कोयला श्रमिकों के हित में 22 वर्ष पुराने मापदंड को बदलने की उठी मांग*

in #issue2 years ago

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राजनगर कालरी -

भारत सरकार द्वारा माइंस एक्ट 1952 के ज़रिये कोयले की धूल से होने वाली बीमारी "न्यूमोकोनियोसिस" को कोयला खदान में काम करने वाले मजदूरों के लिये एक व्यवसायिक रोग घोषित किया गया है। इस रोग के होने पर कोयला मजदूर को एम्प्लॉयइज़ कंपनसेशन एक्ट 1923 के प्रावधानों के आधीन क्षतिपूर्ति का अधिकार होता है। इससे बचने के लिये कोयला उद्योग में 22 वर्ष पुराने मापदंडों के आधार पर इस बिमारी की जांच की जा रही है।
यह दावा कोल इंडिया लिमिटेड के त्रिपक्षीय सुरक्षा बोर्ड में हिंद मजदूर सभा के प्रतिनिधि अख़्तर जावेद उस्मानी ने 2022 में ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड के 2, साउथ ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड के 3 और सेंट्रल कोलफिल्ड्स लिमिटेड में 4 पीएमई या पीरियोडिकल मेडिकल एग्जामिनेशन सेंटर्स और 10 खानों के निरीक्षण के बाद किया है।
उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ या इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजशन जिसका हमारा देश एक सदस्य है के द्वारा समय समय पर इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ रेडियोग्राफ्स ऑफ "न्यूमोकोनियोसिस" और गाइडलाइंस ज़ारी किया जाता है। इन रेडोग्राफ्स और गाइडलाइंस के आधार पर ही "न्यूमोकोनियोसिस" और उसके फैलाव और प्रभाव की जांच की जाती है।
हालत ये हैं कि वर्ष 2000 में ज़ारी स्टैंडर्ड रेडियोग्राफ्स को डायरेक्टर जनरल ऑफ माइंस सेफ्टी ने अपने टेक्निकल सर्कुलर क्रमांक 04 के माध्यम से कोयला खान मालिकों को इसका पालन करने की सलाह दी गई थी, आज 22 वर्षों बाद भी सलाह क्यों नहीं दी गई यह प्रश्न अनुत्तरित है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने वर्ष 2000 के मापदंडों में सुधार कर वर्ष 2011 में जो नये इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ़ रेडियोग्राफ्स ऑफ "न्यूमोकोनियोसिस" और गाइडलाइंस ज़ारी किया है उस पर डीजीएमएस संगठन द्वारा अभी तक कोई परिपत्र ज़ारी नही किया है।
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि पहले 2000 की गाइडलाइंस पर 2007 तक कोई कार्यवाही नहीं होती है फ़िर 2011 की गाइडलाइनस पर 2022 तक मौन साध लिया जाता है। ये मिलीभगत नही तो और क्या है।
अख़्तर जावेद उस्मानी ने कहा कि जांच के सही और अद्यतन मापदंडो के आभाव में 2012 के बाद कोयला मजदूरों में "न्यूमोकोनियोसिस" बिमारी की भारत में रिपोर्ट नही हो पा रही है। मजदूर कोयला खानों में डस्ट से तिल- तिल कर अकाल मृत्यु के ग्रास बनने पर मजबूर है। अंडरग्राउंड खानों में वेंटिलेशन बहुत खराब है लेकिन आज सबसे अधिक डस्ट कोल इंडिया लिमिटेड की ओपन कास्ट खदानों में है जहां कोयला धूल से बचाव के उपाय केवल कागज़ों में होते हैं।
हिंद मजदूर सभा ने कोयला मजदूरों के स्वास्थ परीक्षण और निदान के लिये जो अभियान चलाया है उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हॉस्पिटल दवाईयों की कमी और किडनी,लीवर,फेफड़ों और कैंसर जैसी बीमारियों का मजदूरों में तेज़ी से हो रहा फैलाव के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। हिंद मजदूर सभा ने इस संबंध में डीजीएमएस सहित कोयला मंत्री और श्रम मंत्री भारत सरकार को भी पत्र लिख कर न्यूमोकोनइयोसिस की जांच आद्यतन मापदंडो के आधार पर करने की मांग की है।

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