मेनोपॉज के बाद बस फॉलो करें ये टिप्स, कम होगा बिमारियों का खतरा

in #health2 years ago

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आमतौर पर 45-46 साल की उम्र के बाद महिलाओं को हर महीने होने वाले पीरियड्स बंद हो जाते हैं। इस दौरान कई शारीरिक बदलाव होते हैं, जिससे ज्यादातर महिलाओं को कई शारीरिक-मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो मेनोपॉज के बाद होने वाली इन परेशानियों को कम किया जा सकता है। आईए डब्ल्यू प्रतीक्षा अस्पताल, गुरुग्राम से स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रागिनी अग्रवाल से जानते है , कैसे?

किशोरावस्था में आने पर लड़कियों के ओवरी से एस्ट्रोजन नामक हार्मोन के रिसाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जिसमें उन्हें हर महीने माहवारी यानी पीरियड्स होते है। यह हार्मोन महिलाओं के रिप्रोडक्टिव सिस्टम, पेल्विक ऑर्गन, हार्ट, हड्डियों, स्किन की हेल्थ को मेंटेन करता है और ब्रेन फंक्शंस को भी मेंटेन करता है। उम्र बढ़ने पर हार्मोन के रिसाव की प्रक्रिया धीरे-धीरे कम होती जाती है और एक समय बाद बंद हो जाती है। अगर महिला को 45-46 साल की उम्र के बाद लगातार 12 महीने तक पीरियड्स न हों, तो उसे मेनोपॉज माना जाता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसे रोका नहीं जा सकता लेकिन मेनोपॉज होने के दौरान या उसके बाद महिलाओं को होने वाली कई तरह की बीमारियों और समस्याओं से बचने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
आती हैं ये समस्याएं
मेनोपॉज शुरू होने के दौरान महिलाओं को कई तरह की प्रॉब्लम हो सकती हैं जैसे- पीरियड्स में अनियमितता, कुछ महीनों का गैप होना या कम मात्रा में पीरियड्स होना जैसी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा दिन में कई बार हॉट फ्लैशेज होना, जिसमें बहुत गर्मी महसूस होना, बहुत ज्यादा पसीना आना, बेचैनी बढ़ना, रोजमर्रा के काम न कर पाना। इसके साथ ही रात को सोते-सोते अचानक घबराहट की वजह से नींद खुल जाना, मूड स्विंग होना, चिड़चिड़ापन, घबराहट, एंग्जाइटी, गुस्सा आना भी मेनोपॉज के लक्षणों में शामिल हैं। साथ ही वैजाइना में ड्रायनेस, जलन, ब्लैडर की मसल्स लूज होना जिससे यूरीन रोक न पाना, खांसने-हंसने पर यूरीन लीक होना, वजन बढ़ना, बालों का झड़ना, डिप्रेशन, बातों को भूल जाना जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।
बचाव के उपाय
अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर, कुछ एहतियात बरतकर महिलाएं मेनोपॉज के बाद होने वाली जटिलताओं औैर विभिन्न बीमारियों से अपना बचाव कर सकती हैं।
खुद पर ध्यान दें : दिन में अपने लिए कुछ समय जरूर निकालें। अपने ऊपर ध्यान दें, खुद से प्यार करें, अपनी खूबियों को सराहें। अपने पसंदीदा काम करें, हॉबीज (जैसे- म्यूजिक सुनना, बागवानी करना, आर्ट एंड क्राफ्ट, अपनी रुचि का लेखन-पठन) को समय दें। एंग्जाइटी से बचने के लिए ब्रेन-गेम्स खेलें। इससे यकीनन अपनी समस्याओं की ओर से आपका ध्यान हटेगा।
नियमित व्यायाम करें: ओबेसिटी से बचने के लिए दिन में कम से कम एक घंटा रेग्युलर एक्सरसाइज जरूर करें जैसे वेट बियरिंग, कीगल, कार्डियो, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, ब्रिस्क वॉक, स्वीमिंग करें। तनावमुक्त रहने के लिए रेग्युलर 15-20 मिनट मेडिटेशन या प्राणायाम भी करें।
हॉट फ्लैशेज से घबराएं नहीं: ठंडे वातावरण में रहने का प्रयास करें। रूम टेंपरेचर नॉर्मल रखें। खुली हवा में वॉक करें, मेडिटेशन करें और शारीरिक बदलावों के बावजूद सामान्य रहने की कोशिश करें। रात में होने वाले पसीने से बचने के लिए सोने से पहले नॉर्मल पानी से शावर लें। ढीले-ढाले कपड़े पहनें। अरोमा ऑयल से हल्की-सी मसाज करें ताकि थकान दूर हो और नींद अच्छी आए।
उपचार
मेनोपॉज के शुरुआती दो-तीन सालों में ज्यादा परेशानी होती है। इंडियन मेनोपॉज सोसाइटी की रिसर्च के हिसाब से मेनोपॉज में महिलाओं की स्थिति के आधार पर हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) या नॉन हार्मोनल ओरल मेडिसिन काफी कारगर है। हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम, विटामिन डी, विटामिन बी, विटामिन सी के सप्लीमेंट भी दिए जाते हैं। मेनोपॉज के बाद महिलाओं में होने वाले तनाव को कम करने के लिए उन्हें एंटी डिप्रेसेंट, फाइटो एस्ट्रोजन, सोया-टेबलेट भी दी जाती हैं।
रेग्युलर चेकअप कराएं
अपनी मेडिकल रिकॉर्ड और फैमिली हिस्ट्री के बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं। अगर डायबिटीज, थाइरॉयड जैसी बीमारियां हों तो मेनोपॉज के शुरुआती समय में रेग्युलर अपना चेकअप कराएं, ताकि जरूरी होने पर समुचित उपचार किया जा सके। मेनोपॉज के बाद साल में एक बार फुल बॉडी चेकअप जरूर करवाएं। इसमें ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थाइरॉयड, लिपिड प्रोफाइल, बीएमआई, बीएमडी, हीमोग्लोबिन की जांच कराएं। सर्वाइकल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के लिए 40 साल के बाद दो साल में एक बार पैप स्मीयर टेस्ट और मेमोग्राफी स्क्रीनिंग जरूर कराएं। समय-समय पर सेल्फ एग्जामिनेशन करें। किसी भी तरह का अंदेशा हो तो डॉक्टर से कंसल्ट करें।
प्रस्तुति : रजनी अरोड़ा