निकाय चुनाव : सिर्फ पार्षद चुनेगी जनता, अध्यक्ष को चुनेगे पार्षद
डिंडोरी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए जिला और जनपद के वार्डो की आरक्षण प्रक्रिया व जनपद अध्यक्षों का आरक्षण संपन्न होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के तमाम दिग्गज नेता चुनाव के पहले ही धराशाही हो गए है। आरक्षण के चलते जिस मैदान में वे बहुत समय से अपना जौहर दिखाने का सपना संजोए थे वह मैदान ही अब उनका नहीं रहा, जिससे मायूस लोग फिलहाल विकल्प तलाश रहे है। आरक्षण के बाद क्षेत्र के राजनैतिक समीकरण और संभावनाए पूरी तरह से बदल चुकी है वहीं राजनीति में प्राय निष्क्रिय रहने वाली महिलाओं को अधिक अवसर उपलब्ध कराए गए है। बहुत सी महिला उमीदवार इससे उत्साहित है किन्तु अधिकतर महिला उम्मीदवार चुनाव के मैदान में अपने परिवार या पति का प्रतिनिधत्व करने चुनावी मैदान में है। चुनाव में आना उनका निजी निर्णय या रुचि का विषय नहीं बल्कि राजनैतिक या पारिवारिक प्रतिष्ठा कारण है।
उनको न तो राजनीति में रुचि है न इसकी सूझ, फिर भी चुनाव तो तय सरकारी प्रक्रिया और निर्धारित आरक्षण की व्यवस्था से ही होना है। वहीं किसी भी पारिवारिक राजनैतिक प्रभाव को पांच साल के लिए निष्क्रिय करना घाटे का निर्णय ही सकता है।
इसी तरह नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव में अध्यक्ष का अब सीधा चुनाव नहीं होगा। बल्कि अध्यक्ष पद के दावेदार पार्षदों के द्वारा चयनित किए जाएंगे। इस व्यवस्था से जो लोग पिछले पांच साल से अपनी पार्टियों के बड़े नेताओ की खुशामद में अध्यक्ष पद की दावेदारी पाने के लिए जुटे थे उनका मनोबल टूट गया है और अब उन्हें पार्षद का चुनाव लडना होगा। उसके बाद पार्षदों का बहुमत जुटाना होगा जो दोहरी चुनौती है। इस व्यवस्था में खरीद फरोख्त और पाला बदलने की बहुत अधिक संभावनाएं है। वहीं उन नेताओं के लिए तकलीफदेह भी है जो बड़े पद के काबिल खुद को समझते थे और अब उन्हें अदने से पार्षद पद का चुनाव लडना पड़ेगा। साथ ही अपने समर्थक पार्षदों के चुनाव पर भी नज़र बनाए रखनी होगी। इस तरह अध्यक्ष बनने के लिए कई बड़े कद के नेताओं के सामने अब जमीन पर उतरने की मजबूरी है।
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