Aditya Singh

in #delhi2 years ago (edited)

n396587564165558604633112ad99993bbfa4ef240ba157201943d885d542d7f717435dc36bfb0c26947b71.jpgदस फीसदी अग्निवीर, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में और दस फीसदी जवानों को रक्षा मंत्रालय की नौकरी में प्राथमिकता मिलेगी। अग्निपथ भर्ती योजना को लेकर बीएसएफ के पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद का कहना है, चलो मान लेते हैं कि शुरुआत में तो उन्हें कहीं न कहीं समायोजित कर देंगे, लेकिन बाद में क्या होगा, ये नहीं सोचा गया।

सेना के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा है कि 2032 तक छह लाख 'अग्निवीर' बाहर आएंगे। उसके कुछ साल बाद 75 फीसदी यानी 11 लाख जवान बाहर आने लगेंगे। जब इतनी बड़ी संख्या में अग्निवीर बाहर आएंगे, तो उन सभी को सीएपीएफ में कैसे समायोजित करेंगे, क्योंकि इन बलों की कुल संख्या 10-11 लाख है। यहां पर तो नौकरी भी 60 साल तक करनी है। सेना एवं सीएपीएफ के 'मेंटल ओरिएंटेशन' में बहुत फर्क है। सीएपीएफ व राज्य पुलिस बलों में उन्हें स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग देनी होगी। पूर्व एडीजी सूद ने बताया, सरकार पेंशन बजट घटाने की बात कर रही है, 'अग्निपथ' से उस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल है।

छह माह की ट्रेनिंग में सक्षम नहीं बन सकेंगे 'अग्निवीर'

बतौर एसके सूद, ये एक अच्छी स्कीम नहीं है। बिना सोच-विचार के बिना इसे लागू किया गया है। जवान छह माह तो ट्रेनिंग करेगा, लेकिन वह छह-सात माह की छुट्टी भी लेगा। मौजूदा समय में सेना के जवान 32 से 35 साल तक नौकरी करते हैं। ऐसे में उनके पास 15-16 साल का अनुभव हो जाता है। वे बहुत से निर्णय स्वयं लेने की स्थिति में होते हैं। चार साल में युवाओं को कितना अनुभव हो सकेगा, इस पर सवालिया निशान है। अग्निपथ के जरिए भर्ती होने वाले अग्निवीरों को जो ट्रेनिंग दी जाएगी, उसे नौ माह से छह माह कर दिया गया है। इस ट्रेनिंग में वह पूरी तरह से सक्षम नहीं होगा।

'अग्निवीरों' को 'सीएपीएफ' में देनी पड़ेगी स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग ...

सीएपीएफ में अग्निवीरों को स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग देनी पड़ेगी। वजह, सेना और दूसरी जॉब या सीएपीएफ में ही बहुत फर्क होता है। मेंटल ओरिएंटेशन का अंतर रहता है। सीआईएसएफ या स्टेट पुलिस में 'मिनिमम यूज ऑफ र्फोस' का नियम है। सेना में 'एक गोली एक दुश्मन' का नियम है। सीएपीएफ में अग्निवीर को दोबारा से ट्रेनिंग देनी होगी। एसएसबी, नेपाल बॉर्डर पर है, यहां सेना वाली ड्यूटी नहीं है। आम लोगों से व तस्करों से संपर्क होता है। इसी तरह से यदि कोई अग्निवीर सीआईएसएफ में जाएगा तो वहां एयरपोर्ट, मेट्रो व दूसरे संस्थानों की सुरक्षा करनी होती है, वहां के लिए अलग से ट्रेनिंग देनी होगी। एसएसबी, सीआईएसएफ व पुलिस में सॉफ्ट स्किल की जरुरत पड़ेगी। चार साल के बाद अग्निवीरों को दोबारा से खुद में बदलाव लाना होगा।

11 लाख रुपये देंगे तो उससे पेंशन बिल कम नहीं होगा ...

अगर 11 लाख अग्निवीर हर साल निकलेंगे और प्रत्येक को 11 लाख रुपये मिलेंगे तो हिसाब वहीं पहुंच जाएगा। इससे पेंशन बिल पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। 2032 तक छह लाख जवान बाहर आएंगे। कुछ साल बाद 75 फीसदी जवान बाहर आने लगेंगे। वह स्थिति भी आएगी, जब एक ही बार में 11 लाख लोग बाहर आएंगे। दूसरी तरफ सीएपीएफ की कुल संख्या भी इतनी ही है। जब 11 लाख अग्निवीर हर साल रिटायर होंगे तो उन सभी को कैसे समायोजित करेंगे। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में तो साठ साल तक नौकरी चलेगी।

ऐसे में समायोजन का संकट खड़ा हो जाएगा। इस स्थिति में तो अग्निवीरों के सामने गार्ड की नौकरी का ही विकल्प बचेगा। सभी अग्निवीरों को दोबारा रोजगार दिलाना आसान नहीं है। ये सब एक दो साल तक ही संभव हो सकता है, लेकिन उसके बाद नहीं। इसमें पेंशन बिल कम नहीं होगा। हमारा देश, दुश्मनों से घिरा है। ऐसे में यह योजना फौज की कॉम्बैट तैयारी के साथ समझौता करने जैसा होगा। सेना में इस बाबत उच्च स्तर पर विचार हुआ होगा, लेकिन इस बाबत सार्वजनिक चर्चा करना जरूरी था। पहले एक-दो रेजिमेंट में बतौर पायलट प्रोजेक्ट इसे शुरू कर दिया जाता। इससे योजना की अच्छाई बुराई पता