कंडम होने के बाद भी दौड़ रही स्लीपर बसें सड़कों पर
झालावाड़। झालावाड़ से अलवर लंबी दूरी तय करने वाली स्लीपर बसें पूरी तरह हांफ चुकी है हालत यह है कि यह कंडम होने के किलोमीटर भी कई समय पहले ही पार कर चुकी है। ऐसे में यात्रियों का जीवन खतरे में बना रहता है। लेकिन जयपुर मुख्यालय को कई बार स्थिति से अवगत कराने के बाद भी नई बसें नहीं मिल रही है। जबकि इस मार्ग की स्लीपर बसे रोडवेज को राजस्व देने में नंबर वन पर है। यह बसें करीब 19 लाख किलोमीटर का सफर पूरा कर चुकी है। जबकि रोडवेज 10 लाख के आसपास ही बसों को कंडम घोषित कर देता है।
झालावाड़ डिपो की अलवर तक जाने वाली स्लीपर दो बसें प्रतिदिन लंबी दूरी तय कर रही है करीब 1200-1400 किलोमीटर तक का सफर पूरा करने वाली यह बसे पूरी तरह खटारा हो चुकी है जगह जगह से बॉडी क्रेक है। सीटें और खिडकी के शीशे भी खराब हालत में हो चुके हैं। ऐसे में मौसम के अनुकूल बनाई गई यह बसें अब साधारण बसों की तरह दौड़ रही है। इसके बावजूद भी इन स्लीपर बसों की ओर यात्रियों का अच्छा खासा रुझान है। इस मार्ग पर भले ही निजी ट्रैवल्स सेवाएं दे रहे हो लेकिन बावजूद इसके स्लीपर की साख के चलते पर्याप्त यात्री भार से राजस्व रोडवेज को मिल रहा है। लेकिन रोडवेज अधिकारियों की अनदेखी भारी पड़ रही है। खराब होने पर इनकी सामान्य मरम्मत व जुगाड़ के उपाय करा कर इनको सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है। हालत यह है कि यह बसें अब तक कई बार मार्ग में खराबी के कारण खड़ी हो चुकी है। यह बसें झालावाड़ डिपो से प्रतिदिन दोपहर 12:45 बजे मनोहरथाना के लिए रवाना होती है। वहां से अकलेरा होते हुए झालावाड़ पहुंचती है। इसके बाद लंबी दूरी की यात्रा अलवर के लिए रवाना हो जाती है। इस बस में यात्रियों की संख्या प्रतिदिन निर्धारित सीटों से अधिक ही रहती है। इस मार्ग पर झालावाड़ से बड़ी संख्या में व्यापारी सहित अन्य कई अधिकारी कर्मचारी सफर करते हैं। ऐसे में पर्याप्त राजस्व मिलने के बावजूद भी यात्रियों को पर्याप्त सुविधा नहीं मिल पा रही है। इनकी खराब हालत के चलते यात्रा के दौरान चालक परिचालकों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वह इस मामले में रोडवेज मुख्य प्रबंधक प्रतीक मीणा ने बताया कि समय-समय पर इनकी मरम्मत कराते रहते हैं। जयपुर बात हुई है अगले महीने नई बसें मिलने की उम्मीद है।
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