गीतांजलि श्री: बुकर सम्मान की अंतिम दौड़ में हिंदी की पहली लेखिका,

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NEWS DESK:WORTHEUM: PUBLISHED BY, VAASUDEV KRISHNA, 14 Apr,2022, 11:50 AM IST
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गीतांजलि श्री(WORTHEUM)

'एक कहानी अपने आपको कहेगी. मुकम्मल कहानी होगी और अधूरी भी, जैसा कहानियों का चलन है. दिलचस्प कहानी है.'

यह हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' के पहले दो वाक्य हैं.

हाल ही में इस उपन्यास के अंग्रेज़ी अनुवाद 'टूंब ऑफ़ सैंड' ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के अंतिम छह में जगह बनाई है.

हिंदी में बुकर तक पहुंचने की जो कहानी अधूरी पड़ी थी, उसे गीतांजलि श्री मुकम्मल करने के बेहद करीब पहुंच चुकी हैं.

राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 'रेत समाधि' हिंदी की पहली ऐसी कृति है जो अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की शॉर्टलिस्ट तक पहुंची है.
इसका अंग्रेजी अनुवाद मशहूर अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने किया है. 50,000 पाउंड यानी करीब 50 लाख रुपये के साहित्यिक पुरस्कार के लिये पांच अन्य किताबों से अब इसकी प्रतिस्पर्धा होगी. पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर बांटी जाएगी.

रेत समाधि : एक अनूठा उपन्यास

गीतांजलि श्री के इस उपन्यास को निर्णायक मंडल ने 'अनूठा' बताया है. दरअसल यह उपन्यास ठहरकर पढ़े जाने वाला उपन्यास है जिसकी एक कथा के धागे से कई सारे धागे बंधे हुए हैं. 80 साल की एक दादी है जो बिस्तर से उठना नहीं चाहती और जब उठती है तो सब कुछ नया हो जाता है. यहां तक कि दादी भी नयी. वो सरहद को निरर्थक बना देती है.

इस उपन्यास में सबकुछ है. स्त्री है, स्त्रियों का मन है, पुरुष है, थर्ड जेंडर है, प्रेम है, नाते हैं, समय है, समय को बांधने वाली छड़ी है, अविभाजित भारत है, विभाजन के बाद की तस्वीर है, जीवन का अंतिम चरण है, उस चरण में अनिच्छा से लेकर इच्छा का संचार है, मनोविज्ञान है, सरहद है, कौवे हैं, हास्य है, बहुत लंबे वाक्य हैं, बहुत छोटे वाक्य हैं, जीवन है, मृत्यु है और विमर्श है जो बहुत गहरा है, जो 'बातों का सच' है.
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कौन हैं गीतांजलि श्री और डेज़ी रॉकवेल?

गीतांजलि श्री पिछले तीन दशक से लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं. उनका पहला उपन्यास 'माई' और फिर 'हमारा शहर उस बरस' 1990 के दशक में प्रकाशित हुए थे. फिर 'तिरोहित' आया और फिर आया 'खाली जगह'.

उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हैं. वो स्त्री मन में, समाज के भीतर, समाज की परतों में बहुत धीरे धीरे दाखिल होती हैं और बहुत संभलकर उन्हें खोलती और समझती हैं.

उनकी रचनाओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन सहित कई भाषाओं में हो चुके हैं. गीतांजलि श्री के उपन्यास 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवॉर्ड' के लिए भी नामित हुआ था.

गीतांजलि श्री की रचनाओं के बारे में वरिष्ठ लेखिका अनामिका कहती हैं, 'गीतांजलि श्री के पास जिस तरह का शिल्प है वह दुर्लभ है. गीतांजलि श्री के अलग अलग उपन्यास अलग-अलग शिल्प में दिखलाई पड़ते हैं. बेहद कम होता है कि अच्छे अनुवाद में कोई अच्छी कृति आती है. यह अच्छी कृति आई है. यह संकेत है कि अगर हिंदी की कृतियों को अच्छा अनुवादक मिले तो वे भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर सकते हैं.'
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गीतांजलि श्री (WORTHEUM)

वो कहती हैं कि हिंदी के लेखकों को अच्छे अनुवादक नहीं मिले इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका उत्कृष्ट लेखन नहीं आ सका. न अज्ञेय को मिले, न निर्मल वर्मा को.

रेत समाधि का अनुवाद 'टूंब ऑफ़ सैंड' नाम से डेज़ी रॉकवेल ने किया है जिसे 'टिल्टेड एक्सिस' ने प्रकाशित किया है. अमेरिका में रहने वाली डेज़ी हिंदी साहित्य समेत कई भाषाओं और उसके साहित्य पर पकड़ रखती हैं. उन्होंने अपनी पीएचडी उपेंद्रनाथ अश्क के उपन्यास 'गिरती दीवारें' पर की है. उन्होंने उपेंद्रनाथ अश्क से लेकर खादीजा मस्तूर, भीष्म साहनी, उषा प्रियंवदा और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर का अनुवाद किया है.

बीबीसी से हुई बातचीत में गीतांजलि श्री ने बताया कि उन्हें बुकर में नामित होने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं थी. वो कहती है कि मैं चुपचाप और एकांत में रहने वाली लेखिका हूँ.

उन्होंने बताया कि इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद और फिर बुकर तक पहुंचना यह संयोग से हुआ. वो कहती हैं कि वो डेज़ी रॉकवेल को व्यक्तिगत रूप से पहले से नहीं जानती थी लेकिन जब ईमेल के ज़रिए डेज़ी ने उनके उपन्यास के कुछ अंश अनूदित करके भेजे तो उन्हें उसमें वह छवियां भी दिखाई दीं जो शायद उन्हें अपनी मूल कृति में खोजनी पड़ती. वो डेज़ी को बुकर में शॉर्टलिस्ट होने का पूरा श्रेय देती है.

क्या हिंदी प्रकाशन जगत के लिए यह बड़ी घटना है

राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी कहते हैं कि इस पुस्तक के बुकर तक पहुंचने के बाद प्रकाशकों का ध्यान पॉपुलर साहित्य की जगह गंभीर साहित्य की ओर बढ़ेगा. वो कहते हैं कि ऐसे लेखक जो दिखने और बिकने में ज्यादा यकीन रखते हैं, वे अब टिकने पर ध्यान देंगे. भाषा और भाव की महत्ता समझेंगे.

उनका कहना है कि इससे न केवल हिंदी से अंग्रेज़ी भाषा के अनुवाद को बढ़ावा मिलेगा बल्कि अंग्रेज़ी से हिंदी भाषा की ओर भी लोगों का रूझान बढ़ेगा. यहां तक कि भारतीय भाषाओं से भी लोग हिंदी में अब अनुवाद कराने पर ज़ोर देंगे.

लेकिन हार्पर कॉलिन्स के एग्ज़ीक्यूटिव एडिटर (साहित्य) राहुल सोनी ऐसा नहीं मानते. वो कहते हैं कि यू. आर. अनंतमूर्ति को इसी पुरस्कार के लिए कई साल पहले नामित किया गया था और उससे साहित्यिक परिदृश्य में कोई खास बदलाव नहीं आया.

वो मानते हैं कि गीतांजलि श्री और उनके उपन्यास का अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट होना सुखद संकेत है. यह भी अच्छा है कि अंतरराष्ट्रीय समाज हिंदी के साहित्यिक कार्यों को मान्यता दे रहा है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता कि दुनिया की हिंदी साहित्य में बहुत रुचि होगी या हिंदी से अंग्रेज़ी अनुवाद का प्रकाशन अचानक बढ़ जायेगा. वो कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन पर निर्भर होती है और ज़्यादातर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के नियम अमेरिका या ब्रिटेन के हिसाब से बनाए जाते हैं.

वहीं ट्रांसलेशन फेलोशिप देने वाली संस्था न्यू इंडिया फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर यौवनिका चोपड़ा का मानना है कि इससे भारत में अनुवाद और अनुवादकों के प्रति नज़रिए में बदलाव आएगा. उनका कहना है कि साहित्यिक अनुवाद के लिए अधिकतर हिंदी प्रकाशन संस्थान कम पारिश्रमिक देते हैं और कई बार उनका नाम भी कवर पेज पर नहीं होता. ऐसे में डेज़ी रॉकवेल और गीतांजलि श्री की भागीदारी भारत में अनुवाद और अनुवादकों की दशा को बदलने में सहायक हो सकती है.
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अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार हर साल किसी ऐसी किताब को दिया जाता है जिसका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया हो और जो आयरलैंड या ब्रिटेन में प्रकाशित हुई हो.

पुरस्कार की घोषणा 26 मई को लंदन में होगी, जहाँ किसी एक कृति को यह सम्मान मिलेगा.

गीतांजलि श्री कहती हैं कि असल बात तो तब है जब इस बुकर के शोर के बाद हम अपने आसपास हिंदी की उन रचनाओं को देखें जो वाकई इस लायक रहीं लेकिन हमने उन पर कभी ग़ौर नहीं किया. अगर हम ऐसा कर पाते हैं तो मेरा यहां तक पहुंचना सार्थक रहेगा.

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