स्वतंत्रता दिवस पर अमृत महोत्सव मना रहा देश

IMG-20220805-WA0077.jpgपं0 अजय मिश्र। आज देष विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। वर्तमान समय में साम्प्रदायिकता व जातिवाद का विषवमन किया जा रहा है। हमें इन बातों से आगे उठकर सजग रहना होगा, ऐसे लोगों व ऐसी बातों से जो हमे टुकड़ों में विभक्त कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना चाहती हैं। स्वतंत्रता जो हमें हमारे पूर्वजों ने 15 अगस्त 1947 को दिलाई. एक ऐसी सुनहरी तारीख जिसके कारण हम आज आजाद भारत में सांस ले रहे हैं. इस आजादी के मोल में कई शहीदों ने अपनी जान चुकाई. तब जाकर हमें आजाद भारत की छत मिल पाई हैं। अब हमारा कर्तव्य हैं कि हम उन शहीदों को श्रद्धांजलि के रूप में भारत देश का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवायें। भारत भूमि माँ स्वरूप मानी जाती हैं. देशवासी भारत माता के बच्चे हैं. अपनी माँ के लिए कर्तव्य निभाने वाले शहीद ही माँ की सच्ची संताने हैं। शहीद के लिए जितना कहे कम हैं. एक ऐसा महान व्यक्ति जो अपने कर्तव्य के आगे अपनी जान तक को तुच्छ मानता हैं. उसके लिए शब्दों में कुछ कह पाना आसान नहीं। पर हम सभी लोग जिन्हें जान देने का मौका नहीं मिलता या कहे हममे उतनी हिम्मत, ताकत नहीं हैं. हम भी देश के लिए कार्य कर सकते हैं. जरुरी नहीं जान देकर ही देशभक्ति का जस्बा दिखाया जाये. हमें अपने कर्तव्यों अधिकारों के प्रति सजक होना होगा उनका निर्वाह करना होगा. यह उन शहीदों, देश भक्तो एवम मातृभूमि के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
देश भक्ति प्राण न्यौछावर करके ही निभाई नहीं जाती. देश के लिए हर मायने में वफादार होना भी देश भक्ति हैं. देश की धरोहर की रक्षा करना, देश को स्वच्छ बनना, कानून का पालन करना, भ्रष्ट्राचार का विरोध करना, आपसी प्रेम से रहना आदि यह सभी कार्य देशभक्ति के अंतर्गत ही आते हैं। देश के लिए वफादार बनना ही सही मायने में देश की सेवा हैं. इससे देश भीतर से मजबूत होता हैं. देश में एकता बढती हैं और एकता ही देश की शक्ति होती हैं।
दो सो सालों की गुलामी के बाद देश आजाद हुआ था. 1947 में देश को आजादी एकता के कारण ही मिली थी लेकिन इस एकता में सदा के लिए दो गुट बन गए. वे दो गुट धर्म, साम्प्रदायिकता की देन नहीं अपितु अंग्रेजो की दी फुट की देन थी. और आज तक अंग्रेजो का दिया. वह घृणित तौहफा हमारे देश को कमजोर बना रहा हैं. यह घृणित फांसला हमारे देश के भीतर तो हैं ही साथ में भारत पाकिस्तान दोनों देशो के बीच भी आज तक गहरा हैं। इस घृणा का मोल हम सभी को हर वक्त चुकाना पड़ता हैं. देश की आय का कई गुना खर्च सीमा पर देश की लड़ाई में व्यय होता हैं जिस कारण दोनों ही देशों के कई लाखों लोगो को रात्रि में बिना भोजन के सोना पड़ता हैं।
आजादी के 70 सालों बाद भी दोनों देश गरीब हैं इसका कारण हैं आपसी फुट. जिसका फायदा उस वक्त भी तीसरे लोगो ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं। 1947 के पहले 1857 में भी इसी तरह से क्रांति छिड़ी थी. देश में चारो तरह आजादी के लिए युद्ध चल रहे थे. उस वक्त राजा महाराजों का शासन था लेकिन वे सभी राजा अंग्रेजों के आधीन थे. 1857 का वक्त रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाना जाता हैं.उस वक्त भी अंग्रेजो की फुट एवम राजाओं के बीच सत्ता की लालसा के कारण देश आजाद नहीं हो पाया। उसके जब हम मुगुलो और राजपूतों का वक्त देखे तब भी फुट ने ही देश को कमजोर बनाया. उस वक्त भी महाराणा प्रताप की हार का कारण फुट एवम राजाओं की सत्ता की भूख थी और आज हम जब निगाहे उठाकर देखते हैं. तब भी हमें यही दिखता हैं कि देश के नेताओं को बस सत्ता की भूख हैं.वो देश की जनता को साम्प्रदायिकता व जाति के जरिये तोड़ रहे हैं. और इसमें उन्हें बस सत्ता की भूख हैं।
इन सभी में बदलाव लाने के लिए हम सभी को जागने की जरुरत हैं. यह लड़ाई इतनी आसानी से कम नहीं होगी. उल्टा दिन पर दिन बढ़ती जाएगी. इसका एक ही हल हो सकता हैं कि आने वाली पीढ़ी को शिक्षित किया जाये. अच्छे बुरे की समझ दी जाये. आदर, सम्मान एवम देशभक्ति का मार्ग दिखाया जाये. इसके बाद ही देश में बदलाव आ सकते हैं। हमारा देश जिसका ध्वज तीन रंगों से मिल कर बना हैं जिसमे केसरिया रंग जो प्रगति का प्रतीक हैं, सफेद जो अमन एवं शांति का प्रतीक हैं, हरा जो समृद्धि का प्रतीक हैं. साथ में अशोक चक्र जो हर पल बढ़ते रहने का सन्देश देता हैं. तिरंगे का सफेद रंग पूरी दुनियाँ को शांति का सन्देश देता हैं क्यूंकि युद्ध से सभी देशों एवम नागरिको पर बुरा असर पड़ता हैं.याद रखियेगा लड़ते वही हैं जिनमे शिक्षा का अभाव होता हैं. अगर किसी देश की प्रगति चाहिए तो उस देश का शिक्षा स्तर सुधारना सबसे जरुरी हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर केवल शहीदों को याद करना. राष्ट्रीय सम्मान करना. देश भक्ति की बाते करने के अलावा हम सभी को प्रण लेना चाहिए कि रोजमर्रा के कार्य में देश के लिए सोच कर कुछ करे जिसमे देश की सफाई, अपने बच्चो एवम आस-पास के बच्चो को एक सही दिशा देने के लिए कुछ कार्य करें, गरीब बच्चो को पढ़ने में मदद करें, बुजुर्गो को सम्मान दे, क्राइम के प्रति जागरूक होकर दोषी को दंडित करें, गलत को गलत कहने की हिम्मत रखे, जान बुझकर या अनजाने में भी भ्रष्टाचार का साथ ना दे एवम सबसे जरुरी देश के नियमो का पालन करे. अगर हम रोजमर्रा में इन चीजो को शामिल करते हैं तो देश जरुर प्रगति करेगा और हम सभी भी देश के सपूत कहलायेंगे।
15 अगस्त, 26 जनवरी केवल यह दो दिनों के मौहताज ना बने. मातृभूमि इस दिन का इन्तजार नहीं करती. वो तो उस दिन का इंतजार कर रही हैं जब देश की भूमि पर भ्रष्टाचार का नाम न हो, जब बेगुनाहों का कत्लेआम ना हो, जब नारी की अस्मत का व्यापार ना हो, जब माता- पिता को वृद्ध होने का संताप ना हो. ऐसे दिन के इंतजार में मातृभूमि आस लगाये बैठी हैं. क्यूँ न यह सौभाग्य हमें मिले और हम अपने छोटे से कार्य का योगदान देकर मातृभूमि की इस इच्छा को पूरी करने के लिए एक नीव का मूक पत्थर बन जायें।

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