नाटक महाबली के लिए असगर वजाहत को व्यास सम्मान

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IMG-20220826-WA0024.jpgदिल्ली। असग़र वज़ाहत जी को उनके नाटक ‘महाबली’ के लिए व्यास सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर उनका सारगर्भित वक्तव्य।

“ये मध्यकाल का नाटक है, लेकिन आज हमारे जीवन से बहुत करीब और जुड़ा हुआ है और खासतौर से इसके जो दो-तीन मुद्दे हैं, वो। आज हमारे समाज में राजनीति केंद्र में है, जबकि उसको केंद्र में नहीं होना चाहिए। केंद्र में होना चाहिए कलाओं को, साहित्य को, संगीत को, नाटक को। क्योंकि समाज को बनाने का काम ये विधाएँ करती हैं, कला करती है, राजनीति नहीं करती। राजनीति लोगों से शक्ति लेती है और कलाएं लोगों को शक्ति देती हैं। और जो समाज को शक्ति दे रहा है, उसके महत्व से इंकार और समाज से जो शक्ति ले रहा है, उसके महत्व को केंद्र में रखना, इसका क्या औचित्य है। और बहुत से ऐसे समाज, जो जागरूक समाज हैं, वहां कलाएं केंद्र में हैं, वहाँ राजनीति केंद्र में नहीं है। दूसरी बात ये है कि लोगों को बदलने का आधारभूत काम कलाएं करती हैं, वह राजनीति नहीं करती। आप किसी भी तरह का संविधान बना लें, लेकिन अगर लोग नहीं बदले हैं, तो वो बेकार है। और लोगों को बदलने का काम करती हैं कलाएं। तो कलाओं के महत्व से जो एक तरह से इंकार है वह किसी भी समाज के लिए बहुत खतरनाक बात हो सकती है। तो इस नाटक में पहला तो मुद्दा यही उठाया गया है कि राजनीति या राजनेता या शासन जो है वो समय, काल और भूगोल की सीमाओं में रहता है। और रचनाकार - कवि या लेखक - वो इन सीमाओं से परे होता है, काल की सीमाएं उसके लिए बाधा नहीं होती हैं। तो इस तरह से उसका योगदान निरंतर समाज में जारी रहता है। तो किसी बड़े गायक का जो योगदान है वो समाज में कितने समय तक जारी रहेगा और कितने लोगों को एक प्रकार की शक्ति और आनंद देता रहेगा इसकी कल्पना करना बहुत कठिन काम है। सैकड़ों साल तक वो समाज को कुछ देता रहेगा। दूसरा एक रोचक और आज से बहुत जुड़ा हुआ विषय जो है वो है भाषा का। कि ज्ञान के ऊपर भाषा का ताला लगा हुआ है। जब तक आप भाषा के ताले को खोलेंगे नहीं तब तक आपको ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। तुलसीदास ने भाषा के इस ताले को खोल दिया। भाषा के ताले को खोलने का मतलब बहुत क्रांतिकारी था, आज भी है। अगर आज कोई भाषा के इस ताले को तोड़ेगा तो बहुत बड़ा क्रांतिकारी काम करेगा वो। क्योंकि वह ताला खुल जाएगा तो ज्ञान सब लोगों तक पहुंचेगा और जब ज्ञान लोगों तक पहुंचेगा तो समाज में कुछ ऐसे परिवर्तन आएंगे जो लोगों के हित में होंगे। तो भाषा के संबंध में जो तुलसीदास ने किया अगर उसको हम आज से जोड़कर देखें तो लगता है कि ये हमारे लिए भी एक चुनौती है। तीसरी बात ये है कि जो यथास्थितिवाद है, उस तरह की शक्तियाँ हर समय, हर समाज में हमेशा रही हैं, इसको तोड़ना, इस विचार का खंडन करना कि नहीं समाज में परिवर्तन आना ज़रूरी है, तो उस परिवर्तन आने की दिशा में जो तुलसीदास का काम है, वो एक बहुत महत्वपूर्ण काम है। ये सारे के सारे कारण रहें हैं जिससे कि इस विषय को चुना गया। तुलसीदास के जो विचार हैं, उनकी जो भक्तिभावना है, उसे माइनी सम्मान दिया है, सम्मान देकर उसे वो जैसा है वैसा रखा है। ऐसा नहीं है कि उसके साथ को छेड़छाड़ की गयी है। लेकिन उनके जीवन के ये जो पक्ष हैं, उनके काम के ये जो पक्ष हैं, जिसको उनमें आस्था रखने वाले बहुत से लोग भी नहीं समझते हैं और मानते हैं, उन पक्षों को उद्घाटित करना, ये उद्देश्य था उस नाटक को लिखने के पीछे।“