WORTHEUM:क्या भारत-अमेरिका के रिश्ते रूस की परीक्षा में कामयाब होंगे ?

in #india3 years ago (edited)

WORTHEUM: Published by , Indianews, 03 Mar 2022
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रूस-यूक्रेन संघर्ष भले ही भारत-अमेरिका के संबंधों की सीमाओं को उजागर कर दिया हो, लेकिन लंबे अरसे तक इसके प्रभाव पर राय जुदा हैं.

कुछ भारतीय मीडिया ने इस बात पर रोशनी डाली है कि रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका की पाबंदियां भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालेंगी, जो रूस से अपने हथियारों का क़रीब 60 फ़ीसद आयात करता है.

मशहूर हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स ने 24 फ़रवरी को अपने संपादकीय में कहा कि भारत के लिए रूस-यूक्रेन संघर्ष का प्रभाव विशेष रूप से हथियारों की ख़रीद में नज़र आएगा.

बढ़ सकता है दबाव

उस हिंदी दैनिक में कहा गया कि अमेरिका, भारत पर रूस से हथियार न ख़रीदने का दबाव बढ़ा सकता है. इसका असर भारत और रूस के बीच S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली सौदे पर भी दिखाई देगा.

रूस के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंध भारत और रूस के ज़रिए संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल के नियोजित निर्यात समेत कुछ और महत्वपूर्ण रक्षा सौदों को प्रभावित कर सकते हैं; एक साथ 4 युद्धपोत बनाने का समझौता; भारत द्वारा Su-MKI और MiG-29 विमानों की ख़रीद; और बांग्लादेश के रूपपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए भारत-रूस की संयुक्त परियोजना भी प्रभावित हो सकती है.

हाल के घटनाक्रमों से भारत की हथियारों की ख़रीद को प्रभावित करने की संभावना के बावजूद, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-अमेरिका संबंधों पर कोई दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा.

पूर्व भारतीय राजनयिक अमरेंद्र खटुआ ने बीबीसी मॉनिटरिंग को बताया कि हथियारों के आयात में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं, लेकिन भारत और अमेरिका एक-दूसरे से दूर जाने के जोखिम नहीं उठा सकते, ख़ासकर तब जब चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में घुसने की कोशिश कर रहा है.

अमरेंद्र खटुआ अर्जेंटीना और आइवरी कोस्ट में भारत के राजदूत रह चुके हैं. उन्होंने सोवियत संघ के विघटन के बाद रूसी संघ के साथ भारत के व्यापार और आर्थिक संबंधों के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

कुछ लोगों ने भारत को अपने रुख़ में बदलाव की सलाह दी.

भारत सरकार का सीमित सार्वजनिक संचार और मौजूदा संकट के लिए पुतिन की निंदा करने से इनकार करना, पूरी तरह से असामान्य नहीं है, ख़ास तौर पर देश की विदेश नीति के रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत की पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ ऐसा करना.

नई दिल्ली ने पक्ष ना लेने के बारे में अपने रुख़ को दृढ़ता से रखा है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों और मीडिया ने टिप्पणी की है कि भारत सरकार के लिए परिस्थितियां इतनी आसान नहीं हो सकती हैं.

चौराहे पर है भारत सरकार

खटुआ ने कहा कि भारत सरकार असल में एक चौराहे पर है. वह चाहती है कि अमेरिका चीन से निपटे, लेकिन वह सभी हथियारों के लिए रूस का साथ भी चाहता है. इसलिए बीच में फंसना कोई अच्छी स्थिति नहीं है.

अंग्रेज़ी दैनिक 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने एक रिपोर्ट में कहा है, "अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्लॉक से दबाव के साथ, ये नई दिल्ली के लिए रणनीतिक विकल्प बनाने के लिए एक परीक्षा है. एक तरफ़ सिद्धांत और मूल्य हैं तो दूसरी तरफ़ व्यावहारिकता और हित हैं.

जबकि प्रमुख भारतीय मीडिया आउटलेट्स को रूस के कार्यों की आलोचना करने से काफ़ी हद तक दूर रखा गया है, मीडिया के एक वर्ग ने इस मुद्दे पर भारत की स्थिति का आकलन करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है.

मशहूर पत्रकार प्रणब ढल सामंता ने अंग्रेज़ी के प्रमुख बिज़नेस अख़बार 'द इकोनॉमिक टाइम्स' में एक टिप्पणी में लिखा कि भारत को "रूस के साथ अपने संबंधों पर एक कठोर, और दीर्घकालिक नज़र'' विशेष रूप से भारत के प्रतिद्वंदियों चीन और पाकिस्तान के ख़िलाफ़, रूस से रिश्तों की पृष्ठभूमि पर नज़र डालने की ज़रूरत है.

इसी तरह, अंग्रेज़ी के सबसे ज़्यादा प्रसारित दैनिक 'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में एक संपादकीय ने आगाह किया है कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के साथ संबंध "पहले से कहीं ज़्यादा अहम हैं" और इसे बनाए रखने के लिए "अपने वर्तमान राजनयिक रुख़ के पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत होगी, जो कि एक मुख्य सवाल है."