अकेले पड़े कांग्रेसी युवराज, ईडी के सवालों की बौछार झेल रहे राहुल को नहीं मिला विपक्ष का साथ

in #hanumangarh2 years ago

कांग्रेस पार्टी की राजनीति को बारीकि से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, प्रभावी रणनीति तैयार करने में कांग्रेस पार्टी चूक जाती है। विपक्षी दलों में एकता के प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन कुछ समय बाद वे अलगाव की राह पर चल पड़ते हैं

नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारियों के सवालों को झेल रहे कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष का साथ नहीं मिला। सोमवार को जब राहुल से पूछताछ चल रही थी तो उस वक्त उनकी बहन एवं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी अपने नेताओं का हालचाल जानने पुलिस स्टेशन में पहुंची थीं। दोपहर दो बजे तक देश के दर्जनभर दलों के प्रमुख नेताओं ने राहुल के समर्थन में ट्वीट करने से भी गुरेज किया। अगर कांग्रेस पार्टी को छोड़ दें तो राहुल अकेले पड़ गए थे। राहुल गांधी के ईडी दफ्तर में पहुंचने से पहले पार्टी महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने एक प्रेसवार्ता में मोदी सरकार के खिलाफ नई क्रांति का जिक्र किया था। जैसे ही राहुल से पूछताछ शुरु हुई तो कांग्रेस पार्टी की नई क्रांति, 'एकला चलो' की राह पर जाती हुई नजर आई।
अखिलेश का दिया था साथ
साल 2019 में जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव का नाम कथित खनन घोटाले में आया तो कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने उनके समर्थन में बयान जारी किया था। विपक्षी दलों ने उस मामले में सीबीआई को आड़े हाथ लिया। खुद अखिलेश ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'दुनिया जानती है इस खबर में हुआ है मेरा जिक्र क्यों, बदनीयत है जिसकी बुनियाद उस खबर से फिक्र क्यों'। बसपा के सतीश मिश्र ने कहा, केंद्र सरकार, सीबीआई को ध्वस्त कर रही है। हमीरपुर में जो कुछ हुआ है, उसके लिए मुख्यमंत्री कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं। सरकार, सीबीआई को तोते की तरह इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर अखिलेश यादव के साथ खड़े होने का एलान किया था। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने उस वक्त कहा था, नरेंद्र मोदी सरकार सीबीआई जैसी संस्थाओं के जरिए राजनीतिक पार्टियों पर दबाव बनाने का काम करती है। जब पश्चिम बंगाल में सीबीआई टीम को बंधक बनाया गया तो भी देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की आलोचना की थी।
किसी विपक्षी नेता ने नहीं किया ट्वीट
राहुल गांधी से पूछताछ के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव का कोई ट्वीट सामने नहीं आया। उनकी पार्टी ने भी इस मामले में टिप्पणी करने से गुरेज किया। बसपा प्रमुख मायावती ने भी दोपहर तक इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला। शिवसेना की तरफ से सोमवार को कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। राजद नेता एवं पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव ने भी राहुल गांधी को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। टीएमसी प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने राहुल के समर्थन में ट्वीट नहीं किया। शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर बादल भी इस मामले में चुप रहे। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता का प्रयास कर रहे एनसीपी नेता शरद पवार ने भी राहुल गांधी के समर्थन में कोई टिप्पणी नहीं की। केरल के सीएम का बयान भी कहीं नजर नहीं आया।

तेलंगाना में टीआरएस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। डीएमके नेता एवं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने ईडी व राहुल की पेशी को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। जेडीयू नेता एवं बिहार के सीएम नीतीश कुमार, ने भी इस मामले में मौन रहना बेहतर समझा। शरद यादव के ट्विटर पर भी राहुल का समर्थन नहीं दिखा। आंध्र प्रदेश के सीएम वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भी राहुल गांधी या कांग्रेस को लेकर कोई ट्वीट नहीं किया। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, जिनके मंत्री सत्येंद्र जैन ईडी की हिरासत में हैं, उन्होंने भी दोपहर दो बजे राहुल गांधी को लेकर ट्वीट नहीं किया। शिवसेना ने भी इस मामले में शांत रहना ठीक समझा।
भाजपा की राह होगी आसान
राहुल गांधी से ईडी पूछताछ कर रही है और विपक्षी दल मौन हैं, इस बाबत राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसमें कुछ हैरानी की बात नहीं है। विपक्ष को एकजुट करने के लिए अभी तक कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। खुद के कुनबे में फूट है। पार्टी में किसी को यह नहीं मालूम है कि चलती किसकी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी, आखिर पार्टी कार्यकर्ता किससे बात करें। इस हाल में विपक्षी दल, कांग्रेस पर कैसे भरोसा कर सकते हैं। ऐसी संभावना है कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष, एकला चलो की राह देखता रह जाए।

कांग्रेस पार्टी को पहले अपना घर सुरक्षित करना चाहिए। उसके बाद दूसरे दलों को मान सम्मान प्रदान करे। कांग्रेस पार्टी की राजनीति को बारीकि से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रशीद किदवई कहते हैं, प्रभावी रणनीति तैयार करने में कांग्रेस पार्टी पीछे रह जाती है। विपक्षी दलों में एकता के प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन कुछ समय बाद वे अलगाव की राह पर चल पड़ते हैं। अन्य विपक्षी दलों को भरोसे में लेने से कांग्रेस पार्टी चूक जाती है। राहुल गांधी से हो रही पूछताछ के दौरान इतने दलों के नेताओं की चुप्पी, न केवल राष्ट्रपति चुनाव, बल्कि 2024 तक के लोकसभा चुनाव में भाजपा की राह आसान बना रही है।
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