सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम चैनल की टेलिकास्टिंग से बैन हटाया

in #indialast year

मलयालम चैनल को सिक्योरिटी क्लियरेंस देने से इनकार करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस अनिवार्य है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दावों के लिए ठोस आधार भी होना चाहिए.

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम न्यूज चैनल 'मीडियावन' को सिक्योरिटी क्लियरेंस देने से इनकार करने के केंद्र सरकार के फैसले को खारिज कर दिया. शीर्ष अदालत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि बिना किसी ठोस आधार के राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर चैनल पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. सरकार की आलोचना किसी टीवी चैनल का लाइसेंस कैंसिल करने की वजह नहीं हो सकती है.

उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश चैनल चलाने वाली कंपनी द्वारा दायर याचिका पर दिया. इसमें केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के फैसले को बरकरार रखा था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मंत्रालय को चार सप्ताह के भीतर चैनल को नया लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया.
इस दौरान बेंच की राय थी कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा मंजूरी से इनकार करने का कारणों का खुलासा नहीं करना और केवल सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और निष्पक्ष कार्यवाही के अधिकार का उल्लंघन है. बेंच ने कहा, "राज्य नागरिकों के अधिकारों से वंचित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील का उपयोग कर रहा है. यह कानून शासन के साथ असंगत है."

CAA-NRC पर रिपोर्टिंग को बनाया था आधार

गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने CAA, NRC, न्यायपालिका की आलोचना, राज्य आदि पर चैनल की रिपोर्टों पर भरोसा करते हुए कहा था कि यह एंटी स्टेबलिशमेंट चैनल है. हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रसारण लाइसेंस जारी करने से इनकार करने के लिए ये उचित आधार नहीं है.
सरकार की नीतियों के खिलाफ आलोचना, व्यवस्था विरोधी नहीं
कोर्ट ने कहा, "प्रेस की ड्यूटी है कि वह नागरिकों को हार्ड फैक्ट्स के बारे में जानकारी दे. सरकार की नीतियों के खिलाफ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को व्यवस्था विरोधी नहीं कहा जा सकता है. यह विचार मानता है कि प्रेस को हमेशा सरकार का समर्थन करना चाहिए. एक मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है. सरकार की नीतियों की आलोचना को अनुच्छेद 19 (2) के तहत किसी भी आधार से नहीं जोड़ा जा सकता है, जो मुक्त भाषण को प्रतिबंधित कर सकता है."

प्रतिबंधित करने का वैध आधार नहीं: SC
पीठ ने कहा कि किसी चैनल के लाइसेंस का नवीनीकरण न करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध है और इसे केवल अनुच्छेद 19(2) के आधार पर लगाया जा सकता है. इसने आगे कहा कि चैनल के शेयरधारकों का जमात-ए-इस्लामी हिंद से कथित जुड़ाव चैनल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने का वैध आधार नहीं है. किसी भी सूरत में इस तरह के लिंक को दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है.

राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवाई नहीं: कोर्ट
शीर्ष अदालत ने यह भी आगाह किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते हैं और इसके समर्थन में ठोस सबूत होने चाहिए. बता दें कि 15 मार्च, 2022 को कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें चैनल को अंतिम निर्णय आने तक अपना संचालन जारी रखने की अनुमति दी गई थी.