कमीशन की फेर में मरीजों की जेब पर पड़ रहा है बुझ जन औषधि केंद्र जन किनार।

in #fuf2 years ago

हाथरस, जागरण संवाददाता। मरीजों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने का सरकार का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है। गंभीर बीमारियों के लिए खोले गए जन औषधि केंद्र दवाओं की किल्लत से जूझ रहे हैं, वहीं चिकित्सकों और प्राइवेट मेडिकल स्टोरों में कमीशन के चलते पैसे का बोझ आम लोगों की जेब पर पड़ रहा है।कमीशन के चलते जेनरिक दवाओं की अपेक्षा कई प्राइवेट मेडिकल स्टोरों से कई गुना महंगी दवाओं को खरीदने के लिए मजबूर हैं।

हाथरस में दो जन आषधि केंद्र हैं। इनमें 12 से अधिक दवाओं की सूची तो है, लेकिन दवाएं केवल एक तिहाई ही हैं। जन औषधि केंद्रों के इस हाल के लिए चिकित्सक भी जिम्मेदार हैं। जिला अस्पताल के कई चिकित्सक पर्चे पर बाहर की दवाएं लिखते हैं। यह दवाएं न तो जिला अस्पताल के ड्रग स्टोर में हैं न हीं जन औषधि केंद्र पर मिलती हैं। वहीं प्राइवेट डाक्टरों का भी यही आलम हैं। उनके पर्चाें में ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं की भरमार रहती है। किसी बीमारी की एक गोली अगर जेनरिक स्टोर पर पांच रुपये की है, तो वही गोली प्राइवेट स्टोर पर 15 से 20 रुपये की मिलती है।

मोटा मुनाफा कमा रहे चिकित्सक

पर्चे में महंगी और ब्रांडेड दवाओं के पीछे कमीशन का मोटा खेल है। हर टैबलेट पर मेडिकल स्टोर संचालक और दवा कंपनियों के एमआर डाक्टरों की कमीशन फिक्स हैं। लाखों रुपये का खेल इसमें होता है। महंगे गिफ्ट से भी डाक्टरों को लुभाते हैं। महंगी टैबलेट, सीरप, कैप्सूल का बोझ गरीब व्यक्तियों के जेब पर पड़ता है। सामान्य सर्दी-जुकाम की दवा भी 100 रुपये के करीब आती है। गंभीर बीमारियों में दवाओं का बिल हजारों में बैठता है।

पर्चे के पीछे ब्रांडेड कंपनियों की दवा

जिला अस्पताल हो या फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सरकारी डाक्टर भी बाहर की दवाएं खूब लिख रहे हैं। यह दवाएं पर्चे के पीछे लिखी जाती हैं। ज्यादतर मरीजों के पर्चे ऐसे ही लिखे जा रहे हैं। यह दवाएं ग्राहकों को काफी महंगी पड़ रही हैं।

जैनरिक से काफी महंगी कंपनियों की दवा

निजी मेडिकल स्टोरों पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाओं के दाम जैनरिक दवाओं से काफी ज्यादा है। मलेरिया की किट बाहर 50 रुपये की है जो कि जन औषधि केंद्र पर महज 12 रुपये में मिल जाती है। लीवर का कैप्सूल जन औषधि केंद्र पर 14 वहीं बाहर 35 रुपये तक का है। डाइबिटीज का एक कैप्सूल 17 रुपये तो बाहर 50 रुपये में मिल रहा है। थाइराइड की टैबलेट की शीशी जैनरिक स्टोर पर 62 रुपये तो बाहर 130 में मिल रही है। मल्टी विटामिन कैप्सूल जन औषधि केंद्र पर तीन रुपये तो ब्रांडेड कंपनियों में 10 रुपये के करीब है।बोले मरीज

दो साल के ब'चे को खांसी, बुखार और जुकाम है। जिला अस्पताल में ब'चे को दवा दिलाने आई हूं। चिकित्सक ने तीन दिन की दवा लिखी है। जिला अस्पताल की ओपीडी में दवा नहीं मिली है। न ही जन औषधि केंद्र पर दवा मिली है। बाहर के मेडिकल स्टोर से दवा खरीदनी है। पति मजदूरी करते हैं, महंगी दवा खरीदने के लिए हमारे पास रुपये तक नहीं है।

वर्षा, ग्राहक

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तीन साल के ब'चे को बुखार व सूजन है। चिकित्सक ने तीन दिन की दवा लिखी है। जिला अस्पताल में दवा नहीं मिली तो सोचा कि जन औषधि केंद्र पर मिल जाएगी, लेकिन यहां भी दवा मौजूद नहीं है। अब बाहर मेडिकल स्टोर से दवा लेनी पड़ रही है। बाहर की दवा काफी महंगी है।

वीनेश , ग्राहक

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जिला अस्पताल में ब'चे की नाक का आपरेशन कराया था। चिकित्सक ने पर्चे के पीछे दवा लिखी है, लेकिन यह दवा जन औषधि केंद्र पर मौजूद नहीं है। दवा बाहर के मेडिकल स्टोर पर मिलेगी। खेतीवाड़ी करके परिवार चलाता हूं। जन औषधि केंद्र की अपेक्षा बाहर की दवा तीन गुनी महंगी है।

महेश कुंवरपुर

इनका कहना है

अधिकांश दवाएं अस्पताल में हैं। यदि चिकित्सक बाहर से दवा लिखते हैं और इसकी शिकायत मिलते है तो चिकित्सक से जवाब तलब कर कार्रवाई की जाएगी। इस संबंध में सभी चिकित्सकों को एक पत्र जारी कर रह हूं।IMG_20220625_093427.jpg