भूकंप- सन् 1938 में आया था 6.2 तीव्रता, वर्ष 1997 में 5.8 की तीव्रता

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फाईल फोटो

  • नर्मदा घाटी में भूकंप का इतिहास, चुटका संयत्र के लिए चुनौती

मंडला. प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत के अनुसार नर्मदा ट्रिपल जंक्शन की एक भुजा है और ट्रिपल जंक्शन में शक्तिशाली भूकंपों का आना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी दो भूखंड के बीच के क्षेत्र को ही फाल्ट जोन कहते हैं। इनके ही आपस में टकराने व रगड़ खाने से जो विशाल ऊर्जा निकलती है वही भूकंप के रूप में तबाही मचाती है। भूगर्भीय वैज्ञानिको को मध्यम तीव्रता के इन भूकंपों से संकेत मिल रहा है कि टेक्टोनिक्स प्लेट्स के खिसकाव के कारण धरती के गर्भ में लगातार बदलाव चल रहा है। भोपाल मौसम केंद्र के वैज्ञानिक के अनुसार नर्मदा के उत्तरी हिस्स की तुलना में दक्षिणी हिस्से में भूकंप का खतरा ज्यादा है, क्योंकि इस हिस्से में इंडियन प्लेट है, जो नीचे की ओर जा रही है।

अमरकंटक से खंबात की खाङी तक 1312 किलोमीटर फैली नर्मदा घाटी में 200 साल का इतिहास भूकंप की हलचलों से भरा पङा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पास उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार चार बङे भूकंप और सैकङ़ो छोटे मोटे झटके इस दौरान दर्ज किये गए हैं। लेकिन 1938 का भूकंप जिसकी तीव्रता 6.25 मापा गया था। सबसे शक्तिशल था। उसका प्रभाव कोहदङ गांव (निमाङ) के रेल पुल पर पङा था, जिसका उपयोग रेलवे ने बाद में बंद कर दिया।

भूकंप को लेकर नर्मदा घाटी के सबंध में वैज्ञानिको की अलग-अलग राय है, जहां कुछ लोग अपने तर्को से बङे बांधों के निर्माण के बाद घाटी को संवेदनशील घोषित करते हैं, वहीं कुछ ऐसी संभावना और डर को पुरी तरह नकारते हैं। राष्ट्रीय भू-भौतिकी शोध संस्थान हैदराबाद के भूकंप वैज्ञानिक ने सरकार के लिए जो सर्वे किया था, उसमें साफ कहा था कि नर्मदा घाटी भूकंप की दृष्टी से सक्रिय क्षेत्र है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने नर्मदा परिक्रमा के दौरान 20 फरवरी 2018 को चुटका परणाणु परियोजना को लेकर पुनर्विचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। जिसमें अन्य मुद्दो के अलावा विशेष अनुरोध किया था कि मंडला जिला जबलपुर के निकट है एवं सिस्मिक जोन में होने के कारण यहां भूकंप का खतरा रहता है, ऐसी स्थिति में यदि नर्मदा नदी पर परमाणु संयंत्र स्थापित किया जाता है तो वह भविष्य में परमाणु विकिरण की वजह से बङे विनाश का कारण भी बन सकता है। उपरोक्त तथ्यों और इतिहास के आलोक चुटका परमाणु संयंत्र का निर्माण एक चुनौती होगा। जबकि भोपाल विश्व का सबसे बङा औधौगिक हादसा में हजारों जान गंवा चुका है।

  • इनका कहना है

अप्रैल 2011 में चुटका से 30 किलोमीटर दूर बरेला (मंडला - जबलपुर मार्ग) के पास सीता पहाड पर जमीन से विस्फोट होकर लावा निकलने की घटना हो चुका है। यह ज्वालामुखी प्रसुप्त अवस्था में है। अगर यह सक्रिय हो गया तो लगभग 40 से 50 किलोमीटर के दायरे में तबाही मचाएगा। वैज्ञानिको के अनुसार बरेला में 10 करोङ वर्ष पहले आए ज्वालामुखी लावा से निर्मित भू- भौतिकी नमूनों को देखा जा सकता है। क्षेत्र में होने वाले भू- परिवर्तन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि छह करोङ वर्ष पहले नर्मदा घाटी के क्षेत्र में समुद्र हुआ करता था।
राज कुमार सिन्हा, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ

  • घाटी में आए भूकंपों की जानकारी
    वर्ष तीव्रता
    1846 - 5.7
    1863 - 5.7
    1869 - 3.7
    1938 - 6.2
    1951 - 5.0
    1963 - 5.0
    1967 - 4.0,
    1969 - 4.2
    1970 - 5.4
    1997 - 5.8