यूपी में मोदी योगी से ज्यादा जीत दिलाने में इनकी भूमिका

in #hindinews3 years ago

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लखनऊ ।हर चुनाव के स्टार प्रचारक भी होते हैं और ऐसे स्टार भी होते हैं जो प्रचार से कोसों दूर रहते हैं, लेकिन उनका योगदान सिर्फ आलाकमान को पता होता है, आम लोगों को नहीं. पांच राज्यों में बीजेपी के परफॉर्मेंस को देखने के बाद हमने हर राज्य से खामोश हीरो चुने हैं जिन्होंने आलाकमान की रणनीति को अमली जामा पहना कर जीत दिलाने में अहम भूमिका निभायी. आइए जानते हैं इन पांच राज्यों में पर्दे के पीछे से बीजेपी के महत्वपूर्ण नेताओं की रणनीति के बारे में…

उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के चुनावों में मोदी-योगी को ऐतिहासिक सफलता मिली. दोनों के नाम और काम को वहां की जनता ने उपयोगी माना और भरोसा किया. लेकिन सब जानते हैं कि खामोशी से दोनों के नाम और काम की मार्केटिंग करने का काम संगठन ही करता है. इस खामोश टीम के संचालन के हीरो रहे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान. यूपी के चुनावी प्रभारी बनने के बाद उन्होंने पूरे राज्य के ज्यादातर जिलों और विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया. इस हजारों किलोमीटर की यात्रा में उन इलाकों में प्रवास भी किया. जहां मौजूदा विधायकों का टिकट कटने से मुश्किलें आयीं. वहां मिल बैठ कर मसले को सुलझाया. पीएम मोदी औऱ आलाकमान के दूत होने के नाते वे 6 महीने तक रणनीति बनाने में केंद्र और राज्य के बीच एक सेतु का काम करते रहे.
प्रभारी के नाते उनकी जिम्मेदारी थी चुनावी रणनीति को अमली जामा पहनाना और साथ ही पीएम मोदी के सपने को जनता तक पहुंचाना. तभी तो जीतने के बाद धर्मेंद्र प्रधान ने ट्वीट कर कहा कि यूपी की जनता ने सुशासन और विकास की राजनीति को चुना है. पीएम मोदी के वाराणसी के रोड शो में मैंने खुद धर्मेंद्र प्रधान को पीएम के काफिले के आगे पैदल चलते देखा. भीड़ काफी थी और सुरक्षा घेरे में वे धीरे धीरे चले जा रहे थे. मैंने उन्हें रोक कर बाइट लेने की कोशिश की. उन्होंने एक हल्की मुस्कुराहट दिखाई, हाल पूछा और मुंह पर उंगली रखकर इशारा किया कि वो कुछ नहीं बोलेंगे. इस बार पूरे चुनावों में धर्मेंद्र प्रधान ने न कोई इंटरव्यू दिया और न ही कोई बाइट. इसके पहले भी धर्मेंद्र प्रधान को हमने छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक और बिहार के प्रभारी के तौर पर काम करते देखा है. पहले तो उनके प्रभार वाले राज्यों में चुनावों के दौरान उनके इंटरव्यू मिल जाते थे, लेकिन इस बार खामोश रह कर हीरो के रूप में उभरे हैं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान.

गोवा
गोवा में तो सरकार संकट में थी. मैदान में इतने प्लेयर आ चुके थे कि आलाकमान को भी लगने लगा था कि वापसी तो असंभव ही है, लेकिन आलाकमान ने इस बार प्रभारी बनाया महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को. देवेंद्र फडणवीस ने इस बार परदे के पीछे रह कर ट्रिपल इंजन का काम किया. एक तो गोवा में परदे के पीछे संगठन को मजबूत करने में लगे रहे. फिर स्टार प्रचारक के तौर पर हर विधानसभा क्षेत्र में जनसभा की और इस बीच महाराष्ट्र को भी नहीं भूले. पीएम मोदी जानते थे कि कोरोना के दौरान किए गए काम के साथ-साथ सरकार की योजनाओं का फायदा गोवा की जनता तक पहुंचा है इसलिए पूरी ताकत के साथ विधानसभा चुनाव लड़ने का इरादा बना लिया.

अब आलाकमान हथियार डालने के मूड में नहीं था तो देवेंद्र फडणवीस ने भी कमर कस ली. चुनावों से डेढ़ महीने पहले ही वे गोवा में बैठ गए. सबसे पहले उन्होंने संगठन को मजबूत करना शुरू किया. हर विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया. हर बूथ के कार्यकर्ताओं की बैठक ली. जब वो संतुष्ट हो गए कि कार्यकर्ता चुनावों के लिए तैयार हैं तब उन्होने उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक लेना शुरू कर दिया. एक बार ये काम पूरा हुआ तो फिर पार्टी आलाकमान को इसके बारे में उन्होंने बताया. महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने वाली अपनी पूरी टीम को देवेंद्र फडणवीस ने गोवा में काम पर लगा दिया. हर विधान सभा में अपना एक आदमी रखा जो हर पल की खबरें उन तक पहुंचा रहा था. इस तरह से उन्होंने भीतरघात के खतरे को भी रोका. अंत में यही कहना चाहूंगा कि गोवा के इस टर्न अराउंड के खामोश हीरो रहे देवेंद्र फडणवीस.

मणिपुर
केंद्रीय मंत्री भूपेद्र यादव को मणिपुर का प्रभार मिला. भूपेंद्र यादव भी ज्यादा बोलने में यकीन नहीं रखते हैं. लेकिन मणिपुर का चुनाव प्रभारी बनने के बाद उन्होंने चीजों पर पैनी निगाहें रखीं, लेकिन राज्य के प्रभारी संबित पात्रा को लगातार मार्गदर्शन देते रहे. संगठन में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को मणिपुर की जिम्मेदारी मिली. आलाकमान जानता था कि पहली बार इतना बड़ा जिम्मा उनके कंधों पर रखा गया है क्योंकि राज्य में चुनाव आने वाले थे. लेकिन आलाकमान के भरोसे पर संबित पात्रा खरे उतरे. चुनावों से चार महीने पहले से ही उन्होंने वहां प्रवास शुरू कर दिया और दूसरा चुनावों से दो महीने पहले इंफाल में घऱ लेकर वहीं बस गए. एक प्रवक्ता के लिए टीवी पर नहीं दिखना और अखबार में अपना वक्तव्य नहीं छपा देखना काफी मायने रखता है. लेकिन संबित जानते थे कि उनके युवा कंधों पर ये जिम्मेदारी उनके भविष्य का भी निर्माण करेगी. तभी दिल्ली छोड़कर चार महीने के लिए मणिपुर में ही डेरा डाल दिया.

चुनौती बहुत बड़ी थी. पिछली बार जोड़ तोड़ कर सरकार बनी थी और इस बार पीएम मोदी के विजन को पूरा करने की चुनौती भी थी. संबित पात्रा लग गए संगठन के साथ सरकार की योजनाओं के बारे में गांवों तक पहुंचाने में. मणिपुर के हर घर तक पहुंचने की कवायद में घर घऱ संपर्क का अभियान बीजेपी ने शुरू किया. पीएम मोदी की सरकार की योजनाओं का लाभ सबको पहुंच रहा है ये बात घर घऱ तक फैलायी गयी. मंडल स्तर तक संगठन तैयार हो गया. हर बूथ पर काम करने के लिए कार्यकर्ता तैयार हो गए. इस बार पार्टी ने लगभग 20 हजार घरों पर अपने झंडे लगा दिए. आलम ये था कि हेलीकाप्टर से उड़ते नेताओं को इंफाल भगवा ही नजर आता था. संबित जानते थे कि पूर्वोत्तर के राज्य पीएम मोदी की प्राथमिकता वाली लिस्ट में हैं. इसलिए पीएम मोदी, अमित शाह, अध्यक्ष जेपी नड्डा सभी ने मणिपुर में लगातार डेरा डाला और प्रभारी होने के नाते संबित पात्रा ने राज्य के संगठन को जिस ताकत से काम पर झोंका वो उन्हें मणिपुर का खामोश हीरो बना रहा है.

उत्तराखंड
उत्तराखंड गवाह है कि आखिर हारी हुई लड़ाई को जीत में कैसे बदला जा सकता है. 5 सालों में तीन मुख्यमंत्री देना सरकार की एक नकारात्मक छवि पेश करता है. एक सीएम 4 साल के बाद बदला जिससे कार्यकर्ता नाराज थे, भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे, आलाकमान की राय से अलग फैसले लेने का आरोप लग रहा था. साथ ही जनता बीजेपी से दूर होती जा रही थी. लेकिन खटीमा के दूसरी बार के विधायक पुष्कर धामी के सीएम बनने के चंद महीने के बाद वोटरों के अंदर की नकारात्मकता खत्म होने लगी. आलाकमान ने पुष्कर धामी से कह दिया कि वो पूरे राज्य में जनता के बीच दौरे करते रहें और जनसंपर्क बनाए रखें. तो दूसरी ओर संगठन को चाक चौबंद करने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी को चुनावी प्रभारी बना कर भेजा गया.
सब जानते थे कि उत्तराखंड में किए गए विकास के काम, सरकारी योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंचा है तो केदारनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण और कॉरीडोर के निर्माण के साथ साथ चार धाम यात्रा के लिए ऑल वेदर रोड बनाने की शुरुआत भी लोगों का दिल जीतने में सफल रही थी. पीएम मोदी का नाम और काम उत्तराखंड में बिकता है ये बात आला नेता भी जानते थे. लेकिन जड़ें और मजबूत करनी थीं. इस काम में पुष्कर धामी लग गए. 6 महीने पूरे राज्य की यात्रा करते रहे. जनता से मिलते रहे. प्रबुद्ध लोगों से मिलते रहे कार्यकर्ताओं के लिए दरवाजे खोल दिए गए. आलम ये रहा कि राज्य में नेतृत्व को लेकर नकारात्मकता थी उसे खत्म करने में धामी सफल रहे. उधर बिखरी हुई कांग्रेस जंग में पिछड़ती ही चली गयी. इसने ही बीजेपी के लिए एक ऐसा बेस तैयार किया जिसने जीत का रास्ता साफ कर दिया. जीत तो मिली लेकिन धामी हार गए. इस लिए उत्तराखंड के खामोश हीरो रहे पुष्कर धामी.

पंजाब
पंजाब पीएम मोदी के कितना मायने रखता है वो इस बात से भी साफ हो गया कि उन्होंने अपनी सुरक्षा में भारी चूक के बावजूद पंजाब में तीन रैलियां कीं. नतीजे सबको मालूम थे, लेकिन ये तय हो गया था कि बीजेपी बिना लड़े पंजाब में हथियार नहीं डालेगी. बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह को राज्य का प्रभारी बनाकर एक साल पहले पंजाब भेजा गया ताकि संगठन का विस्तार किया जा सके. फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत को भी पंजाब का चुनाव प्रभारी बनाया गया. बीजेपी आलाकमान की चिंता इस बात की थी कि वो अब तक सिर्फ 23 सीटों पर अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी. इसलिए जिला स्तर तो क्या, मंडल स्तर पर भी पार्टी का ढांचा नहीं था और इस बार चुनौती 117 सीटों पर तैयारी करने की थी. एक साल तो किसान आंदोलन में ही निकल गया जिसमें बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर ही नहीं पाए. चुनावों के लिए सिर्फ तीन महीने बचे थे. बीच में चंडीगढ़ के नगर निकाय चुनाव भी हुए. तमाम नकारात्मक माहौल होने के बाद भी बीजेपी एक ताकत के रूप में उभरी और आम आदमी पार्टी को पछाड़ कर मेयर के पद पर कब्जा भी जमा लिया.

चंडीगढ़ में मिली सफलता के बाद बीजेपी में उत्साह बढ़ गया. विधानसभा के लिए समय कम बचा था. काम तूफानी गति से करना था. सूत्र बताते हैं कि इसके लिए राज्य के प्रभारी सौदान सिंह ने हर जिले में संघ के 2-2 कार्यकर्ता लगा दिए. संघ के प्रचारकों के अनुभव साझा करने के बाद हर विधानसभा क्षेत्र में 3-3 कार्यकर्ताओं को भेजा गया. पूरे पंजाब में बीजेपी के 350 से ज्यादा मंडल खड़े कर दिए. कार्यकर्ताओं की कमी थी इसलिए पंजाब की सीमा से सटे जम्मू, हिमाचल, हरियाणा और राजस्थान से कार्यकर्ताओं की टीम काम पर लगा दी. आलाकमान जानता था कि समय कम था इसलिए जनता ने उन्हें विकल्प के रूप में नहीं देखा. इसलिए इस बार मेहनत भले ही बहुत रंग नहीं लायी, लेकिन भविष्य के लिए बीजेपी की जड़ें मजबूत हो जाएंगी.

इस बार जीत आसान नहीं थी. लेकिन पीएम मोदी भी मानते हैं ये जीत उन बीजेपी कार्यकर्ताओं के नाम है जिन्होंने अपने नफे नुकसान की चिंता किए बिना पार्टी को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. किसी भी एक के सिर पर जीत का सेहरा बांधना आसान नहीं लेकिन इन्हीं में से एक खामोश हीरो को चुनने की कोशिश हमने की क्योंकि वही सही रास्ता बताता है.