एससीओ क्या अमेरिका विरोधी गुट बन रहा है, भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती?
Wortheum news, sanjay yadav
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन शुक्रवार को उज़्बेकिस्तान के शहर समरकंद में समाप्त हो गया.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप अर्दोआन समेत कई नेताओं से मुलाक़ात की.
लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से उनकी बातचीत नहीं हुई.
कोविड महामारी के बाद पहली बार एससीओ सम्मेलन में सभी सदस्य देशों के नेता मौजूद रहे. इससे पहले 2019 में बिश्केक में हुए सम्मेलन में सभी नेता मौजूद थे.
समरकंद में हुए सम्मेलन में मोदी और पुतिन की मुलाक़ात की चर्चा तो हो रही है लेकिन इस बात को लेकर भी चर्चा तेज़ है कि क्या एससीओ धीरे-धीरे अमेरिका विरोधी देशों का एक गुट बनता जा रहा है और अगर यह बात सच है तो फिर यह भारतीय विदेश नीति के लिए कितनी बड़ी चुनौती है.
अमेरिका विरोधी गुट कहने वाले लोग यह तर्क दे रहे हैं कि अमेरिका विरोधी चीन और रूस तो एससीओ में शामिल प्रमुख देश हैं ही, लेकिन ईरान का भी इस गुट में शामिल होना इस बात का पक्का सबूत है कि एससीओ एक अमेरिका या पश्चिम विरोधी गुट बन रहा है.
ईरान फिलहाल इस संगठन में बतौर पर्यवेक्षक शामिल है. समरकंद में हुए एससीओ के सम्मेलन से पहले ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि संगठन का पूर्ण सदस्य बनने के लिए ईरान के मेमोरेंडम ऑफ़ कमिटमेंन्ट पर दस्तख़त कर दिए हैं. इसके बाद अगले साल वो इस संगठन का पूर्ण सदस्य बन जाएगा.
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