गहलोत का जादू उतर गया, अध्यक्षी आते-आते रह गई, मुख्यमंत्री भी रहेंगे या हटाए जाएंगे?

in #delhi2 years ago

भरोसे की कोई उम्र नहीं होती। हमेशा बना रह सकता है और पल में टूट भी सकता है। अशोक गहलोत और गांधी परिवार के बीच भरोसे का जो रिश्ता था, वह भी कुछ पल की गलतियों में ही टूटता दिखा है। अशोक गहलोत पर गांधी परिवार का भरोसा इस कदर कमजोर हुआ है कि जो रविवार को शाम तक अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे थे, वह अब उससे आउट हो गए हैं। यही नहीं अब तो सीएम पद को लेकर भी संशय की स्थिति पैदा हो गई है। सोनिया गांधी के करीबियों में रहे अशोक गहलोत को बुधवार से ही मिलने के लिए लाइन में लगना पड़ा और बमुश्किल टाइम मिला। यही नहीं बाहर निकले तो चेहरा उतरा हुआ था और अंदाज माफी वाला था।

ashok_gehlot_news_1664451052.jpg

मीडिया से बात करते हुए अशोक गहलोत ने इसकी पुष्टि भी कर दी। उन्होंने विधायकों की बगावत को लेकर सरेंडर वाला रवैया दिखाते हुए कहा कि मैं इससे इतना आहत हूं कि बता नहीं सकता। इस घटना का दुख मुझे ताउम्र रहेगा। अशोक गहलोत ने बताया कि मैंने सोनिया गांधी से इसके लिए माफी मांगी है। मैं दुखी हूं कि एक लाइन में प्रस्ताव पारित करने की दशकों से चली आ रही परंपरा पहली बार टूट गई। इसके साथ ही अशोक गहलोत ने कह दिया कि मैं अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार था, लेकिन जो घटना पिछले दिनों हुई है। उसके बाद अब मैं साफ कर देना चाहता हूं कि अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ूंगा।

हालांकि इस बात को लेकर चर्चा है कि अशोक गहलोत ने अध्यक्ष पद पर चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है या फिर सोनिया गांधी ने उन्हें इससे दूर किया है। अगली ही लाइन में अशोक गहलोत ने इन कयासों को यह कह कर हवा दे दी है कि सीएम पद को लेकर भी सोनिया गांधी को ही फैसला लेना है। इससे अर्थ लगाया जा रहा है कि अध्यक्ष की रेस से बाहर हुए अशोक गहलोत से सीएम का पद भी दूर हो सकता है। यानी अशोक गहलोत के लिए वह स्थिति हो सकती है कि सीएम पद की माया में दोनों गए, अध्यक्षी मिली नहीं और राजस्थान की कमान पर भी संकट।

अशोक गहलोत ने भी मीडिया से बातचीत में माना कि रविवार को हुए घटनाक्रम से उनकी छवि खराब हुई है। उन्होंने कहा कि देश भर में ऐसा संदेश गया कि जैसे अशोक गहलोत को सीएम की कुर्सी का मोह है। यह सब गलत है और मैं कांग्रेस का अनुशासित सिपाही हूं। इस दौरान अशोक गहलोत ने इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक के साथ काम करने का अनुभव और भरोसे का जिक्र भी किया। हालांकि देखना होगा कि तीन पीढ़ियों से कायम भरोसा अब लौट पाता है या फिर अशोक गहलोत कभी न भरपाई होने वाले नुकसान की ओर बढ़ चले हैं।