भारत में मरीजों पर बेअसर हो रहीं कई एंटीबायोटिक दवाएं, कई बीमारियों के बढ़ने और महामारी की आशंका

in #icmr2 years ago

आईसीयू पहुंचे निमोनिया और सेप्टिसीमिया मरीजों के इलाज के लिए कार्बापेनम दवा दी जाती है। यह बहुत शक्तिशाली एंटीबायोटिक है। लेकिन भारत में कई मरीजों पर अब यह काम नहीं कर रही। कार्बापेनम अकेली दवा नहीं है जो बेकार साबित हो रही है। कई बैक्टीरियल संक्रमण में माइनोसाइक्लिन, इरिथोमाइसिन, क्लिंडामाइसिन जैसी कई दवाएं बहुत से मरीजों पर अब काम नहीं कर रहीं। यह खुलासे करते हुए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने नई रिपोर्ट जारी की।इसमें दवाओं के प्रति बैक्टीरिया में प्रतिरोध बढ़ने की कई वजहें बताई गईं। इनमें प्रमुख एंटीबायोटिक दवाएं बिना जांच, तर्कसंगत डोज व तरीकों के देना शामिल है। एंटी-माइक्रोबियल रजिस्टेंस (एमएआर) नाम से यह आईसीएमआर की पांचवीं रिपोर्ट है। इसे एक जनवरी से 31 दिसंबर 2021 तक देश भर के आईसीएमआर के नेटवर्क अस्पतालों से मिले डाटा के आधार पर बनाया गया। अध्ययन में छह पैथोजन (रोग की वजह बनने वाले सूक्ष्मजीव) समूह पहचाने गए जिनमें दवाओं के लिए प्रतिरोधक क्षमता आ रही है।जीनोम सीक्वेंसिंग और जीनोटाइपिक विशेषताओं से यह पैथोजन पहचान गए। अध्ययन में शामिल आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामिनी वालिया ने बताया कि मौजूदा दवाओं की प्रति एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध लगातार बढ़ने से कई प्रकार के संक्रमणों का इलाज मुश्किल हो गया है।सुधार के लिए जल्द ही कदम नहीं उठाए, तो एंटी माइक्रोबियल रजिस्टेंस निकट भविष्य में एक महामारी का रूप ले सकता है। हर साल 5 से 10 प्रतिशत की दर से यह रजिस्टेंस बढ़ रहा है। इनकी वजह से भारत में बड़े स्तर पर डायरिया भी फैल सकता है। -डॉ. कामिनी वालिया, वरिष्ठ वैज्ञानिक, आईसीएमआररिपोर्ट ने दिए सुझाव: एंटीबायोटिक्स के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देना होगा। पुख्ता और निर्णायक जांच के बाद ही मरीज को एंटीबायोटिक दिए जाए, केवल अनुमान के आधार पर नहीं। कई लक्षणों के इलाज के लिए भी इन्हें दिया जा रहा है, जो सही नहीं है।Screenshot_20220911-124351.jpg