President election 2022: आखिर भारी पड़ीं द्रौपदी मुर्मु, अटल जी के करीबी रहे यशवंत सिन्हा रह गए काफी पीछे

in #in2 years ago

[7/22, 08:49] $HaRmA Ji: सार
यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देकर इस पद का चुनाव लड़े थे। प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम सामने आने के बाद विपक्ष ने उन्हें उन्हें अपना साझा उम्मीदवार बनाया।
[7/22, 08:49] $HaRmA Ji: विस्तार
जैसा कि तय था पीएम मोदी की पसंद और उनकी नीतियों पर चलने वाली द्रौपदी मुर्मु आखिर देश की नई महामहिम बन गईं। जश्न हो रहे हैं। बधाइयों का सिलसिला जारी है। देश की पहली नागरिक पहली बार कोई आदिवासी महिला बनी हैं। वहीं राजनीति के गलियारे में द्रौपदी मुर्मू की इस जीत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों से जुड़े यशवंत सिन्हा की हार के रूप में भी देखा जा रहा है
[7/22, 08:50] $HaRmA Ji: पहले बात एनडीए में जश्न की
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद जीत की बधाई और शुभकामनाएं देने द्रौपदी मुर्मू के आवास पर गए। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत तमाम केन्द्रीय मंत्री और नेता उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दे रहे हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के लिए इससे बड़ी खुशी क्या हो सकती है कि उनके प्रदेश की मुर्मु देश की राष्ट्रपति बन गई हैं। जाहिर है उन्हें बधाई देने के लिए धर्मेन्द्र प्रधान पूरे लाव लश्कर के साथ कुशक रोड से मुर्मु के उमाशंकर दीक्षित मार्ग स्थित आवास पर परंपरागत अंदाज़ में पहुंचे। कुल मिलाकर भाजपा द्रौपदी मुर्मू की जीत को ऐतिहासिक रंग देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है।
[7/22, 08:50] $HaRmA Ji: अटल जी की नीतियों के समर्थक सिन्हा की हार के मायने
यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देकर इस पद का चुनाव लड़े थे। प्रत्याशी के तौर पर उनका नाम सामने आने के बाद विपक्ष ने उन्हें उन्हें अपना साझा उम्मीदवार बनाया। अपने पूरे चुनाव प्रचार में यशवंत सिन्हा ने केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों को कठघरे में रखा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय की नीतियों, भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों, संवैधानिक मूल्यों को प्रमुख मुद्दा बनाया। यशवंत सिन्हा 2014 के बाद से लगातार प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों, कामकाज के तरीके पर खुलेआम हमले करते रहे हैं। सिन्हा के प्रचार की कमान भी भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी ने प्रमुखता से संभाली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश, कांग्रेस पार्टी से जुड़े सचिव प्रणब झा, संजीव सिंह समेत अन्य ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। हालांकि कांग्रेस के ही कुछ नेताओं को यह बहुत रास नहीं आया। आचार्य प्रमोद कृष्णम जैसे नेताओं ने कांग्रेस द्वारा यशवंत सिन्हा का समर्थन करने की आलोचना की। बताते हैं कि भाजपा के पूर्व नेता, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे सिन्हा के कुछ अपने भी उनके साथ नहीं थे। इस कारण राहुल गांधी समेत कुछ अन्य नेताओं ने राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार से खुद को दूर रखा और केवल वोट तक ही सीमित रखा।

भाजपा ने 2024 तक संदेश देने की बनाई रणनीति
भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सहयोगी दलों के साथ एनडीए में एकजुटता बनाए रखी। इसके साथ विपक्षी एकता में बड़े पैमाने पर सेंध लगाने में भी सफल रही। बताते हैं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की बड़ी जीत तय करने का पूरा जिम्मा केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल रखा था। मतदान से ठीक पहले अमित शाह ने गैर एनडीए के कई दलों के नेताओं से बात की और बड़े अंतर की जीत का रास्ता बनाया। शाह द्वारा तैयार की गई रणनीति का ही असर रहा कि उ.प्र. की सुभासपा के नेता ओम प्रकाश राजभर और शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने भी खुलकर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया। दरअसल अमित शाह की निगाह में अभी से 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव है। वह इस चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को लेकर आम जन में किसी तरह का हल्का संदेश नहीं जाने देना चाहते। शाह के बारे में आम है कि वह प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज और नीतियों का विरोध करने वाले दल, संगठन या व्यक्ति को राजनीतिक हाशिए पर ले जाने के लिए ठोस रणनीति बनाते हैं। राष्ट्रपति के चुनाव में भी इसका असर साफ दिखा। खुद यशवंत सिन्हा ने भी आरोप लगाया कि राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा में ऑपरेशन लोटस चल रहा है।

एकजुट नहीं रह पाया विपक्ष
विपक्ष के नेताओं के लिए राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार का चयन कर पाना सबसे मुश्किल काम था। सर्वसम्मति से विपक्ष इस दायित्व को निभा पाने में असफल रहा। इसके बाद साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के प्रचार की रणनीति में भी कोई एकजुटता नहीं दिखाई दे सकी। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट के एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री का कहना है कि इसके दो प्रमुख कारण थे। पहला तो यह कि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय की हैं। दूसरा बड़ा कारण तृणमूल कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे यशवंत सिन्हा खुद रहे। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान जो वक्तव्य दिए, उससे विपक्ष के कई दलों के लिए साथ देना मुश्किल था। महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शिवसेना को द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के लिए आना पड़ा। इसी तरह से आदिवासी उम्मीदवार होने के कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी समर्थन देने की घोषणा करनी पड़ी। बसपा की मायावती ने भी मुर्मू का समर्थन किया और तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने पार्टी लाइन से हटकर क्रास वोटिंग की।

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