावहा बाबा स्थान से कथास्थल पूर्वी मंडी गेट स्थिति सेरेमनी मैरिज हाल पर पहुँची। स्थान-स्थान पर पुष्पवृष्टि व आरती द्वारा भागवत जी का पूजन हुआ इसके पश्चात अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता पूज्य राघव ऋषि जी के द्वारा कथा प्रारम्भ हुई। अनेक श्रद्धालु गणमान्यों ने माल्यार्पण के द्वारा ऋषि जी का स्वागत किया।IMG-20221115-WA0217.jpg

भगवान शिव एवं काशी के विषय में पूज्य ऋषि जी ने कहा यह ज्योतिमयी भूमि है। “काश्यते प्रकाश्यते या सा काशी” काशी भूमि का नाश कभी नहीं होता। जब प्रलय होता हैं तब मगवान शिव त्रिशूल पर इस भूमि को धारण करते हैं। अक्षय भूमि पर अक्षय कथा को प्राप्त कर हम सभी धन्य हैं ताकि अक्षय लाभ प्राप्त हो सके। कथा के माध्यम से सच्चिदानंद प्रभु की प्राप्ति होती है। जो आनन्द हमारे भीतर है।उसे जीवन में किस प्रकार प्रकट करें।यही भागवत शास्त्र सिखाता है। जैसे दूध में मक्खन रहता है फिर भी यह दिखाई नहीं देता, मन्थन करने पर मिल जाता है। इसी प्रकार मानव मन को मन्थन करके आनन्द को प्रकट करना है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य है परमात्मा से मिलना। उसी का जीवन सफल है जिसने प्रभु को प्राप्त किया।

भागवतशास्त्र का आदर्श दिव्य है। घर में रहकर के भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकती है इस शास्त्र में सिखाया है। गोपियों ने घर नहीं छोड़ा। घर गृहस्थी का काम करते हुए भी भगवान को प्राप्त कर सकीं। एक योगी को जो आनन्द समाधि में मिलता है, वही आनन्द आप घर में रहकर भी प्राप्त कर सकते हैं।

पूज्य ऋषि जी के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि ने गणपति वन्दना, “ग॑ गणपतये नमोनमः” का गान किया ।तब भावविभोर हो अनेक श्रद्धालु नृत्य करने लगे। भागवत की रचना व्यास जी ने की परन्तु इसे गणेश जी ने लिखा है इस कथा का महात्म्य है कि जिस समय शुकदेव जी परीक्षित को कथा सुना रहे थे उस समय स्वर्ग के देवता आए एवं उन्होंने कहा स्वर्ग का अमृत हम राजा को देते हैं और बदले में यह कथामृत आप हमें दीजिए। शुकदेव जी ने पूछा तुम्हें कौन सा अमृत पीना है? इस पर राजा ने कहा कि स्वर्ग का अमृत पीने से पुण्यों का क्षय होता है परन्तु कथामृत पीने से जन्म-जन्मान्तर के पापों का क्षय होता है व जीव पवित्र हो जाता है। अतः मैं इस कथामृत का ही पान करूँगा। मनुष्य के भीतर ज्ञान और वैराग्य जो सोए हुए हैं उन्हें जागृत
करने के लिए यह कथा हैं। इस हृदयरूपी वृन्दावन में कभी-कभी बैराग्य जागृत होता है परन्तु स्थाई नहीं रहता उसे स्थायित्व इस कथा से मिलता है।

कथा के माहात्म्य की चर्चा करते हुए पूज्य ऋषि जी ने बताया कि तुंगभद्रा नदी के किनारे आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नी धुंधली क्रूर स्वमाव की थी। पुत्रहीन होने के कारण वह एक दिन आत्महत्या करने जाता है। मनुष्य शरीर ही तुंगमद्वा है इसमें जीवात्मा रूपी आत्मदेव निवास करता है । तर्क-कुतर्क करने वाली बुद्धि ही धरुंधली है किसी सन्त की कुपा से विवेकरूपी पुत्र का जन्म होता है जो जीव का कल्याण करता है| धुंधली का पुत्र धुंधकारी अनाचारी था। जो ब्यक्ति, अनाचारी होता है वह क्रमशः रूप, रस, गंध शब्द व स्पर्श रूपी पांच वेश्याओं से फंस जाता है जो इस जीवात्मा की हत्या कर देती है ।फलतः वह प्रेत योनि में जाता है जो भागवत शास्त्र के माध्यम से मुक्त होता है।

कथा के अन्त में ऋषि सेवा समिति के गणमान्य भक्तों .
अरविंद शुक्ला, पुरुषोत्तम अग्रवाल , नागेन्द्र सिंह चेयर मैन प्रतिनिधि, विनोद सिंह , विनोद पांडेय , सुधाकर पाण्डेय , हनुमान अगहरी अरविंद तिवारी, अशोक अग्रहरी ,उपेंद्र त्रिपाठी महेश गुप्ता, अमर यादव , अजय पाठक , नवीन तिवारी ,राहुल यादव राकेश दुबे , महेश त्रिपाठी , प्रभाकर दुबे , राम प्रकाश शुक्ला , विकास राज , रामनाथ यादव , अजय प्रधान , राम प्रकाश यादव , रोहित शुक्ला, गिरीश यादव , गोपाल गुप्ता, गौरव गुप्ता , अभिषेक बुद्धिया, रामप्रताप सिंह , संजय सिंह , आलोक कुमार ,राजेश, विनय यादव आदि ने प्रभु की भव्य आरती की।IMG-20221115-WA0218.jpg