श्रीकृष्ण और जाम्बंत की युद्ध स्थली जामगढ़ -भगदेई,

in #jamvant2 years ago

विंध्याचल की पहाड़ी का यू तो पुराणों में उल्लेख है । बही इन पहाड़ियों पर त्रेतायुग से द्वापर युग की लीलाएं गूंज रही है । बह भी ऐसे अजेय योद्धा की जिन्होंने त्रेतायुग में श्रीराम का साथ दिया था और द्वापर युग मे श्रीकृष्ण से युद्ध कर श्रीकृष्ण के ससुर होने का सौभाग्य पाया था ,यानि हम जामवंत की बात कर रहे है ।
किस बात को लेकर श्रीकृष्ण से युद्ध किया और यह स्थान कहा पर है और कहा पर हैं । मप्र की राजधानी भोपाल से 135 किलोमीटर दूर रायसेन जिले की बरेली तहसील का ग्राम जामगढ़ -भगदेई ,जो जामबंत और उनके भाई रीछडमल की लीलाओ से भरा पड़ा हैं ,जामबंत ने त्रेता युग से लेकर द्धापर युग तक इसी स्थान पर लीलाए की हैं , द्वापर युग मे श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच 27 दिनो तक भीषण युद्ध हुआ ,जामबंत के पद चिन्ह और खजाने का बीजक ,जामबंत के खेलने के गिल्ली - डंडा , भगदेई में जामवंत के हाथो अंतिम निर्माण के शिव मंदिर ,जहाँ विश्व की अनोखी शिव जी की मूर्ती और प्राचीन जामवंत की गुफा है । बाराही माता का मंदिर जहाँ आज भी शेर बरदान मांगने आता था ,1949 से आजतक संचालित संस्कृति पाठशाला ,और विंध्याचल पर्वत माला जो बार बार अपनी और आने को आकर्षित करती हैं । रायसेन जिले के बरेली तहसील के यह दो गाव हैं जामगढ़ -भगदेई जो विंध्याचल श्रेणी की तलहटी में बसे हुयें हैं यह भोपाल से 135 और जबलपुर से 175 दूर NH -12 भोपाल-जबलपुर मार्ग पर खरगोन से उत्तर -पश्चिम दिशा में हैं ,सवसे पहले देखतें हैं 1949 से आज तक चल रही संस्कृति पाठशाला हैं जहाँ 50 बच्चे अध्यन करतें हैं यह ब्रह्मलीन चित्रकूट बाले महाराज जी ने प्रारम्भ की थी जो तालाब के किनारे रमणीय हैं इस तालाव के बीचो बीच गिल्ली हैं और भगदेई के तालाब के बीचो बीच डंडा हैं जिसे जामबंत और रिछड़मल खेलते थे ,यहीं से शुरू होती हैं
जामगढ़ -भगदेई का त्रेता -द्वापर युगी सफर -

संस्कृत पाठशाला से आधा किलो मीटर दूर 200 मीटर ऊंचाई और ऊबड़खाबड़ मार्ग से 500 मीटर चढ़ाई चढ़कर पहुँचते हैं जामबंत की बहीं गुफा जिसमे श्रीकृष्ण और जामवंत के बीच स्यमन्तक मणि की चौरी के कलंक को लेकर 27 दिन तक भीषण युद्ध हुआ था /लेकिन मार्ग में क्योंच के रोएँ शरीर में खुजली और जलन पैदा कर देते हैं हम इस बाला से बचते बचते आखिर जामबंत की गुफा तक पहुंच है गएँ ,यह गुफा अद्भुत और आश्चर्यजनक हैं हम इस गुफा में 80 फिट तक अंदर गएँ और प्राकृतिक क्षय के कारण गुफा संकीणं हो गयी हैं /पुराने लोग इस गुफा के अंदर झुककर एक मिटटी के तेल का पीपा लेकर अंदर जाते थे आधा पीपा ख़त्म होने पर आधा पीपा तेल में लौट आते थे लेकिन गुफा की गहराई नहीं मिली ,इसी गुफा के अंदर जामबंत की बेटी जाम्बन्ति और श्रीक्रष्ण का विवाह हुआ था और उपहार में स्वयमान्तक मणि श्रीकृष्ण को दे दी थी /
स्थानीय कमल यागवलक बताते हैं कि पुराणो में उल्लेख के अनुसार द्धापर युग में स्वमन्तक मणि सत्राजीत ने सूर्या की तपस्या कर प्राप्त की थी शेर ने सत्राजीत मार डाला था और शेर के मुह चमकीली बस्तु देख जामवंत ने शेर शिकार कर खेलने के लिए अपनी बेटी जाम्वन्ति को दे दी थी श्रीकृष्ण को स्वमन्तक की चोरी का आरोप लगा था इसे ढ़ूढ़ते हुए शेर के पैरो निशान मिलाते हुए जामबंत की गुफा में पहुंचे और 27 दिन तक भीषड़ युद्ध हुआ और जामबंत भगवान श्री कृष्ण को पहचान गए और अपनी बेटी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर उपहार में स्वमन्तक मणि दे दी , इस मणि की विशेषता थी की एक दिन में 8 भार सोना देती थी एक भार यानी 25 किलो सोना ,दिन भर में 200 किलो ,कुल 30 दिन तक गुफा में रही तो लगभग 65 क्विंटल सोना गुफा में हैं जो शोषकर्ता बताते हैं नववी शासन में दूरवीन से देखा गया हैं जामबंत के पद चिन्हो के पास का बीजक के अंतिम शव्द "गुप्ते "का अर्थ गड़ा हुआ धन या खजाना हैं बीजक में छुपा हैं खजाने का रहस्य /

अब चलते हैं जामबंत के पद चिन्हो की और यह हैं जामबंत के पद चिन्ह जो आधा किलोमीटर तक मिलते हैं यह दोनों पैर हैं और यह चलते हुए दायाँ पैर बायां पैर के निशान हैं आगे कूल्हे घुटने और फिर पैरो की निशान हैं ,यह लिखा हैं बीजक यानि खजाने का रहस्य ,यह नो गोटिया खेलने का चंगा बना हैं जिसे दो लोग बैठकर खेलतें हैं /और इसी बने तालाव में गिल्ली का डंडा हैं जामगढ़ तालाब में गिल्ली और भगदेई तालाब में डंडा हैं /यह द्धापर युग की पुरसम्पदा समाप्ति की कगार पर हैं इसका कोई संरक्षण नहीं हैं /

अब चलते हैं भगदेई जहाँ यह हैं प्राचीन शिव मंदिर जिसे जामबंत ने नग्न होकर बनाया था ,एक किबदन्ती हैं की जामबंत और उनके भाई रीछडमल इसे बनाया हैं , जामबंत इसे नग्न होकर बनाते थे जब कोई आता था तव बह चक्की चला देता था लेकिन एक दिन जामबंत की बहिन बिना चक्की चलायें आ गयी तो जामबंत ने उसे पहाड़ी पर फैक दिया और इसी मंदिर से कूंदे जो पैरो के निशान बने यहाँ गिरे और गुफा में चले गए जिसके निशान आधे किलोमीटर तक बने हैं /लेकिन शोधकर्ता इसे 11 बी सदी बताते हैं गुर्जर प्रतिहार बश का बना हैं / इस मंदिर में कंकाली माँ , यक्ष की मूर्ती और शिव जी की उर्ध्व लिंग संकुल अवस्था की मूर्ती विश्व में कहीं नहीं हैं /

जामवंत द्वारा द्वापर युग मे निर्मित शिवलिंग मंदिर भगदेई में है जिसमे जामवंत द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया था और इस मंदिर में एक आलौकित शिवमूर्ति है जिसमे शिवजी नग्न साधना में है और इसे ऊर्द्ध लिंग कहा जाता है । यह मात्र विश्व मे इसी मंदिर में स्थापित हैं। जामगढ़ में जामवंत की गुफा तो भगदेई में जामवंत द्वारा निर्मित शिवलिंग मंदिर है और जामवंत के पद चिन्ह और रहस्यमयी वीजक जिसे कोई नही पढ़ सका । दोनो स्थान पौराणिक है जिसे झुठलाया नही जा सकता । सिर्फ उपेक्षा के शिकार है ।
जामimages(31).jpgवन्त की लीलाओं की कहानी को तो यह प्राकृतिक स्थान स्वयं सुना रहा है बही तत्कालीन कलेक्टर जे के जैन ने स्वयं गुफा में पहुँचकर 60 लाख से अधिक की कार्ययोजना बनाई से लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते सब पर मानो पानी फिर गया हो । यह स्थान अपने आप मे सच्चाई और युगों की गाथाओं के साथ रहस्यमयी है आवश्यकता है तो संरक्षण की ।बही स्थानीय रिटायर प्राचार्य स्व श्री प्रेमनारायण यागबाल्क जी ने 1965 से इस स्थान को ASI के द्वारा संरक्षण की पहल की और ASI की टीम ने भी सर्वे किया लेकिन रिजल्ट ढांक के तीन पात कहावत ही बनकर साबित हो गया ।

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Very good