अग्निपथ योजना: मोदी सरकार के बड़े फ़ैसले क्यों घिर जाते हैं विवादों में?

in #delhi2 years ago

PM13.jpg

देश के कई हिस्सों में विरोध के बावजूद भारतीय सेना ने अपनी नई भर्ती योजना अग्निपथ को वापस लेने से साफ इनकार कर दिया है.

सेना में निचले पदों पर अस्थायी भर्ती अभियान के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा अच्छे मक़सद से की गई चीजें राजनीति में फंस जाती हैंलेकिन पिछले आठ साल में मोदी सरकार ने कई ऐसे बड़े नीतिगत फैसले किए हैं जिनका व्यापक विरोध हुआ है.

हालांकि विरोध के बावजूद दो को छोड़ कर मोदी सरकार ने अपने सभी नीतिगत फैसलों को बरकरार रखा

आखिर मोदी सरकार अचानक इस तरह के चौंकाने वाले फैसले क्यों लेती है और इनका क्या असर होता है. विश्लेषक इसे किस नजरिये से देखते हैं आइए जानते हैं.काला धन, टेरर फ़ंडिंग और भ्रष्टाचार खत्म करने के मकसद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को रात आठ बजे टीवी पर देश के नाम संबोधन में नोटबंदी का एलान कर दिया. देश में 500 और एक हज़ार रुपये के नोटों पर पाबंदी लगा दी गई

सरकार के इस चौंकाने वाले फैसले से देश में अफरातफरी फैल गई. बाद में पता चला कि इससे अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई इस कदम से कितना काला धन सिस्टम में वापस आया इस पर विवाद बना हुआ है

टेरर फंडिंग में कमी और भ्रष्टाचार के खात्मे का सबूत देता कोई पुख्ता आंकड़ा तो मौजूद नहीं हैआरबीआई की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 15.41 लाख करोड़ के नोटों की नोटबंदी हुई थी लेकिन 15.30 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकिंग सिस्टम में लौट आए थे

विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले देश का औद्योगिक उत्पादन गिर गया था और जीडीपी में गिरावट आ गई थी एक अनुमान के मुताबिक 15 लाख नौकरियां खत्म हो गई थीं हालांकि इस फैसले से डिजिटल ट्रांजैक्शन और कैशलेस ट्रांजैक्शन काफी बढ़ गया था

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विनोद अग्निहोत्री कहते हैं हर प्रधानमंत्री की काम करने की अपनी शैली होती है मोदी जी की भी है गुजरात का सीएम रहते भी वे अचानक इस तरह के बड़े फैसले करते रहे हैं मोदी की राजनीतिक शैली में दो चीजें बेहद अहम है एक गोपनीयता और दूसरा चौंकाने वाला तत्व

अग्निहोत्री कहते हैं अचानक किए गए इन बड़े फैसलों का उनको राजनीतिक लाभ भी मिला है इसलिए वे इस तरह के फैसले लेते जा रहे हैं मोदी काफी अच्छे कम्यूनिकेटर हैं और लोगों को अपनी बात समझा ले जाते हैं इसलिए विवादास्पद फैसले भी वे लागू करवा लेते हैं 2018 में देश में कथित अवैध आप्रवासियों को दीमक बताते हुए नरेंद्र मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था केंद्र में दोबारा उनकी सरकार आई तो अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर कर दिया जाएगा

फिर असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स एनआरसी लागू करवाया गया और 20 लाख लोगों को इससे बाहर कर दिया गया

इनमें पूरी जिंदगी इस देश में रहने वाले कई मुसलमान विदेशी घोषित कर दिए गए दिल्ली में शाहीनबाग समेत देश में कई जगह कड़े विरोध के बावजूद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) ले आया गया

सीएए के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उत्पीड़न के कारण भाग कर भारत आए हिंदू, सिख ईसाई जैन बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है मुस्लिमों को इससे बाहर रखा गया है

पूर्वी दिल्ली में इसके विरोध में हिंसा हुई और 53 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए. इनमें ज्यादातर मुस्लिम थे

इसके बाद देश में कोविड लॉकडाउन की वजह से इन कानूनों का विरोध धीरे-धीरे दब गया

वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू की एसोसिएट एडिटर स्मिता गुप्ता कहती हैं मोदी सरकार ध्रुवीकरण की नीति और विपक्ष की कमजोरी की वजह से बढ़त बनाए हुए है. नोटबंदी के बाद भी बीजेपी यूपी का चुनाव जीत गई थी इसके बाद इसने लोकसभा का चुनाव जीता. इस राजनीतिक मजबूती ने मोदी सरकार को इतने बड़े फैसले अचानक लेने के मामले में दुस्साहसी बना दिया है नोटबंदी की तरह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2020 को देश में कोविड लॉकडाउन का एलान कर दिया यह लॉकडाउन की तैयारी के बगैर किया गया एलान था इस फैसले ने लाखों लोगों को पैदल अपने घरों को लौटने को मजबूर कर दिया था

लाखों लोग जहां के तहां फंस गए. कामकाज बंद होने से बड़ी तादाद में लोगों का रोजगार खत्म हो गया था और अप्रैल-जून 2020 के बीच इकोनॉमी में 24.4 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई

बीबीसी की रिपोर्ट में स्वास्थ्य वित्त आपदा प्रबंधन से जुड़े मंत्रालय समेत 240 विभागों को आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर बताया गया था कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन लागू करने से पहले किसी सरकारी विभाग मंत्रालय या विशेषज्ञ से सलाह नहीं ली थी मोदी सरकार ने कहा है कि कोविड से देश में 5.2 लोगों की मौत हुई है जबकि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इससे लगभग दस गुना ज्यााद लोगों की मौत हुई है हालांकि सरकार ने डब्ल्यूएचओ के इस आकलन का विरोध किया है