जश्न मीर के तीन सौ वर्षों पर एएमयू में निबंध संग्रह सहित चार पुस्तकों का किया प्रकाशन
अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ब्लॉक हॉल में उर्दू विभाग द्वारा प्रकाशित प्रोफेसर मुहम्मद अली जौहर और डॉ. सरवर साजिद के निबंधों के संग्रह ‘थ्री सेंटेनरी सेलिब्रेशन’ का कुलपति प्रो. नईमा खातून द्वारा विमोचन किया गया। उन्होंने इसके साथ ही तीन और किताबें डॉ. मुहम्मद इकबाल जरगर की अहमद अकबराबादी की जिंदगी और सेवाएं, डॉ. नाजिया सुम्बुल की किताब मुमताज हुसैन की विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाएं, डॉ. आफताब आलम नजमी और गजाला तहसीन की जीवनी पर आधारित पुस्तक ‘चक पर जलता चिराग’ का विमोचन भी किया गया।
कुलपति प्रो नईमा खातून ने उर्दू विभाग के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा कि उर्दू किसी वर्ग विशेष की भाषा नहीं है और न ही इस पर किसी एक वर्ग या विभाग का एकाधिकार है। यह भाषा लोगों की है और यह प्रेम की भाषा है, जिसे लोकप्रिय बनाने में सर सैयद और उनके दोस्तों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस विश्वविद्यालय और विशेषकर उर्दू विभाग ने जो भूमिका निभाई, उसका कोई उदाहरण नहीं है।
इस अवसर पर उन्होंने चारों पुस्तकों के सभी लेखकों और संपादकों को बधाई दी विशेषकर उन शोधार्थियों को जिनके लेख ‘तेन सू साल्हो जश्न मीर’ लेख संग्रह में शामिल किये गये हैं। उन्होंने कहा कि पूरे विश्वविद्यालय में सबसे अधिक शोधार्थियों का नामांकन उर्दू विभाग में है, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह भाषा लोगों के बीच कितनी लोकप्रिय है।
उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद अली जौहर ने ‘जीशान मीर’ और उसके लेखों के संग्रह के महत्व का परिचय देते हुए कहा कि यह लेखों का एक संग्रह है जिसमें मीर की आलोचना का क्रमिक विकास भी देखा जा सकता है। उन्होंने चारों किताबों के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा कि उर्दू गजल शायरी में मीर का कोई दूसरा नाम नहीं है।
डॉ. मुईद रशीदी ने डॉ. नाजिया सुम्बुल की पुस्तक मुमताज हुसैन की विद्वता और साहित्यिक सेवाओं का परिचय दिया, डॉ. मामून रशीद ने चक/हयात अब्दुल मतीन पर जलता चिराग का परिचय दिया, डॉ. मुहम्मद हनीफ ने एल. अहमद के जीवन और सेवाओं का परिचय दिया मोइदुर रहमान ने निबंधों के संग्रह, ट्राइसेंटेनरी जश्न मीर का परिचय दिया और इसकी सामग्री पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए समान महत्व रखती है, जिसमें आलोचना केवल सम्मेलन तक सीमित नहीं है। इस अध्याय में उन प्राचीन लेखों को भी सम्मिलित किया गया है जिन्हें सूचक चिन्ह का दर्जा प्राप्त है।
उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो कमरूल हुदा फरीदी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हालाँकि आज के समाज में उर्दू को अन्य भाषाओं की तुलना में कमजोर देखा जाता है।
लेकिन हकीकत में यह किसी भी तरह से कमजोर नहीं है। मीर और गालिब से लेकर इकबाल और उर्दू के महान आधुनिक कवियों और लेखकों ने इसकी जड़ें मजबूत की हैं। इस भाषा ने हमें बोलने की शालीनता दी है, इसी शालीनता ने इसे लोकप्रिय बनाया है। कार्यक्रम में उर्दू विभाग के अलावा विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक व शोधार्थी शामिल हुए।