शिक्षा के बाजारीकरण होने से शिक्षक-छात्रों में बढ़ रही हैं दूरियां - आलोक श्रीवास्तव

in #education2 years ago

वरथियम संवाददाता - संतकबीरनगर

भारत में गुरुजन और शिक्षकों का ओहदा माता पिता से भी ऊंचा माना जाता है। छात्रों के जीवन में शिक्षक की भूमिका बहुत अहम होती है। शिक्षकों के इसी महत्व को दर्शाने के लिए भारत मे हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। शिक्षक दिवस के दिन हर छात्र उनके जीवन को संवारने वाले शिक्षकों को सम्मानित करते हैं। शिक्षकों का उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त किया जाता है। एक शिक्षक का महत्व और भूमिका हर छात्र के जीवन में स्पष्ट है। ऐसा कहा जाता है कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के मौके पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है, उनका जन्म 5 सितंबर 1988 को तमिलनाडु के थिरुथानी में हुआ था।
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डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आजाद भारत के पहले उप राष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति भी रहे हैं। उनके करियर की शुरुआत बतौर शिक्षक के रूप में हुई और जीवन पर्यन्त उन्होंने अपने आपको शिक्षक ही माना, उनके इसी त्याग और समर्पण को देखते हुए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। एक अध्यापक होने के साथ ही राधाकृष्णन प्रसिद्ध दार्शनिक, विचारक और राजनेता भी थे।
आज के परिवेश में शिक्षा का पूर्णतः बाजारीकरण हो चुका है। शिक्षक और छात्रों के बीच जो प्रेम-व्यवहार व् शालीनता थी वह बाजारीकरण के दुष्प्रभाव से दूर होती जा रही हैं। अब जरूरत है शिक्षा के परिवेश को नया आयाम देने की, जब तक शिक्षा जगत को व्यवसाय के दृष्टिगत प्रयोग किया जायेगा, छात्रों-शिक्षकों के मध्य दूरियां बनी रहेंगी। आज जरूरत है छात्रों को शिक्षा के नए प्रारूप से जोड़कर प्रेम से पढ़ाने और सिखाने की, और छात्रों को भी अपने शिक्षकों का सम्मान कर देश को आगे बढ़ाने की।
हमे पूर्ण आशा व् विश्वास है कि आने वाले समय मे शिक्षा के व्यावसायिकरण पर रोक लगेगी और शिक्षक-छात्रों के मध्य शिक्षक दिवस सिर्फ उपहार देने तक सीमित न रहकर पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशाशनिक अधिकारी बनकर आज्ञाकारी होकर उचित उपहार देने की।