चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना: बयानों की चर्चा और लंबित मामलों की लंबी फ़ेहरिस्त
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना का कार्यकाल 26 अगस्त, 2022 को पूरा हो रहा है. उन्होंने ऐसे समय अपने पद की बागडोर संभाली थी जब उनके दो पूर्ववर्ती मुख्य न्यायाधीशों का कार्यकाल विवादों से घिरा था.
पूर्व मुख्य न्यायाधीशों रंजन गोगोई और शरद अरविंद बोबडे के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट की छवि को लेकर न्यायिक हलकों में चर्चा होती रही थी.
मुख्य न्यायाधीश रमन्ना के कार्यकाल इन दोनों पूर्व जजों से बेहतर ज़रूर बताया जा रहा है क्योंकि वो विवादों से दूर रहे.
गोगोई ने जहाँ अपने ही ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका पर अपने ही कोर्ट में सुनवाई की और ख़ुद को आरोप मुक्त किया, वहीं बोबडे भी विवादों से बच नहीं पाए. इस मामले में रमन्ना ज़रूर ख़ुशक़िस्मत रहे.
लेकिन क़ानूनी हलकों में ऐसी चर्चा रही कि रमन्ना को उनके द्वारा की गयी टिप्पणियों और उनके भाषणों की वजह से ज़्यादा जाना जाता रहा ना कि उनके फ़ैसलों की वजह से.
तीन दिनों पहले का उनका भाषण भी सुर्ख़ियों में रहा जब आंध्र प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि "उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान इसलिए अपना सामाजिक औचित्य खोते जा रहे हैं क्योंकि ये फैक्ट्रियों की तरह काम कर रहे हैं. और ये फैक्ट्रियां कुकुरमुत्ते की तरह पनप भी रही हैं."
इसी महीने की 24 तारीख को एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने टिप्पणी की कि 'देश में रिटायर होने वालों की कोई क़द्र नहीं है.' उन्होंने ये टिप्पणी अधिवक्ता विकास सिंह की याचिका की सुनवाई करते हुए की.
आंध्र प्रदेश में जन्मे मुख्य न्यायाधीश रमन्ना इस मामले में भी ख़ुशक़िस्मत माने जा रहे हैं कि अब से सेवानिवृत्त होने वाले मुख्य न्यायाधीशों को छह महीनों तक रहने की मुफ़्त व्यवस्था दी जायेगी और इसका लाभ लेने वाले वो पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश होंगे.
इससे संबंधित अध्यादेश भारत सरकार के क़ानून मंत्रालय ने जारी भी कर दिया है.
इससे पहले सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा सांसद के रूप में मनोनीत किया गया. इसे 'अनैतिक' बताते हुए इसकी आलोचना हुई, विपक्ष ने आरोप लगाया कि उन्हें सरकार के अनुकूल फ़ैसले देने के बदले राज्यसभा की सदस्यता रिटायर होते ही दे दी गई